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Wednesday 21 November 2018 02:04:48 PM
नई दिल्ली। 'देह ही देश' को एक डायरी समझना भूल होगा, इसमें दो समानांतर डायरियां हैं, पहली वह जिसमें पूर्वी यूरोप की स्त्रियों के साथ हुई ट्रेजडी दर्ज है और दूसरी में भारतीय स्त्रियों की व्यथा-कथा है। दूसरी में वह भारत है, जहां स्त्रियों के साथ लगातार मोलस्ट्रेशन होता है और उसे दर्ज करने की कोई कार्रवाई नहीं होती। पत्रकार और सीएसडीएस के भारतीय भाषा कार्यक्रम के निदेशक अभय कुमार दुबे का कहना है कि भारत में मोलस्ट्रेशन की विकृतियों की भीषण अभिव्यक्तियां निश्चय ही चौंकाने और डराने वाली हैं, जिनकी तरफ हमारा ध्यान 'देह ही देश' को पढ़ते हुए जाता है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केंद्र में कड़ियाँ संस्था के क्रोएशिया प्रवास पर आधारित प्रोफेसर गरिमा श्रीवास्तव की पुस्तक 'देह ही देश' पर परिचर्चा में अभय कुमार दुबे ने हिंसा और बलात्कार की घटनाओं पर वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर प्रसारित करने को भीषण सामाजिक विकृति बताया। हिंदू कालेज के डॉ पल्लव ने परिचर्चा में कहा कि यह पुस्तक संस्मरण, डायरी, रिपोर्ताज, यात्रा आख्यान और स्मृति के अंकन का मंजुल सहकार है। उन्होंने इसे यौन शुचिता के मिथकों को ध्वस्त करने वाली जरूरी किताब बताते हुए कहा कि शुद्धता की उन्मादी प्रवृत्ति के विरुद्ध 'देह ही देश' में नए जमाने की स्त्री की छटपटाहट है। ज्ञातव्य है कि राजपाल एंड सन्ज़ द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक 2018 की बेस्ट सेलर साबित हुई है।
राजधानी कॉलेज के डॉ राजीव रंजन गिरि ने कहा कि युद्ध इतिहास और कालखंड में तो समाप्त हो जाते हैं, लेकिन भोगने वाले के चेतन और अवचेतन मन मे ताउम्र बना रहता है। उन्होंने कहा कि एक प्रकार के कट्टर राष्ट्रवाद की अवधारणा बढ़ती जा रही है, जिसके फलस्वरूप युद्ध नीति के तौर पर बलात्कार की नीति को बढ़ावा मिल रहा है। पत्रकार भाषा सिंह ने कहा कि 'देह ही देश' सुलगते सच से साक्षात्कार कराती है और युद्ध तथा उन्माद के इस समय में अपने शीर्षक को सार्थक करती है। कार्यक्रम का संचालन शोधार्थी बृजेश यादव ने किया। भारतीय भाषा केंद्र के अध्यक्ष प्रोफेसर गोविंद प्रसाद, प्रोफेसर रमण प्रसाद सिन्हा, प्रोफेसर राजेश पासवान, विद्यार्थी और शोधार्थी इस अवसर पर मौजूद थे। एमए द्वितीय वर्ष के छात्र चंचल कुमार ने सभी का आभार व्यक्त किया।