स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Wednesday 23 May 2018 01:52:39 PM
कोंडापवुलुरू (आंध्र प्रदेश)। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा है कि देश के दक्षिणी भागों को बहुत सी आपदा चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, इसलिए केंद्र सरकार को आपदाओं से निपटने के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण में इन राज्यों की मदद करनी चाहिए। उपराष्ट्रपति ने यह बात आंध्र प्रदेश के कोंडापवुलुरू में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान की आधारशिला रखने के दौरान एक जनसभा को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि भारत को एक ऐसे बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है, जो आपदा जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों से उबार सके और सबसे अधिक संवेदनशील समुदायों की जीवनरेखा बन सके। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएं बढ़ रही हैं और भारत इनसे सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र है।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि हमने पूर्व में बड़े पैमाने पर प्राकृतिक आपदाएं देखी हैं, जिनमें बाढ़ से लेकर भूकंप, भूस्खलन और तूफान जैसे 1999 का भयंकर तूफान, 2001 में गुजरात में भूकंप, 2004 में दक्षिण भारत में सुनामी, 2005 में मुंबई में बाढ़, 2005 में कश्मीर में भूकंप, 2008 में कोसी नदी में बाढ़, 2011 में सिक्किम में भूकंप, 2013 और 2014 में क्रमश: फेलिन और हुद-हुद आदि शामिल हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत के करीब 59 प्रतिशत भूमि क्षेत्र में हल्के से भारी भूकंप, 40 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में बाढ़, करीब 5700 किलोमीटर तटीय रेखा में समुद्री तूफान और सुनामी, 2 प्रतिशत भूमि में भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं का अधिक खतरा है। उन्होंने कहा कि भारत की कृषि योग्य भूमि का 68 प्रतिशत सूखे से प्रभावित हो रहा है। वेंकैया नायडू ने कहा कि जलमार्गों में अंधाधुंध अतिक्रमण, पानी निकासी की अपर्याप्त प्रणाली और निकासी से जुड़े ढांचागत क्षेत्र का रख-रखाव नहीं होने के कारण शहरों और कस्बों में बाढ़ की स्थिति देखने को मिल रही है।
वेंकैया नायडू ने कहा कि इस तरह की आपदाएं न केवल लोगों के जीवन में बाधा पहुंचाती हैं, बल्कि आपदा प्रभावित इलाकों को सीधे तौरपर प्रभावित करती हैं, साथ ही पूरे समाज और देश की अर्थव्यवस्था को भी संकट में डालती हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि आपदा प्रभावित 90 प्रतिशत आबादी एशिया में है और यह जरूरी है कि इस आबादी को आपदा के संभावित खतरों की जानकारी समय पर अवश्य दी जाए। उन्होंने कहा कि लोगों के पास पर्याप्त जानकारी और कौशल होना चाहिए, जिससे वे अपने जान-माल की रक्षा कर सकें, हालांकि हम आपदा प्रबंधन में तेजी से बदलाव कर रहे हैं, इसे राहत पर केंद्रित दृष्टिकोण से समग्रता की ओर ले जाया जा रहा है, जिसमें तैयारी, रोकथाम, जोखिम को कम करना शामिल है। उन्होंने कहा कि आपदा के प्रभाव को कम करने के लिए संवेदनशील समुदायों के लिए बुनियादी ढांचे और जीवनरेखा सेवाओं के सम्बंध में बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि प्रशासनिक मंत्रालय के रूपमें गृह मंत्रालय को समन्वय की भूमिका निभाने की जिम्मेदारी दी गई है। उन्होंने कहा कि हाल में ओडिशा में आए फेलिन और आंध्र प्रदेश के हुद-हुद तूफानों के दौरान पूर्व चेतावनी तथा तैयारियों की सफलता दिखाई दी है, यहां तूफान के स्थान और उसकी तीव्रता सहित चेतावनी संदेशों को पहले ही भेज दिया गया था। उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत आपदा जोखिम कम करने के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क (2015-30) का एक पक्षकार है, जो हमें अधिक व्यावहारिक और उपयोगी दस्तावेज़ प्रदान करता है, जिसमें आपदा जोखिम के सम्बंध में लोगों के लिए एहतियाती दृष्टिकोण को शामिल किया गया है, इससे आपदा जोखिम में कमी आएगी और ग़रीब एवं सबसे अधिक संवेदनशील लोगों को मजबूत बनाया जा सकेगा। इस अवसर पर गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू, आंध्र प्रदेश के विधि एवं न्यायमंत्री कोल्लू रवींद्र और गणमान्य नागरिक मौजूद थे।