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Saturday 24 November 2018 12:22:31 PM
अमृतसर। भारत सरकार ने ऐतिहासिक जलियांवाला बाग नरसंहार के 100वें वर्ष को यादगार रूपमें मनाने का फैसला किया है। जलियांवाला बाग नरसंहार को अगले साल सौ वर्ष हो रहे हैं। केंद्रीय संस्कृति राज्यमंत्री डॉ महेश शर्मा ने आवास और शहरी मामलों के राज्यमंत्री हरदीप सिंह पुरी और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एवं एनबीसीसी के अधिकारियों के साथ अमृतसर में जलियांवाला बाग स्मारक का दौरा किया और 2019 में जलियांवाला बाग नरसंहार के सौ वर्ष पूरे होने पर श्रद्धांजलि संबंधी तैयारियों का जायजा लिया। संस्कृति राज्यमंत्री डॉ महेश शर्मा ने कहा कि जब हम 2019 में जलियांवाला बाग बलिदान के सौ वर्ष यादगार प्रतीक के रूपमें मनाने की तैयारी कर रहे हैं, तब वहां आवश्यक पुनर्निर्माण और उसमें सुधार होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जलियांवाला बाग हमारी युवा पीढ़ी को स्वतंत्रता संग्राम में हमारे पूर्वजों के बलिदानों की याद दिलाता है।
संस्कृति राज्यमंत्री डॉ महेश शर्मा ने कहा कि सरकार इस ऐतिहासिक स्थल के पुनरुद्धार की योजना बना रही है। संस्कृति मंत्री ने कहा कि पर्यटकों को मूलभूत सुविधाएं प्रदान करने के लिए उपयुक्त बुनियादी ढांचा बनाया जा रहा है, यादगार अवधि के दौरान अनेक स्मरणीय गतिविधियां आयोजित की जाएंगी। उन्होंने बताया कि 13 अप्रैल 2019 को एक स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी किया जाएगा। उन्होंने बताया कि उनका संस्कृति मंत्रालय देशभर में सांस्कृतिक गतिविधियां कवि सम्मेलन, नाटक, प्रदर्शनी, सेमिनार आयोजित करेगा। उन्होंने कहा कि समयानुसार कार्यांवयन के लिए एक समिति गठित की गई है, जिसने आगंतुकों के लिए मूलभूत सुविधाएं प्रदान करना, जलियांवाला बाग स्मारक का पुनरुद्धार, आधुनिकीकरण और सौंदर्यीकरण और स्मारक में वर्चुअल रियलिटी थीम बेस्ड शो की व्यवस्था पर्यटन मंत्रालय पहले ही कर चुका है, जिसके लिए वर्चुअल रियलिटी थीम बेस्ड शो के लिए स्वदेश दर्शन योजना के अंतर्गत 8 करोड़ रुपये की राशि निर्धारित की जा चुकी है, जिसे समिति की देखरेख में खर्च किया जाएगा और जरूरत पड़ने पर संस्कृति मंत्रालय और भी धनराशि प्रदान करेगा।
दूसरी ओर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर के शहीदी दिवस पर कहा है गुरु तेग बहादुर ने अपने जीवन में पूजा-अर्चना की आजादी, एकात्मकता, प्रेम और भाईचारे के मूल्यों पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आइए हम मानवता के गौरव को बचाए रखने के लिए और सभी के कल्याण की उनकी प्रतिज्ञा और मूल्यों का अनुसरण करें। उन्होंने कहा कि गुरु तेग बहादुर के 115 पद्य गुरु ग्रंथ साहिब में सम्मिलित हैं। गौरतलब है कि गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों और हिंदुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाने का विरोध किया था। इस्लाम स्वीकार न करने के कारण 1675 में उन्हें भी मुगल शासक औरंगजेब ने इस्लाम कबूल करने को कहा था, जिसपर गुरु तेग बहादुर साहब ने कहा था कि सीस कटा सकते हैं, केश नहीं, फिर उसने गुरु तेग बहादुर का सबके सामने सिर कटवा दिया था। गुरुद्वारा शीश गंज साहिब तथा गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब उनके स्थानों का स्मरण दिलाते हैं, जहां गुरुजी की हत्या की गई तथा जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया था।
विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांतों की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग़ बहादुर का स्थान अद्वितीय है। उनके लिए यह महावाक्य बहुत प्रासंगिक है कि उनका बलिदान केवल धर्म पालन के लिए ही नहीं, अपितु समस्त मानवीय सांस्कृतिक विरासत की खातिर था, धर्म उनके लिए सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन विधान का नाम था, इसलिए धर्म के सत्य शाश्वत मूल्यों के लिए उनका बलिदान वस्तुतः सांस्कृतिक विरासत और इच्छित जीवन विधान के पक्ष में एक परम साहसिक था। आतताई इस्लामिक शासक की धर्म विरोधी और वैचारिक स्वतंत्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध गुरु तेग़ बहादुर का बलिदान एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी, यह उनके निर्भयी आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण है। वे मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतंत्रता के लिए अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रांतिकारी युग पुरुष थे।