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Tuesday 6 September 2016 02:52:32 AM
नई दिल्ली/श्रीनगर। गृहमंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व में जम्मू एवं कश्मीर गए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का दो दिवसीय दौरा सोमवार को संपन्न हुआ। प्रतिनिधिमंडल ने श्रीनगर घूमने के बाद जम्मू का दौरा किया, जहां उसने समाज के विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाले 18 विभिन्न प्रतिनिधिमंडलों से मुलाकात की। फिलहाल तो यही माना जा रहा है कि सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का यह दौरा विफल हो गया है और उसने देख लिया है कि घाटी में सुरक्षा संभालना कितना दुष्कर है और सुरक्षाबल जो कर रहे हैं, वह ही फिलहाल सर्वाधिक उपयुक्त रास्ता है और अब देखना यह है कि कांग्रेस, कांफ्रेंस, हुर्रियत और उनके अघोषित सहयोगी घाटी के युवाओं को कब तक बरगलाकर सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी कराते हैं। प्रतिनिधिमंडलों में राकेश गुप्ता के नेतृत्व में जम्मू चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री, नीरज आनंद के नेतृत्व में चैम्बर ऑफ ट्रेडर्स फेडरेशन ऑफ जम्मू प्रोविंस, ललित महाजन के नेतृत्व में फेडरेशन ऑफ इंडस्ट्रीज, अधिवक्ता अभिनव शर्मा के नेतृत्व में जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के प्रतिनिधिमंडल सम्मिलित थे। जम्मू होटल, लॉज, टैक्सी टूर और ट्रेवल संचालकों के संयुक्त प्रतिनिधिमंडल ने भी अपनी मांगों के संबंध में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की। विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधिमंडलों ने भी सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात कर घाटी में शांति बहाली के बारे में उसके समक्ष अपने विचार रखे।
गौरतलब है कि जम्मू पहुंचने से पहले सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने श्रीनगर में विभिन्न राजनीतिक दलों और सिविल सोसायटी संगठनों के प्रतिनिधिमंडलों से भी मुलाकात की थी। प्रतिनिधिमंडल के साथ विचार-विमर्श के दौरान यह बात उभर कर सामने आई कि घाटी के युवाओं की ऊर्जा का सही दिशा में प्रयोग करने के लिए मीडिया और विशेष तौर पर सोशल मीडिया का उपयोग अति आवश्यक है। घाटी के व्यापक परिदृश्य ध्यान में रखकर मीडिया को समाचार प्रस्तुत करने चाहिएं। विचार-विमर्श के दौरान अलगाववाद और आतंकवाद संबंधी गतिविधियों के लिए धन के स्रोत पर भी चिंता व्यक्त की गई। रिहा और आत्मसमर्पण कर चुके आतंकियों के पुर्नवास को भी महत्वपूर्ण बताया गया, जिसके लिए महबूबा मुफ्ती सरकार की योजना जारी है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने श्रीनगर में पत्रकारों से कहा कि जम्मू-कश्मीर में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की समाज के विभिन्न वर्गों के साथ बातचीत लाभदायक रही है। उन्होंने बताया कि गृह मंत्रालय ने डॉक्टर संजय रॉय को जम्मू-कश्मीर के लोगों की समस्या का समाधान करने के लिए नॉडल ऑफिसर के रूप में मनोनित किया है, इस संबंध में सातों दिन चौबीस घंटे टेलीफोन नंबर 011-23092923, 011-23092885 और ई-मेल dirmjk-mha@nic.in पर सूचनाएं दी जा सकती हैं।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल दिल्ली में भी घाटी के लोगों से मुलाकात करेगा और जम्मू एवं कश्मीर दौरे के दौरान विभिन्न प्रतिनिधिमंडलों के साथ उठे मुद्दों पर विचार-विमर्श करेगा। प्रतिनिधिमंडल ने अपने दौरे के पहले दिन 30 प्रतिनिधिमंडलों से मुलाकात की। गृहमंत्री ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की बैठक की अध्यक्षता भी की, जिसमें जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी शामिल हुई थीं। प्रतिनिधिमंडल ने जम्मू एवं कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोहरा से भेंट की और वर्तमान स्थिति से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर उनके साथ विचार-विमर्श किया। प्रतिनिधिमंडल