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Wednesday 26 September 2018 01:47:48 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय वित्त और कारपोरेट मामलों के मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि दिवाला और दिवालियापन संहिता, जीएसटी, विमुद्रीकरण और डिजिटल भुगतानों के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था के औपचारिकरण ने वित्तीय क्षमता और जोखिम के मूल्यांकन में मदद दी है, इससे बड़े पैमाने पर वित्तीय समावेशन हुआ है और लोगों की खरीददारी शक्ति बढ़ी है। उन्होंने कहा कि इससे भारत का तेज विकास होगा। वित्तमंत्री ने कहा कि अर्थव्यवस्था के औपचारिक रूप लेने से भारत को लगभग 8 प्रतिशत की विकास दर बनाए रखने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था में वृद्धि से बैंकों की शक्ति बढ़ाने में भी मदद मिलेगी, इसके विपरीत बैंकों को अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा के रूपमें अपनी शक्ति बनानी होगी, ताकि बैंक बढ़ती अर्थव्यवस्था की ऋण आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने दिल्ली में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की वार्षिक समीक्षा बैठक में मुख्य कार्यकारी अधिकारियों और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पूर्णकालिक निदेशकों से बातचीत के दौरान ये बातें कहीं। उन्होंने अगले दशक तक भारत की वृद्धि दर बनाए रखने के उपायों का उल्लेख किया। अरुण जेटली ने कहा कि आईबीसी व्यवस्था से मिलने वाले सार्थक परिणामों के बावजूद ऋण वसूली अधिकरण व्यवस्था के मूल्यांकन और समीक्षा की आवश्यकता है, विशेषकर मामलों के निपटान में लगने वाले लम्बे समय को लेकर। उन्होंने डीआरटी व्यवस्था के माध्यम से ऋण वसूली में तेजी लाने की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि शीघ्र वसूली कार्रवाईयों का मूल लक्ष्य हासिल किया जा सके। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सेहत के बारे में सार्थक धारणा बनी है, क्योंकि बैंकों ने समाधान, वसूली, प्रावधान तथा ऋण विकास के मामले में सार्थक परिणाम प्रस्तुत किए हैं।
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि जानबूझ कर ऋण भुगतान में चूक करने वालों को रोकने के लिए आईबीसी में संशोधन का परिणाम यह हुआ है कि देनदारी में जानबूझकर चूक करने वाले अब भुगतान करने के लिए आगे आ रहे हैं। अरुण जेटली ने कहा कि विकास तथा वित्तीय समावेशन के समर्थन में बैंकों के योगदान को देखते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक की प्रासंगिता जारी है। इस संबंध में उन्होंने कहा कि दूसरे देनदारों से गैर-खुदरा बैंकिंग के लिए समर्थन अभी भी अपर्याप्त है। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं को पूरी करने में बैंकिंग प्रणाली में विश्वास जरूरी है। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में संशोधन के बाद बैंकरों के मन में अर्थव्यवस्था, राष्ट्र और बैंकों के हित में निवेश समर्थन को लेकर किसी तरह की आशंका की आवश्यकता नहीं रह गई है। उन्होंने कहा कि बैंक स्वच्छ तरीके से ऋण प्रदान करें और जालसाजी तथा ऋण देनदारी में चूक करने के मामलों में कारगर कार्रवाई सुनिश्चित करें, ताकि बैंकों में फिर से व्यक्त किए गए विश्वास को औचित्यपूर्ण कहा जा सके।