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Monday 17 September 2018 01:29:23 PM
शिमला। कवि और वरिष्ठ पत्रकार विनोद विट्ठल ने कहा है कि आज बहुत सारी कविताएं तो लिखी जा रही हैं, इसके बावजूद इस समय 'कविताएं' लिख पाना बड़ा मुश्किल है। वे समय की नियति पर दौड़ती धारणाओं के प्रभाव को परिलक्षित करते हुए कहते हैं कि पशु-पक्षियों, पुरातत्व की चीज़ों और भाषाओं को लेकर गंभीर चिंताएं हैं और इस समय मनुष्य भी सबसे नाज़ुक दौर में है। विनोद विट्ठल ने कहा कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और डेटा ने मनुष्य को न केवल विस्थापित किया है, बल्कि पहले के किसी भी दौर की तुलना में अधिक अकेला, डरा हुआ और असहाय भी बनाया हुआ है।
कवि और वरिष्ठ पत्रकार विनोद विट्ठल ने बनास जन के विशेष कविता अंक 'पृथ्वी पर दिखी पाती' के विमोचन कार्यक्रम एवं एकल काव्यपाठ में ये विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का आयोजन हिमालय साहित्य, संस्कृति एवं पर्यावरण मंच शिमला ने किया था। उन्होंने अपने विचारों की निरंतरता में यहां तक कहा कि मनुष्य को हैक किया जा चुका है। विनोद विट्ठल ने कहा कि सभ्यता का विकास मनुष्य ने जिस सहअस्तित्व, सहयोग और सहजीवन के मूल्यों के साथ किया था, उन्हें भूमंडलीकरण पर सवार होकर आती इम्पीरीयलिस्टिक तकनीकी ताक़तों ने ख़तरे में डाल दिया है और ये ताकतें इतना शोर कर रही हैं कि अधिकांश इसके भविष्य के ख़तरे को महसूस ही नहीं कर पा रहे हैं।
विनोद विट्ठल ने उदाहरणस्वरूप कहा कि बाबाओं का बाज़ार है, धार्मिक उन्माद है, जातियां हैं, मॉब लिंचिंग है, खाप पंचायतें हैं, फ़्री डाटा है, वाट्सएप्प है, फ़ेसबुक है, टीवी के रिऐलिटी शो हैं, ख़बरिया चैनल हैं, हर-एक के अपने चैनल भी हैं, ख़ूबसारा प्रसारण और प्रकाशन है और सबसे ज़्यादा अनरिपोर्टेड समय है। विनोद विट्ठल ने कहा कि भूख से ज़्यादा लोग, ज़्यादा खाने से मर रहे हैं, युद्ध और महामारियों का काम अब दुनिया की बीस-तीस बड़ी कम्पनियां कर रही हैं जो अपने मुखौटे में सबसे ज़्यादा मानवीय और पीपल-सेंट्रिक लगाती हैं। उन्होंने कहा कि इस ग्लोबल समय में लोकल की हैसियत और राष्ट्रवाद की प्रासंगिकता में तरंगों पर चलते बाज़ार पर विवेक का बटन म्यूट पर कर दिया गया है, अब न आँख देखती है न मुँह बोलता है। कान भी वही सुनते हैं जो बाज़ार चाहता है।
विनोद विट्ठल ने व्यवस्था के पाप को घसीटते हुए कहा कि मन के अंधेरे में रोती हुई आत्मा की सुबकियों के बीच कृत्रिम रोशनी में चल रहे आईपीएल या ऐसे ही किसी कार्निवल के टिकट ऑनलाइन बिक रहे हैं, लोग पैकिज टूर पर घूम रहे हैं, गैजेट्स इस्तेमाल कर रहे हैं, डीपी बदल रहे हैं, सब कुछ डिज़ाइनर है और बिकाऊ भी है, बस आपके खाते में पैसा हो। विनोद विट्ठल इसके बाद पत्रकारिता पर आए। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता ने मेरी समझ को ज़्यादा धार दी है, छिनते हुए रोज़गार, ज़हर में बदलते खाद्य पदार्थ, हांफती और लाचार अर्थव्यवस्थाएं, ढहते हुए देश, ख़त्म होती खेती, छीजते हुए प्राकृतिक संसाधन, प्रदूषित कचरे और प्रतिबंधित दवाओं को ग़रीब मुल्कों के पेट में डालने का लगातार चल रहा गोरखधंधा, वायरस-एंटी वायरस और सैटेलाइट बनाने के उद्योग, दवाओं की खपत के लिए आविष्कृत बीमारियों और रोज़ बदलती तकनीक की भीषणता से कराहता मानव मस्तिष्क जैसी कितनी ही चीज़ें हैं, जो आज अनरिपोर्टेड हैं।