को इस बात पर क्षोभ है कि हुर्रियत नेताओं ने उसके प्रतिनिधियों की उपेक्षा की और बातचीत के आग्रह को ठुकराया। जम्मू-कश्मीर की समस्या के समाधान में भारत और पाकिस्तान में अपनी सकारात्मक वैचारिक दृष्टि रखने वाले विचारकों का अभिमत है कि हुर्रियत ने ऐसा करके अपने महत्व का एक बड़ा अवसर गंवाया है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को सीधे यह संदेश गया है कि कश्मीर की समस्या पाकिस्तान प्रायोजित समस्या है, जिसमें अलगाववादी, पाकिस्तानी आतंकवादी और मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के विरोधी घाटी में युवाओं को आगे करके अनवरत हिंसा का खेल-खेल रहे हैं।
कश्मीर घाटी में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की विफलता और प्रतिनिधिमंडल के कुछ सदस्यों का उनसे बातचीत के लिए हुर्रियत नेताओं के सामने गिड़गिड़ाना और उनका उनसे मिलने से भी इनकार करना यह साबित करता है कि हुर्रियत नेताओं पर पाकिस्तान में बैठे उनके आतंकवादी आकाओं और पाकिस्तानी सेना का भारी दबाव है और पाकिस्तान के हुक्मरान घाटी में शांतिबहाली बिल्कुल नहीं चाहते हैं। अलगाववादी हुर्रियत नेताओं के शिविरों से आने वाली सूचनाओं के अनुसार उन पर पाकिस्तान के हुक्म पर चलने या मरने को तैयार रहने का दबाव है, इसलिए कई अलगाववादी नेता भारी दुविधा में हैं और उन्होंने पाकिस्तान की मुहिम पर घाटी के युवाओं को सुरक्षाबलों और कश्मीरी पंडितों के खिलाफ हिंसा में झोंक रखा है। पाकिस्तान के आतंकवादियों की एक समस्या महबूबा मुफ्ती की भाजपा गठबंधन की सरकार और देश में प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का होना है, जिसका रुदन पाकिस्तानी मीडिया पर सुना जा सकता है। घाटी में नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला और कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आज़ाद की राजनीति को कौन नहीं जानता? ये दोनों नेता शुरू से ही पीडीपी-भाजपा गठबंधन की सरकार के खिलाफ अभियान पर हैं और यदि ये थोड़ा भी शांति बहाली का प्रयास करते तो घाटी में अब तक पूरी तरह अमन-चैन कायम हो गया होता।
गुलाम नबी आज़ाद ने राज्यसभा में और उमर अब्दुल्ला ने कश्मीर घाटी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ जो ज़हर उगला हुआ है और जो हुर्रियत नेता कर रहे हैं, वह सबको मालूम है, इसलिए अब हर कोई कह रहा है कि घाटी में लगातार हिंसा पाकिस्तान प्रायोजित है, जिसमें ये सब शामिल हैं और वहां शांति बहाली में दिक्कतें आ रही हैं। इस पंद्रह अगस्त को लाल किले की प्राचीर से पीओके और पाकिस्तान के जबरन कब्जे वाले प्रांत बलूचिस्तान के प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सहानुभूति भी इन जैसे कई नेताओं के गले नहीं उतर रही है। कांग्रेसी नेता सलमान खुर्शीद के यहां तो मातम जैसी स्थिति है, जिसने बलूचिस्तान का जिक्र करने पर नरेंद्र मोदी को क्या नहीं कहा? हुर्रियत, उमर अब्दुल्ला और गुलाम नबी आज़ाद पीओके पर प्रधानमंत्री के दर्द से परेशान हैं, क्योंकि पीओके में नरेंद्र मोदी के कसीदे पढ़े जा रहे हैं। इससे इनको भारी पीड़ा है, क्योंकि इससे घाटी में उनकी अहमियत कम हो रही है। माना जाता है कि घाटी में शांति बहाली में रुकावट के ये कारण हैं, जिनका मुफ्ती सरकार और केंद्र सरकार को कोई न काई उपचार करना होगा। सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल कश्मीर से खाली हाथ लौट आया है और अब विपक्ष के नेताओं को समझ आ गई होगी कि उनकी कितनी हैसियत है और उन्हें आगे घाटी में अशांति के मामले पर कितना बोलना है और कितना नहीं। घाटी में पत्थरबाजों को रोकने के लिए सुरक्षाबलों की कार्रवाई पर भी उन्हें सोचकर बोलना होगा। उन्होंने देख लिया है कि घाटी में सुरक्षा संभालना कितना दुष्कर है और सुरक्षाबल जो कर रहे हैं, वह ही फिलहाल सर्वाधिक उपयुक्त रास्ता है। अब देखना है कि हुर्रियत और उनके अघोषित सहयोगी घाटी के युवाओं को कब तक बरगलाकर सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी कराते हैं।