Wednesday 21 March 2018 05:44:44 PM
दिनेश शर्मा
लखनऊ। गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी की असहनीय पराजय पर भाजपा संगठन बिल्कुल भी विचलित दिखाई नहीं देता है, विपक्ष या राजनीतिक विश्लेषणकर्ताओं में चाहे जो भी नकारात्मक प्रतिक्रियाएं हो रही हों। अतीत में देखने को मिला है कि भाजपा ऐसी चुनौतियों पर और भी ज्यादा मुखर हुई है और उदाहरण सामने है कि भाजपा नेतृत्व ने अपनी संगठनात्मक रणनीति और कुशलता से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को क्लीनचिट देकर सबको हैरान कर दिया है। गहराई से विश्लेषण किया जाए तो इस उपचुनाव परिणाम से यह तथ्य सामने आता है कि भाजपा के वोटर की खामोशी के बावजूद गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में हार-जीत के कम अंतर ने यह साबित किया है कि सपा-बसपा आदि राजनीतिक दलों का गठजोड़ आम चुनाव में भाजपा का सामना नहीं कर पाएगा। भाजपा का वोटर यदि मतदान कर जाता तो उपचुनाव में यह सनद बन जाती कि सपा-बसपा मिलकर भी भाजपा को हराने में सक्षम नहीं है। अब जो भी है, इस राजनीतिक परिदृश्य में भाजपा के वोटर की खामोशी उसकी बड़ी चूक मानी जा रही है। बहरहाल भाजपा संगठन का यह कहना भी विपक्ष को चिढ़ाना है कि योगी सरकार भाजपाशासित राज्यों में सबसे अच्छा कार्य कर रही है। दरअसल भाजपा संगठन की यह वही रणनीति है, जिसमें भाजपा ऐसे चुनाव परिणामों या घटनाक्रमों से पहले भी विचलित नहीं हुई है और संगठन ने उस समय भी बड़े धैर्य का परिचय दिया था, जब बसपा अध्यक्ष मायावती की वादाखिलाफी पर संसद में एक वोट से अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरी थी और भाजपा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा, बल्कि अपने आगे के लक्ष्य संघान किए।
भारतीय जनता पार्टी कार्यकर्ताओं युवाओं और उसके बाहर भी विभिन्न विचारों के साथ मीडिया और सोशल मीडिया में तथापि यही सवाल अभी भी चल रहा है कि भाजपा कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत से विधानसभा की 326 सीटें जीतने पर भी भाजपा की सपा-बसपा से पराजय? क्योंकि भाजपा संगठन ने तो उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनाने का अपना पूरा काम कर दिया था, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी भी मेहनत से और अच्छा काम कर रहे हैं तो भाजपा की इस ऐतिहासिक विरासत को यह चुनौती क्यों और किधर से आई? इसके विश्लेषण में एक आक्रोश परिलक्षित होता है कि भाजपा संगठन के कार्यकर्ताओं की स्थानीय प्रशासन में उपेक्षा और प्रशासन की पुरानी भ्रष्टाचारजनित कार्यप्रणाली के प्रति उनमें भारी ग़ुस्सा और निराशा है, जिसके फलस्वरूप सपा-बसपा का एक त्वरित गठबंधन भाजपा से ये दोनों प्रतिष्ठापूर्ण लोकसभा सीटें छीन ले जाने में सफल हुआ है। भाजपा संगठन भी इसके कारण को समझ चुका है, जिसके समाधान के लिए भाजपा संगठन ने अपने कार्यकर्ताओं के मानसम्मान के लिए कई कदम उठाए हैं, कार्यक्रम बनाए हैं और रणनीतियां बदली हैं। भाजपा संगठन ने उपचुनाव परिणाम से निकली वे सारी आशंकाएं भी खारिज कर दी हैं, जिनमें कहा जा रहा है कि यह परिणाम 2019 के लोकसभा चुनाव का नया संदेश है।
भारतीय जनता पार्टी के विभिन्न दृष्टिकोण से इस पराजय में प्रथम दृष्टया यही तथ्य सामने आया है कि भाजपा कार्यकर्ता की इस उपचुनाव में खामोशी एक गंभीर विषय है, जिसमें एक पक्ष बिल्कुल स्पष्ट है कि सरकार का स्थानीय प्रशासन जनसामान्य को बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने और भाजपा के संकल्पपत्र की प्राथमिकताओं को लागू करने में विफल साबित होता है तो यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है। राज्य में भाजपा कार्यकर्ताओं में स्थानीय प्रशासन के बारे में जो प्रतिक्रियाएं सुनने और देखने को मिली हैं, उनमें स्थानीय प्रशासन के साथ जनता के बुनियादी मुद्दों को लेकर संघर्ष, जिले के अधिकारियों में उनकी अनदेखी, जिला अधिकारियों का शासन से सही तथ्य छिपाने और गुमराह करने की प्रवृति शामिल हैं और स्थानीय प्रशासन पूर्ववर्ती सरकार के ढर्रे पर चल रहा है, यह तब है जब मुख्य सचिव जिलों की कार्यप्रणाली की सतत समीक्षा भी कर रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी लगातार प्रशासन जनसामान्य के प्रति दिशा-निर्देश दे रहे हैं, तथापि स्थानीय प्रशासन के प्रति लोगों में नाराज़गी बढ़ रही है, यही एक कारण सामने आया है, जो भाजपा कार्यकर्ता उपचुनाव में खामोश दिखाई दिया है। गौरतलब है कि भाजपा कार्यकर्ता अन्य राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं के मुकाबले ज्यादा संवेदनशील और सहनशील माना जाता है, उसके शिष्टाचार की भी अलग पहचान है, किंतु स्थानीय प्रशासन में उसकी उपेक्षा की हदें पार हुई हैं, जिससे भाजपा को यह नुकसान हुआ है।
