Saturday 9 December 2017 05:46:36 AM
अरुण जेटली
गुजरात विधानसभा चुनावों में वर्ष 2002 से लगातार हिस्सा लेने के कारण मैं 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के चुनाव अभियान पर अपने विचार व्यक्त करने का मोह नहीं छोड़ पा रहा हूं। गुजरात के संदर्भ में जब हम कांग्रेस के प्रचार अभियान का मूल्यांकन करते हैं, तो यह बात सामने आती है कि उसने अपने प्रदेश नेतृत्व को पूरी तरह निष्क्रिय और समाप्त कर दिया है। एक तरह से देखा जाए तो कांग्रेस ने अपने नेतृत्व और मुद्दों को ऐसे लोगों को आउटसोर्स कर दिया है, जिनका कांग्रेस से परम्परागत रूप से कोई जुड़ाव नहीं रहा है। गुजरात प्रदेश स्तर पर कांग्रेस के संगठन का कोई एक नेता नज़र नहीं आता, जो पूरे प्रदेश में चुनाव प्रचार कर रहा हो। कांग्रेस जिन मुद्दों को लेकर 2002 से प्रचार कर रही थी, इस चुनाव में उन मुद्दों को छोड़कर सामाजिक विभेद और ध्रुवीकरण का एजेंडा अपना चुकी है। ऐसे ही एजेंडों की कीमत गुजरात को 80 के दशक में चुकानी पड़ी थी।
कांग्रेस चुनाव प्रचार में गुजरात के विकास मॉडल को एक छलावा बताने का दुष्प्रचार कर रही है। कांग्रेस के इस दावे को हाल ही में जारी आंकड़े सिरे से खारिज करते हैं। इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि 2012 और 2017 के बीच गुजरात अकेला ऐसा राज्य है, जिसका सकल घरेलू उत्पाद लगातार 10 फीसदी से ज्यादा रहा है। विकास की सकारात्मक प्रतिस्पर्धा में दूसरे पायदान पर तेजी से विकास करने वाले मध्यप्रदेश से भी गुजरात की विकास दर 2% अधिक रही है। आर्थिक अस्थिरता के दौरान भी गुजरात की विकास दर दो अंकों में रही है। इस कालखंड में चीन की विकास दर भी 6.5% से अधिक नहीं हो सकी है। केवल 7% की विकास दर के साथ बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत सबसे तेज बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है, ऐसे में देश के किसी बड़े राज्य का 10% की विकास दर तक पहुंचना, अप्रत्याशित कहा जा सकता है। ऐसी विकास दर को लगातार 5 साल बनाए रखना, गुजरात के विकास के उस मॉडल की सफलता का प्रमाण है, जिसेकांग्रेस नकार रही है।
कांग्रेस के प्रचार अभियान का दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु 49% से अधिक आरक्षण देने का वादा है। सर्वोच्च न्यायालय ने 1992 के बाद बार-बार स्पष्ट किया है कि आरक्षण 50% से ज्यादा नहीं दिया जा सकता है। जिन राज्यों ने भी इस सीमा से ज्यादा आरक्षण देने की कोशिश की है, उन्हें संवैधानिक अवरोध का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस और पीएएएस ने गुजरात के लोगों को 50% से ज्यादा आरक्षण देने का वादा किया है, जो एक छलावा है और संवैधानिक तौर पर असंभव है। भारत की न्याय व्यवस्था इसकी इजाजत नहीं देती है। कांग्रेस के पास अपना खुद का कोई विकास मॉडल नहीं है, ऐसे में कांग्रेस के घोषणापत्र में किए गए वादे भी वित्तीय तौर पर ख्याली पुलाव पकाने से ज्यादा कुछ भी नहीं हैं। आज का गुजरात उस संकीर्ण जातिवादी सोच से आगे बढ़ चुका है, इसलिए अब यहां की जनता उस प्रयोग को स्वीकार नहीं करेगी। कांग्रेस ऐसे वादे सिर्फ इसलिए कर रही है, क्योंकि उसकी जीत राजनीतिक तौर पर असंभव दिखने लगी है।
गुजरात की राजस्व आय 90 हजार करोड़ रूपये प्रति वर्ष है, जबकि कांग्रेस ने 20 हजार करोड़ के कर की माफ़ी की घोषणा की है। इसके कारण गुजरात की कुल राजस्व आय 70 हजार करोड़ तक कम हो जाएगी। इसमें केंद्रीय अंतरण और एफआरबीएम कानून के तहत 3%की सीमा वाले ऋण को भी मिला लिया जाए तो वेतन, पेंशन, सामाजिक और विकास व्यय की प्रतिबद्धताओं को पूर्ण करने के बाद गुजरात के बजट में कोई अधिशेष नहीं बचता है। कांग्रेस के घोषणापत्र में 1 लाख 21 हजार करोड़ के अतिरिक्त खर्च वाले लोक-लुभावन वादे भी किए गए हैं। इसके मायने ये निकलते हैं कि कांग्रेस राज्य की आय को कम करेगी और व्यय को दोगुना करेगी। यह किसी वित्तीय चमत्कार से भी संभव होता नहीं दिख रहा है। कांग्रेस के घोषणापत्र में ये दो महत्वपूर्ण बिंदु गौर करने योग्य हैं, जिसमें से एक संवैधानिक तौर पर असंभव दिखता है, तो दूसरा वित्तीय तौर पर असंभव नज़र आता है।