स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Friday 20 July 2018 12:57:28 PM
जयपुर। देश में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द पर किताबें लेख कहानियां शायरी और कविताएं लिखने और मुशायरे सम्मेलन एवं गोष्ठियों के आयोजन इस दौर का एक 'फैशन' सा बन गए हैं। आज इनकी जितनी बाढ़ सी आ रही है उतना ही सौहार्द का माहौल बिगड़ता जा रहा है। ऐसा लगने लगा है कि जैसे हिंदू-मुस्लिम सौहार्द की आड़ में कहीं पर निगाहें और कहीं पर निशाने लगाए जा रहे हैं। भारत के कश्मीर से निकलकर पाकिस्तान जानेवाली सिंधु नदी के विवाद में पाकिस्तान ने पानी में इतना ज़हर घोल दिया है कि इसे हिंदू का पानी और मुस्लिम का पानी तक कहा जाने लगा है। सिंधु नदी के जल विवाद में पाकिस्तानी टीवी चैनलों और डिबेट्स में ये तीन शब्द मुहावरा ही बन गए हैं। भारत के कथाकार और लेखक असग़र वजाहत ने भी इसपर एक किताब लिख दी है, जिसका जयपुर में एक कार्यक्रम में विमोचन किया गया। हिंदू-मुस्लिम सौहार्द की पुस्तकों की मीलों लंबी भीड़ में यह पुस्तक भारत में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द के कितने काम आएगी यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन इससे यह बात सामने आती है कि अपवाद को छोड़कर हर कोई नित नई कहानियां गढ़ने के अभियान पर है।
बहरहाल असग़र वजाहत ने 'हिंदू पानी-मुस्लिम पानी' पुस्तक पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि कि धर्म के प्रति निष्ठा होने और साम्प्रदायिक होने में बहुत अंतर है। वे कहते हैं कि किसी भी धर्म को मानने वाला अपने धार्मिक विश्वासों पर अडिग रहते हुए जनहित में काम कर सकता है, लेकिन साम्प्रदायिक व्यक्ति या समूह जो धर्म के नाम पर राजनीति करते हैं, वे जनविरोधी काम करते हैं। कथाकार असग़र वजाहत ने अपनी पुस्तक के लोकार्पण समारोह में कहा कि राजनीति ने जिस प्रकार से धर्म का इस्तेमाल किया है, उससे साम्प्रदायिकता बढ़ी है, दूसरी ओर देश के नेताओं को शिक्षा और जागरुकता के प्रति जो चिंता होनी चाहिए थी वो नहीं रही है, क्योंकि उन्हें धर्मांधता फैलाना ही हितकर लगा। असग़र वजाहत ये सब किनके बारे में लिख रहे और बोल रहे हैं, यह साफ-साफ समझा जा सकता है, लेकिन देश में अधिकांश मदरसों की धर्मांध धार्मिक शिक्षा और ज़ेहाद पर वे खामोश नज़र आते हैं, काश वे इसपर भी बोलने की हिम्मत करते। यहां यह तथ्य भी परिलक्षित होता है कि 'हिंदू-मुस्लिम' सौहार्द की आड़ में बड़ी खूबसूरती से 'मैसेज' दिया जाता है।
बाबा हिरदाराम पुस्तक सेवा समिति द्वारा आयोजित समारोह में वरिष्ठ कथाकार और लघु पत्रिका 'अक्सर' के सम्पादक नेभारत की सामासिक संस्कृति की गहराई को रेखांकित करते हुए कहा कि आज साहित्य के समक्ष इस सामासिक संस्कृति को मजबूत करने का दायित्व आ गया है। आयोजन में कथाकार भगवान अटलानी ने साहित्य और संस्कृति के सम्बंध को अटूट बताते हुए भाईचारे को मजबूत करने की आवश्यकता बताई। ये दोनों वक्ता देश में मौजूदा हालात और उसकी सच्चाई से चिंतित दिखे, लेकिन वे ज़ेहाद की सच्चाई पर साफ-साफ बोलने की हिम्मत नहीं दिखा सके। भारत में अधिकांश बुद्धिजीवियों की यही त्रासदी है कि वे अपना नफा-नुकसान सोचकर अगला शब्द बोलते और लिखते हैं, जबकि बुद्धिजीवियों का एक वर्ग इसकी चिंता किए बिना अपनी बात दाग़ देता है, जिसे देश में 'धर्मनिर्पेक्षता' और 'हिंदू-मुस्लिम सौहार्द' की पहचान दी गई है, माना जाता है कि यही 'धर्मनिर्पेक्षता' हिंदू-मुस्लिम सौहार्द की सच्चाई की पोल खोल रही है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ पल्लव ने समारोह में असग़र वजाहत के रचनात्मक अवदान पर कहा कि पांच भिन्न-भिन्न विधाओं में प्रथम श्रेणी की यादगार कृतियां लिखने वाले असग़र वजाहत का लेखन हमारी भाषा और संस्कृति का गौरव बढ़ाने वाला है। उन्होंने असग़र वजाहत के हाल में प्रकाशित कहानी संग्रह 'भीड़तंत्र' का विशेष उल्लेख किया। उन्होंने संग्रह की कहानी 'शिक्षा के नुकसान' का उल्लेख भी किया। इससे पहले राजस्थान विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका प्रियंका गर्ग ने हिंदू पानी-मुस्लिम पानी पुस्तक पर एक परिचयात्मक आलेख प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि इस संकलन में असग़र वजाहत की साम्प्रदायिक सद्भाव विषयक श्रेष्ठ कहानियां तो हैं ही, वैचारिक पृष्ठभूमि के रूपमें उनके छह महत्वपूर्ण लेख भी संकलित हैं, जिनको साथ रखकर पढ़ने से इन कहानियों के नए अर्थ खुलते हैं। प्रकाशक बाबा हिरदाराम पुस्तक सेवा समिति के उपाध्यक्ष डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने समिति के क्रियाकलाप प्रस्तुत किए।
डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने बताया कि 150 पृष्ठों वाली इस पुस्तक का मूल्य मात्र तीस रुपये रखा गया है और यह पुस्तक उच्च गुणवत्ता वाली और पुस्तक संस्कृति को प्रोत्साहित करती है। समारोह का एक आकर्षण यह रहा कि इसे प्रोफेसर असग़र वजाहत के जन्म दिन की पूर्व संध्या पर आयोजित किया गया। इस अवसर पर बाबा हिरदाराम पुस्तक सेवा समिति के सचिव गजेंद्र रिझवानी ने सभी की तरफ से असग़र को जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं और केक भी काटा गया। समिति के अध्यक्ष आसनदास नेभनानी ने अतिथियों का आभार प्रदर्शित किया। विमोचन समारोह का संचालन युवा रचनाकार चित्रेश रिझवानी ने किया। इस आयोजन में बड़ी संख्या में लेखक, कवि, साहित्य प्रेमी और पत्रकार उपस्थित थे।