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Tuesday 2 October 2018 02:08:07 PM
नई दिल्ली। प्रसिद्ध इतिहासकार और लेखक सुधीर चंद्र ने हिंदू कालेज दिल्ली में हिंदी विभाग की ओर से आयोजित महात्मा गांधी जयंती पर 'आज के सवाल और गांधी' विषय पर व्याख्यान में कहा है कि आज किसी भी तरह के सवालों को खड़ा करना और उनकी बात करना मुश्किल हो गया है, जो किसी सभ्य जनतांत्रिक समाज के लिए बेहद चिंता की बात है। इतिहासकार सुधीर चंद्र का इशारा किसकी तरफ था समाज की तरफ या सरकार की तरफ? यह बात कुछ साफ नहीं हो सकी, क्योंकि उन्होंने यह भी कहा कि महात्मा गांधी ने दुनिया को सिखाया है कि ना कहना मनुष्य का सबसे बड़ा अधिकार है, जिसके साथ हमारा नैतिक साहस भी जुड़ा हुआ है। श्रोताओं ने उन्हें बड़े गौर से सुना और अपने-अपने दृष्टिकोण से उनकी बात के मतलब निकाले।
इतिहासकार सुधीर चंद्र ने कहा कि कुछ संपन्न लोगों का हित राष्ट्रवाद नहीं होता, अपितु व्यापक स्तरपर आदर्शवाद को राष्ट्रीय चेतना के साथ जोड़कर राष्ट्रवाद को समझना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे देश में स्वार्थ के आधार पर संकुचित समझ से राष्ट्रवाद की व्याख्या की जा रही है, जो उचित नहीं है। प्रोफेसर सुधीर चंद्र ने पाकिस्तान और बांग्लादेश के निर्माण का उदाहरण देते हुए कहा कि राष्ट्र एक स्थापित इकाई नहीं है, अपितु समय-समय पर बदलने वाली इकाई है। उन्होंने कहा कि किसी समाज में बोलने-छपने में डर लगे तो उसे सेंसरशिप कहा जाता है और अगर यह सेंसरशिप अदृश्य हो तो भयानक होती है। बेख़ौफ़ जीने और अपने विचारों की अभिव्यक्ति को सभ्य समाज की बुनियादी शर्त बताते हुए उन्होंने आपातकाल का उदाहरण दिया और कहा कि सरकार की सेंसरशिप से जूझना आसान है, लेकिन अपने ही समाज के लोगों से जूझना पड़े तो बहुत मुश्किल हो जाता है।
आजादी के आंदोलन में गांधीजी की भूमिका को रेखांकित करते हुए सुधीर चंद्र ने कहा कि गांधीजी का आंदोलन समाज को बदलने और आजादी दिलाने के उद्देश्यों से संचालित था। प्रोफेसर सुधीर चंद्र ने गांधीजी को इस संदर्भ में याद करते हुए कहा कि सवालों के जवाब मांगना गांधीजी ने सिखाया है, लेकिन हम अपने समाज को कितना बदल पाए हैं, यह विचार करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि वर्तमान लोकतांत्रिक प्रक्रिया में घुन लग गया है और बाजार का वर्चस्व सब जगह देखा जा सकता है। बाजार का वर्चस्व राष्ट्रीय हितों की हत्या करने लगे तो स्थिति की गंभीरता को समझना चाहिए। इस व्याख्यान का सार कुछ ऐसा है कि उन्होंने आज के राष्ट्रवाद और समाज पर कुछ प्रश्न खड़े किए हैं, जिनपर कुछ कहें भी तो बुरा और न कहें तो भी बुरा।
व्याख्यान कार्यक्रम में प्रोफेसर सुधीर चंद्र ने विद्यार्थियों के सवालों के उत्तर देते हुए कहा कि इतिहासकार का काम परिवर्तन देखना है। व्याख्यान कार्यक्रम में हिंदू कालेज हिंदी विभाग की भित्ति पत्रिका 'लहर' के ताज़ा अंक का अनावरण भी किया गया। पत्रिका के छात्र सम्पादक मंडल श्वेता, आस्तिका, ऋतुराज कुमार और कर्ण सिंह ने पत्रिका के बारे में जानकारी दी। इस अवसर पर हिंदू कालेज के हिंदी विभाग की प्रभारी डॉ रचना सिंह, वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ रामेश्वर राय, डॉ अभय रंजन, डॉ हरींद्र कुमार, डॉ पल्लव और बड़ी संख्या में शिक्षक एवं विद्यार्थी शामिल थे। व्याख्यान कार्यक्रम संयोजक एमए पूर्वार्ध की छात्रा स्नेहदीप ने प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया।