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Thursday 10 May 2018 06:14:23 PM
लद्दाख। भारत के राष्ट्रपति और तीनों सेनाओं के सर्वोच्च कमांडर के रूपमें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज भारतीय सेना के सियाचिन बेस कैंप का दौरा किया। राष्ट्रपति के आगमन पर कैंप में सैनिकों ने उनका जोरदार स्वागत किया। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस अवसर पर सैनिकों संबोधित करते हुए कहा कि मैं भारत के सैन्यबलों के लिए पूरे देश का आभार संदेश लेकर आया हूं। उन्होंने कहा कि मैं राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करने के बाद दिल्ली से बाहर अपनी सबसे पहली यात्रा पर अपने सैनिकों से मिलने लद्दाख आया था और सभी तैनात बटालियनों तथा स्काउट रेजीमेंट सेंटर के वीर जवानों से मिला था, उसी समय मैंने एक संकल्प लिया था कि मैं सियाचिन में तैनात अपने सैनिकों से भी मिलने आऊंगा और आज यहां उनके बीच आकर मेरा वह संकल्प पूरा हो गया है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि सियाचिन दुनिया का सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित युद्ध-क्षेत्र है और यहां की कठोरतम जलवायु में सामान्य जीवन जीना ही कठिन है, ऐसी परिस्थिति में दुश्मन से युद्ध के लिए तत्पर रहना तो बहुत ही मुश्किल होता है। उन्होंने कहा कि कठोरतम प्राकृतिक चुनौतियों के बीच देश की रक्षा में लगे हुए अपने ऐसे वीर जवानों से मिलना ही मेरे लिए गर्व की बात है। उन्होंने सैनिकों से बातचीत में कहा कि उनसे मिलने की उत्सुकता का एक विशेष कारण था, उनतक यह संदेश पहुंचाना कि देश की सीमाओं की रक्षा करने वाले सभी सैन्यकर्मियों और अधिकारियों के लिए हर भारतवासी के दिल में विशेष सम्मान है, देशवासियों के हृदय में उनकी वीरता के प्रति गर्व का भाव है, भारत की कोटि-कोटि जनता की यह भावना मैं उनतक स्वयं पहुंचाना चाहता था, इसलिए आज उनसे मिलकर उन्हें बेहद खुशी हुई है। रामनाथ कोविंद ने कहा कि भारत एक विशाल देश है और भारतवासियों को अपने देश की भूमि से गहरा लगाव है। उन्होंने कहा कि छिहत्तर किलोमीटर की लंबाई और चार से आठ किलोमीटर की चौड़ाई वाला यह सियाचिन ग्लेशियर हमारे देश के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
रामनाथ कोविंद ने कहा कि राष्ट्र के गौरव का प्रतीक हमारा तिरंगा इस ऊंचाई पर पूरी शान के साथ सदैव लहराता रहे, इसके लिए हमारे सैनिक बेहद कठिन चुनौतियों का सामना करते हैं, अनेक सैनिकों ने यहां सर्वोच्च बलिदान भी दिया है, मैं ऐसे सभी बहादुर ‘सियाचिन वॉरियर्स’ को नमन करता हूं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि अप्रैल 1984 में ‘ऑपरेशन मेघदूत’ के तहत भारतीय सेना ने सियाचिन में प्रवेश किया था, तबसे लेकर आजतक उन जैसे वीर जवानों ने मातृभूमि के सबसे ऊंचे इस भू-भाग पर शत्रु के क़दम नहीं पड़ने दिए हैं। उन्होंने कहा कि सैनिकों को यहां प्रकृति से भी रोज़ कठिन मुक़ाबला करना पड़ता है और हम जानते हैं कि सियाचिन की कुछ चौकियां 20 हजार फुट से भी अधिक ऊंचाई पर हैं, इस क्षेत्र का तापमान माइनस 52 डिग्री सेन्टीग्रेड तक चला जाता है, 15 से 18 फीट तक की बर्फबारी में भी हमारे जवान डटे रहते हैं, इस निर्जन बर्फीले स्थान में हर हाल में वे दृढ़ संकल्प बनाए रखते हैं। उन्होंने कहा कि देश के लिए उनमें समर्पण की जो भावना है, उसे जितना भी सराहा जाए, वह कम है, मातृभूमि की रक्षा के लिए उनकी निष्ठा देशवासियों के लिए एक आदर्श है।
राष्ट्रपति ने कहा कि मैं उनके इस मनोबल में पूरे देश का मनोबल जोड़ने आया हूं, उनका हौसला बढ़ाने आया हूं। उन्होंने कहा कि हमारे सैनिक एक दूसरी और भी लड़ाई लड़ते हैं, वह है अपने परिवार के लोगों से दूर रहने की, जो हमेशा अनेक तरह की आशंकाओं से ग्रसित रहते हुए भी अपने घर को व्यवस्थित ढंग से चलाते हैं और परिवार की कुशल-क्षेम के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। उन्होंने कहा कि लगभग 34 साल में सियाचिन के कठिन मोर्चे पर तैनात बहादुर सैनिकों के वीरतापूर्ण प्रदर्शन से देशवासियों को यह भरोसा मिला है कि उनके रहते देश की सीमाएं पूरी तरह सुरक्षित हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि मैं यह विश्वास दिलाने के लिए आया हूं कि हमारा हर देशवासी उनके परिवारजनों की प्रार्थनाओं में, उनके कुशल-क्षेम और बेहतर भविष्य के लिए सदैव उनके साथ खड़ा है। रामनाथ कोविंद ने सैनिकों से कहा कि राष्ट्रपति भवन देश की एक अनमोल धरोहर है, उसकी भव्यता पर हर देशवासी को गर्व है और उनको जब भी दिल्ली आना हो तो राष्ट्रपति भवन को देखने जरूर आएं, उन सबका राष्ट्रपति भवन में स्वागत है।