लोकसभा उपचुनाव में उत्तर प्रदेश से भाजपा को 73 लोकसभा सीटें मिली थीं, जिसके पीछे भाजपा संगठन की संयुक्त रणनीति थी और उसके बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को पहलीबार ऐतिहासिक सफलता मिली, जिससे यह सिद्ध होता है कि उत्तर प्रदेश में संगठनात्मक रणनीति उच्चस्तर की ही रही है, जिससे ये सफलताएं प्राप्त हुई हैं, लेकिन गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा की पराजय को लेकर सोशल मीडिया और बाकी मीडिया पर जो ट्रेंड देखने को मिला है, वह आश्चर्यजनक भी है और सतही सोच को भी दर्शाता है। इससे यह भी लगता है कि जो लोग सफलता मिलने पर बहुत जल्दी उत्साहित हो जाते हैं, वे ठेस लगने पर उसी तरह निराश भी हो जाते हैं, वे सामाजिक और राजनीतिक जीवन की विवशताओं का व्यावहारिक आकलन नहीं कर पाते हैं, जैसाकि इस उपचुनाव परिणाम में देखने को मिल रहा है। भाजपा संगठन मानता है कि योगी आदित्यनाथ जिस प्रकार कार्य कर रहे हैं, उससे कुछ स्वार्थी तत्व असहज हैं और सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार में लिप्त हैं। संगठन का कहना है कि एक खराब व्यवस्था को पटरी पर लाना आसान काम नहीं होता है, योगी सरकार इसे ठीक करने में लगी है, जिसके आगे चलकर अच्छे परिणाम दिखेंगे।
राजनीतिक विश्लेषणकर्ताओं का कहना है कि गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में हार-जीत का अंतर बताता है कि सपा और बसपा का गठबंधन उपचुनाव को जीतने के अलावा कोई ऐसा संदेश नहीं दे पाया है, जिससे यह समझा जा सके कि यह उपचुनाव 2019 के लोकसभा चुनाव का आइना है। विश्लेषणकर्ता कहते हैं कि इस उपचुनाव में भाजपा का वोटर यदि वोट डालने निकलता तो सपा-बसपा गठबंधन की पराजय निश्चित थी, बल्कि यह पराजय भारी अंतर से होती। इस उपचुनाव में भाजपा के वोटर के वोट नहीं करने से सपा-बसपा को बस एक मौका मिल गया है, जिसे विपक्ष भाजपा के खिलाफ इस्तेमाल कर रहा है। विश्लेषणकर्ता यह भी कहते हैं कि भाजपा का वोटर योगी सरकार को यह संदेश देना चाहता था कि भाजपा की सरकार में स्थानीय प्रशासन की उपेक्षा से वह बेहद कुपित है, किंतु वह भाजपा के खिलाफ नहीं है और यदि वह खिलाफ वोट कर जाता तो सपा-बसपा की जीत का अंतर लाखों में पहुंचता, ऐसा नहीं करके उसने सपा-बसपा को खुशी का मौका बिल्कुल नहीं दिया। कहने वाले कहते हैं कि अंदरूनी तौरपर सपा-बसपा गहरी चिंता में हैं, क्योंकि उसे भाजपा का नाराज़ वोट नहीं मिल सका, जिससे आम चुनाव में यह आशा नहीं की जा सकती कि भाजपा का नाराज़ वोट कहीं और भी जा सकता है।
लोकसभा उपचुनाव को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। भाजपा संगठन से लेकर भाजपा सरकार के बारे में अलग-अलग प्रतिक्रियाएं और धारणाएं हैं। कहीं पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को निशाना बनाया जा रहा है तो कहीं संगठन भी चर्चा में है। मजे की बात है कि कार्यकर्ताओं की उग्र नाराज़गी न तो मुख्यमंत्री से दिखाई देती है और न संगठन से दिखाई देती है। कार्यकर्ताओं की नाराज़गी सरकार के स्थानीय प्रशासन से दिखाई दे रही है, जो दूसरों के सामने उनको बेज्जत कर रहा है, जिसमें तहसील और थानों की कार्यप्रणाली जस की तस है। पता चल रहा है कि भाजपा संगठन अपने कार्यकर्ताओं के मानसम्मान को आगे रखकर इसपर काफी मंथन कर रहा है और उसने कुछ ऐसे कार्यक्रम निश्चित किए हैं, जो सरकार और कार्यकर्ताओं के बीच विश्वास पैदा करने का काम करेंगे। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष महेंद्रनाथ पांडेय, संगठन महामंत्री सुनील बंसल इस रणनीति पर काम कर रहे हैं। फिलहाल जो कार्यक्रम बनाया गया है, वह सरकार के कार्यक्रमों को जन-जन तक पहुंचाने का है। भाजपा नेताओं एवं मंत्रियों को खासतौर से जिम्मेदारी दी गई है कि वे इन कार्यक्रमों कार्यकर्ताओं की मेहनत को प्रमुखता से प्रोत्साहित करें। भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश के मीडिया प्रमुख हरीशचंद्र श्रीवास्तव हरीशजी का उपचुनाव परिणाम को लेकर सोशल मीडिया एवं मीडिया पर चल रही नकारात्मक प्रतिक्रियाओं को नज़रअंदाज़ करते हुए कहना है कि भाजपा कार्यकर्ता लोकसभा के आम चुनाव में उपचुनाव जैसी सारी नकारात्मक आशंकाओं को निर्मूल साबित कर देगा।