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Thursday 6 September 2018 05:41:03 PM
नई दिल्ली। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया दिल्ली में ‘पत्रकारिता मंथन : आगे की राह’ विषय पर एक विचार संगोष्ठी हुई, जिसमें पत्रकारों ने जमकर पत्रकारिता पाठ किया। सरकार को और पत्रकारों को उनके कर्तव्य की नसीहतें दीं। सभी पत्रकार वक्ताओं के पत्रकारिता पर क्रांतिकारी विचार थे, मगर उनका अतीत उनसे भी प्रश्न कर रहा था कि उन्होंने क्या किया, जो पत्रकारिता और नवोदित पत्रकारों के लिए उल्लेखनीय और अनुकरणीय है? सवाल है कि पत्रकारिता की सत्ता में रहते हुए उनके क्या आदर्श थे और वे अपने मालिकों से कितना इतर चल पाए? यह सवाल आज उन्हें अंदर से घेर रहा है और उनके पास संगोष्ठियों में पत्रकारिता प्रलाप के अलावा कुछ नज़र नहीं आता है। संगोष्ठी में हिंदी पाक्षिक गंभीर समाचार के 101वें पत्रकारिता विशेषांक का लोकार्पण किया गया।
पत्रकारिता मंथन में कैरेवान के राजनीतिक संपादक हरतोष सिंह बल का कहना है कि जो लोग सरकार के नारे को नहीं दोहराते हैं, उन्हें अर्बन नक्सली संबोधित करने का चलन शुरू हो गया है, इसलिए अब जरूरी है कि आप जो सोचते हैं, उसे बोलें और लिखें। हरतोष सिंह बल की थोड़ी बात शमशान में वैराग्य की बात करने जैसी लगी। उनपर यहां किसी ने धीरे से कटाक्ष किया कि पत्रकार की चलती कहां है, तब जब वह किसी मीडिया संस्थान में होता है और ऐसे कितने हैं, जो अपने संस्थान के 'संदेश' के खिलाफ जाते हैं? यह उनकी बात है, जो पत्रकारिता के क्रांतिकारी संपादक स्थानीय संपादक रहे हैं और हैं। मत भूलिए कि ऐसे कई नामी संपादक हैं, जो पत्रकार और पत्रकारिता के जनाजे पर चुप्पी मारे देखे गए हैं।
मीडिया विश्लेषक लेखक और कॉलमिस्ट प्रोफेसर सुधीश पचौरी का संगोष्ठी में कहना था कि मीडिया पर पक्षधरता का आरोप लगता है और उसे तटस्थ होने की सलाह दी जाती है, लेकिन वास्तव में मीडिया को तटस्थ होने के बजाय सच के साथ होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मीडिया की स्वतंत्रता को लेकर पहले भी चर्चाएं होती थीं, आगे भी होती रहेंगी, लेकिन मीडिया के सभी प्रारूपों की प्राथमिकता में जनसरोकार से जुड़े मुद्दे केवल सत्य और तथ्य पर आधारित होने चाहिएं। संपादक रहे वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी भी मीडिया के सत्य और तथ्य पर बड़ा बोल रहे थे। बहरहाल उन्होंने कहा कि पत्रकारिता की मौलिकता तभी बरकार रहेगी, जब पत्रकार अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए बेबाक ढंग से तथ्यों को परोसे, उन्होंने यह भी जोड़ा कि हालांकि इस स्थिति में मीडिया घरानों का पत्रकारों के प्रति नकारात्मक रुख रहता है। ओम थानवी सच के करीब जाते ही ठिठक गए और वे भी मीडिया पर दबाव के सच का कोई ठोस तोड़ नहीं बता पाए। ओम थानवी यह भी कह रहे थे कि लेकिन उन पत्रकारों को ही इतिहास याद रखता है, जो सत्ता की सच्चाइयों से जनता को बेखौफ अवगत कराता है।
वैज्ञानिक और चिंतक गौहर रज़ा ने कहा कि पत्रकारिता का समय बड़ी तेजी से बदल रहा है, अख़बार की लागत विज्ञापन से निकलती है, ऐसे में अख़बार चाहकर भी जनसरोकारी नहीं हो सकता। गौहर रज़ा ने यह कही पते की बात। उन्होंने कहा कि अखबारों के संचालन के लिए जबतक कोई अन्य व्यावसायिक मॉडल विकसित नहीं होता है, तबतक अख़बारों पर बाज़ार हावी ही रहेगा। गौहर रज़ा की इस बात से पत्रकारिता के प्रवक्ता सहमत हों या नहीं हों, लेकिन यही सच है, जो पत्रकारिता पर दबाव का मूल कारण है और बाकी कसर मालिकनवीस संपादक पूरी किए रहते हैं। अपवाद को छोड़कर देश के बड़े-बड़े मीडिया घरानों ने प्रधानमंत्री कार्यालय के कृपापात्रों को ही पत्रकारिता का थानेदार बनाया है। संगोष्ठी में पत्रिका के राजनीतिक संपादक एवं निर्वाण टाइम्स के समूह संपादक शंभुनाथ शुक्ल ने बीज वक्तव्य में पत्रकारिता में आत्ममंथन की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि इस दौर की पत्रकारिता या तो इस पाले में है या फिर उस पाले में है, वह जनता के साथ तो कत्तई नहीं है।
पत्रकारिता मंथन संगोष्ठी में पत्रकार ज्ञानेंद्र पांडेय, प्रोफेसर श्रीश पाठक एवं कृषि विज्ञानी विभाष श्रीवास्तव ने भी विचार व्यक्त किए। उन्होंने आज के मीडिया एवं पत्रकारिता की भूमिका एवं पत्रकारिता की आगामी चुनौतियों पर प्रकाश डाला। पत्रकारिता के विद्यार्थियों ने पत्रकारों से कई सवाल किए। संगोष्ठी में पत्रकार अरविंद मोहन, राजेश, कथाकार महेश दर्पण, कथाकार क्षमा शर्मा, कवि राजेंद्र राजन, अपर्णा अनेकवर्णा, गीता पंडित, कल्पना मनोरमा, नित्यानंद गायेन आदि उपस्थित थे। पत्रिका के संपादक अजय मेहता ने वरिष्ठ पत्रकारों का अंगवस्त्र एवं प्रतीक चिन्ह से स्वागत किया। पत्रिका के सलाहकार संपादक प्रभात पांडेय ने धन्यवाद ज्ञापित किया। संगोष्ठी में पत्रकार कुलदीप नैयर के निधन पर मौन रखा गया। संगोष्ठी का संचालन भाषाविद् और आलोचक ओम निश्चल ने किया। इस अवसर पर पत्रकारिता एवं साहित्य क्षेत्र में सक्रिय कई गणमान्य व्यक्ति भी मौजूद थे।