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Tuesday 12 February 2013 09:46:50 AM
नई दिल्ली। भारत में पारंपरिक औषधियों का इतिहास 5000 वर्ष पुराना है। स्वास्थ्य, विकृतियों और प्राकृतिक पद्धतियों की सबसे पहली प्रलेखित जानकारी वैदिक साहित्य में मिलती है। स्वास्थ्य सेवाओं के लिए औषधीय पौधों के उपयोग की परंपरा शताब्दियों पहले विकसित की गई थी, जिसका इस्तेमाल अब परंपरागत चिकित्सा उद्योग की जरूरतों को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में हो रहा है। ये बातें मंगलवार को नई दिल्ली में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री गांधी सेलवम ने कही।
दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की परंपरागत चिकित्सा पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के प्रारंभिक सत्र-1 में गांधी सेलवम ने कहा कि आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति, सिद्ध, यूनानी, सोवा रिग्पा और होम्योपैथिक पद्धतियों को ‘आयुष’ उपनाम से मान्यता दी गई है और इसका अर्थ है-‘दीर्घायु होना’। इन पद्धतियों के इस्तेमाल को हमारे देश में व्यापक मान्यता प्राप्त है और यह भारतीय स्वास्थ्य सेवा और चिकित्सा पद्धति का अविभाज्य हिस्सा बन चुकी हैं।
राष्ट्रीय ग्रामीण मिशन 2005 की शुरूआत से ही ‘आयुष’ सेवाओं की पहुंच और उपलब्धता को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा नेटवर्क की ईकाईयों के तहत ‘आयुष’ को आगे बढ़ाया गया था। आयुष चिकित्सक राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम में प्रजनन, बाल चिकित्सा, विद्यालय चिकित्सा, रक्तल्पतता नियंत्रण और बचाव आदि कामों में सक्रियता से कार्यरत हैं। औषधि नियंत्रण के क्षेत्र में वैश्विक विकास के मद्देनजर स्वास्थ्य मंत्रालय अब परंपरागत भारतीय औषधियों एवं होम्योपैथिक दवाईयों की देखरेख और उन्हें मजबूत करने एवं नियमित करने के लिए अलग से एक आयुष औषधि नियंत्रक गठित करने का विचार कर चुका है। उन्होंने कहा कि कुछ राज्य बडी संख्या में घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को अकर्षित करने के लिए आयुष आधारित स्पॉ और कायाकल्प केंद्र शुरू कर चुके हैं।
प्रारंभिक सत्र के बाद पूरे दिन तीन और सत्र भी थे। इन सत्रों के शीर्षक (1) दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के क्षेत्र राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली में पारंपरिक चिकित्सा पद्धति का सिंहावलोकन (2) परंपरागत औषधियों/ वैकल्पिक औषधियों का वैश्विक परिदृश्य (3) परंपरागत औषधियों/ वैकल्पिक औषधियों को विनियमित करने का सवाल (4) परंपरागत औषधियों, वैकल्पिक औषधियों को स्वास्थ्य सेवा प्रणाली से जोड़ना थे। सम्मेलन में बंग्लादेश, भूटान, नेपाल के स्वास्थ्य मंत्रियों के अलावा श्रीलंका के स्वदेशी चिकित्सा मंत्री के साथ ही आमंत्रित देशों के राजदूत, विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र के महा निदेशक, दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के प्रतिनिधि, दुनिया के अलग अलग हिस्सों से आये हुए चिकित्सा विशेषज्ञों के अलावा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल हुए।