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'ओमप्रकाश वाल्मीकि का साहित्य सराहनीय'

'ओमप्रकाश वाल्मीकि का अंतिम संवाद' का लोकार्पण

देशाटन, यात्रा संस्मरणों में होती है ज़मीनी हक़ीकत

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Saturday 12 January 2019 04:29:08 PM

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नई दिल्ली। सुप्रसिद्ध दलित लेखक और चिंतक प्रोफेसर श्योराज सिंह बेचैन ने दिल्ली में विश्व पुस्तक मेले में राजपाल एंड सन्ज़ से प्रकाशित पुस्तक 'ओमप्रकाश वाल्मीकि का अंतिम संवाद' का लोकार्पण करते हुए कहा है कि लोकतंत्र में जैसे विचारों की विविधता की बात होती है, उसी प्रकार अनुभवों की भी विविधता होती है और इन सबसे मिलकर राष्ट्रीय साहित्य तैयार होता है। प्रोफेसर श्योराज सिंह बेचैन ने कहा कि सच कहा जाए तो जो जिस समाज को जीता है, वही उस समाज को लिख सकता है और ओमप्रकाश वाल्मीकि ने वही लिखा जो उन्होंने जिया।
प्रोफेसर श्योराज सिंह बेचैन ने कहा कि ओमप्रकाश वाल्मीकि का साहित्य योगदान सराहनीय है। राजस्थान के आदिवासी कवि और उपन्यासकार हरिराम मीणा ने कहा कि विषयवस्तु विधा तय करती है न कि लेखक तय करता है। उन्होंने कहा कि जमीनी हकीकत को जानने के लिए संस्मरण, देशाटन के लिए यात्रा वृतांत, दृश्य, मानसिकता और अन्य कथ्य कहानी के रूप में जाने जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि विषय साहित्य को विस्तार देते हैं और वही उसमें यथार्थबोध प्रदान करते हैं। उन्होंने ओमप्रकाश वाल्मीकि के इस लंबे और महत्वपूर्ण संवाद को विधा की उपलब्धि बताया। पत्रकार दिलीप मंडल ने कहा कि व्यक्ति अपने जीवनकाल में बनता रहता है, बदलता रहता है, हमेशा एक जैसा नहीं रहता, यह ओमप्रकाश वाल्मीकि के जीवन का सारतत्व ही है, जो इस फॉर्मेट में आया है और इसे उनके जीवन का निचोड़ भी कहा जा सकता है।
दिलीप मंडल ने कहा कि पुस्तक की साज-सज्जा अच्छी है, लेखक और प्रकाशक इसके लिए धन्यवाद के पात्र हैं। जानेमाने आलोचक डॉ बजरंग बिहारी ने कहा कि पुस्तक के माध्यम से भंवरलाल मीणा ने बड़ा सराहनीय काम किया है। उन्होंने उन्हें जमीनी लेखक बताते हुए कहा कि एक समय में उन्होंने राजस्थान के आदिवासी समाज में घूम-घूमकर लोकगीत इकट्ठे किए थे, वह आज के समय में बहुत मुश्किल काम है। डॉ बजरंग ने ओमप्रकाश वाल्मीकि की पुस्तक को दलित साहित्य के संदर्भ में आवश्यक और अविस्मरणीय कार्य बताया। पुस्तक के लेखक भंवरलाल मीणा ने पुस्तक की रचना प्रक्रिया बताते हुए ओमप्रकाश वाल्मीकि के साथ व्यतीत समय को याद किया। कार्यक्रम का संयोजन बनास जन के सम्पादक और आलोचक पल्लव ने किया और अपने विचार भी रखे। उन्होंने ओमप्रकाश वाल्मीकि से हुईं अंतिम मुलाकातों को याद किया और बताया कि उन्होंने कहा था कि दलित साहित्य को मुख्य साहित्य के प्रकाशकों तक पहुंचने में समय लगेगा पर आज दलित साहित्य अपने चरमोत्कर्ष पर है और उसी का फल है कि यह किताब राजपाल एंड सन्ज़ से प्रकाशित हो पाई है। राजपाल एंड सन्ज़ की तरफ से प्रकाशक मीरा जौहरी ने अभिनंदन किया।

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