विनोद विट्ठल ने कहा कि मेरी कविताएं भी अनरिपोर्टेड दुनिया की चिट्ठियां हैं, इन चिट्ठियों को सम्भालिए! इस अवसर पर विनोद विट्ठल ने अपनी कविता अड़तालीस साल का आदमी, टी-शर्ट, लेटर बॉक्स, जवाब, पृथ्वी पर दिखी पाती, अच्छे दोस्त और रफ़ कापी का काव्यपाठ किया। कार्यक्रम में चर्चा करते हुए हिंदी के ख्यतिनाम कवि आत्मा रंजन ने विनोद विट्ठल की कविताओं को इस समय लिखी जा रही विश्व की श्रेष्ठतम कविताओं में शामिल करते हुए कहा कि उनकी कविताएं हमारे जटिल वर्तमान को पूरी बेबाक़ी और गहनता के साथ व्यक्त करती हैं। उन्होंने कहा कि वे स्मृति, सूचना, ज्ञान और विवेक के मिश्रणवाली ऐसी कविताएं रचते हैं, जो बहुत कम दिखती हैं, इसीलिए जहां भाषा के स्तर पर इनका मुहावरा अलग है, वहीं विषय और बिम्ब भी पूरी तरह से नए हैं। उन्होंने कहा कि विनोद विट्ठल की कविताओं के लिए हिंदी कविता आलोचना के पास अभी तक प्रतिमान ही नहीं है, ये एक नई समीक्षा-दृष्टि की मांग करती हैं। कवि गुप्तेश्वरनाथ उपाध्याय ने विनोद विट्ठल को आत्मीय जरूरतों का कवि बताते हुए कहा कि अपनी संस्कृति और सभ्यता से जुड़ी उनकी कविताएं असल में परम्परा का वृहद आख्यान प्रस्तुत करती हैं।
लोकार्पण आयोजन में हिमालय साहित्य, संस्कृति एवं पर्यावरण मंच शिमला के अध्यक्ष और विख्यात कथाकार एसआर हरनोट ने कहा कि विनोद विट्ठल पत्रकार की आत्मा में एक कवि हैं जो अपनी पत्रकारीय समझ का इस्तेमाल साहित्य में बख़ूबी करते हैं और उसे समृद्ध करते हैं। उन्होंने कहा कि बनास जन ने पृथ्वी पर दिखी पाती को प्रकाशित कर एकबार फिर पुस्तिकाओं की तरफ़ हिंदी को लौट चलने का आह्वान किया है। वे बोले कि ये पुस्तिका हिंदी के परम्परागत प्रकाशन प्रतिष्ठान को चुनौती देती नज़र आती है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ आलोचक और कवि श्रीनिवास श्रीकांत ने कहा कि लघु पत्रिकाओं ने समय-समय पर जड़ताभंजक हस्तक्षेप किए हैं, बनास जन ने विनोद विट्ठल की कविताओं पर विशेष अंक निकालकर विशिष्ट काम किया है जो साहित्य के क्षेत्र में देर तक याद किया जाता रहेगा।बड़ी संख्या में लेखकों और संस्कृतिकर्मियों कुल राजीव पंत, विद्या निधि, सतीश सोनकर, अश्वनी गर्ग, राकेश कुमार सिंह, दिनेश शर्मा, सुनीला शर्मा, देव कन्या ठाकुर, भारती कुठियाला, आंनद प्रकाश शर्मा, अंजली दीवान, शांतिस्वरूप शर्मा, मोनिका छट्टू, अश्वनी कुमार, यादव चंद, निर्मल शर्मा, दीपक भारद्वाज, वंदना राणा आदि आयोजन में आए। मंच संचालन युवा कवि कौशल मुंगटा ने किया। इस अवसर पर लघु पत्रिका प्रदर्शनी भी लगाई गई।