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'प्रेमचंद का समय बौद्धिक संक्रमण से प्रभावित'

सुप्रसिद्ध आलोचक आचार्य गरिमा श्रीवास्तव का अभिमत

हिंदू कालेज में 'प्रेमचंद का महत्व: संदर्भ सेवासदन'

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Wednesday 1 August 2018 05:32:04 PM

acharya garima shrivastav's opinion

नई दिल्ली। सुप्रसिद्ध आलोचक और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हिंदी की आचार्य गरिमा श्रीवास्तव ने हिंदू कालेज में हिंदी साहित्य सभा के 'प्रेमचंद का महत्व: संदर्भ सेवासदन' शीर्षक से आयोजित एक कार्यक्रम में कहा है कि मुंशी प्रेमचंद समाज की गतिविधियों को शब्द और संवाद ही नहीं देते हैं, बल्कि उसमें दखल भी देते हैं। उन्होंने कहा कि सेवासदन में भारतीय विवाह संस्था का क्रिटिक भी प्रेमचंद बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत करते हैं, जो सामाजिक कुप्रथाओं के कारण दाम्पत्य में बेड़ी का काम करता है। उन्होंने कहा कि सेवासदन की नायिका सुमन के द्वारा विद्रोह की कोशिश विवाह संस्था के रूढ़िवादी स्वरूप का नकार है। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद का समय बौद्धिक संक्रमण से प्रभावित है, जिसमें औपनिवेशिकसमाज बनाम परम्परागत भारतीय समाज, परम्परा बनाम आधुनिकता की टकराहटें और अंतर्विरोध सामने आ रहे थे, जो वस्तुत: ऐतिहासिक प्रक्रिया का ही हिस्सा है।
प्रोफेसर गरिमा श्रीवास्तव ने कहा कि जब व्यक्तित्व के स्वतंत्र विकास के अवसर अनुपलब्ध हों तो अनमेल विवाह के शिकार स्त्री-पुरुष स्वस्थ समाज के निर्माण में योगदान नहीं कर सकते। उन्होंने उर्दू उपन्यासों की परम्परा में लिखे गए उमरावजान और सेवासदन की तुलना करते हुए तत्कालीन सामाजिक और राजनैतिक परिस्थितियों का भी विवरण दिया। सेवासदन के मूल उर्दू संस्करण बाजार-ए-हुस्न की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि बाजार-ए-हुस्न और सेवासदन को आमने-सामने रखा जाए तो कुछ दिलचस्प तथ्य हाथ लगते हैं, जहां बाजार-ए-हुस्न में सौंदर्य, यौवन, राग, वासना, इच्छा न जाने कितनी अर्थ ध्वनियां समाहित हैं, उसकी तर्जुमे को वे सेवासदन यानी सेवा का घर बना देते हैं।
रचना पाठ के बाद युवा विद्यार्थियों से सवाल-जवाब सत्र में एक सवाल के जवाब में प्रोफेसर गरिमा श्रीवास्तव ने कहा कि प्रेमचंद जब समाज सुधार पर बात करते हैं, तब उनका ध्यान इस बात पर बराबर रहता है कि पाठकों के संस्कारों को कहीं भी चोट न पहुंचे, यही वजह है कि सुमन सेवासदन में वे सारे कार्य करती दिखाई देती है, जिनसे प्रतीत होता है कि मानो वह अपने पतित होने का प्रायश्चित कर रही हो। गोष्ठी के संयोजक और हिंदी विभाग के अध्यापक डॉ पल्लव ने आयोजन के विषय की प्रस्तावना रखी। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद की रचनाएं आज भी पढ़ी जा रही हैं तो इसका कारण प्रेमचंद का अपने युग के विभिन्न द्वंद्वों से टकराकर रचनाकर्म करना है।
हिंदी विभाग के सह आचार्य डॉ हरींद्र कुमार ने प्रोफेसर गरिमा श्रीवास्तव का परिचय दिया और उनके साथ हिंदू कालेज में पढ़ाई के दिनों के संस्मरण सुनाए। कार्यक्रम में हिंदू कालेज के हिंदी विभाग की प्रभारी डॉ रचना सिंह, अध्यापक डॉ बिमलेंदु तीर्थंकर और विद्यार्थी एवं शोधार्थी उपस्थित थे। विभाग के वरिष्ठ अध्यापक डॉ रामेश्वर राय ने पुस्तकें और डॉ विजयास्ति ने स्मृतिचिन्ह भेंटकर प्रोफेसर गरिमा श्रीवास्तव का अभिनंदन किया। कार्यक्रम में एमए उत्तरार्ध के छात्र आशीष द्विवेदी ने आभार व्यक्त किया।

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