डीएस पालीवाल
Tuesday 29 January 2019 02:47:55 PM
उदयपुर। आलमशाह यादगार समिति उदयपुर के एक कार्यक्रम में आलोचक प्रोफेसर नवलकिशोर ने प्रोफेसर आलम शाह खान की पुस्तक 'मीरां: लोकतात्विक अध्ययन' का लोकार्पण करते हुए कहा है कि मिथकों के पीछे संस्कृति का संजाल होता है और साहित्यिक परिवेश में प्रवेश किए बिना साहित्य को नहीं समझा जा सकता। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर आलम शाह खान ने श्रीकृष्ण भक्तिकाल की मीरा को समझने की नई दिशा दी है। प्रोफेसर नवलकिशोर ने आलम शाह खान के साथ व्यतीत समय को याद करते हुए कहा कि 1989 में जब यह किताब आई थी, तब अचर्चित रह गई थी, अब इसका पुनर्नवा संस्करण भूलसुधार का अवसर देने वाला है। प्रोफेसर माधव हाड़ा ने कहा कि प्रोफेसर आलम शाह खान ने पहलीबार मीरा के व्यक्तित्व को स्थानिक रूपसे समझते हुए मीरा के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टिकोण को समाज के समक्ष रखने का प्रयास किया था। उन्होंने कहा कि मीरा पर किया गया प्रोफेसर आलम शाह खान का अध्ययन पथ प्रदर्शक सिद्ध होगा।
दिल्ली विश्वविद्यालय से आए युवा आलोचक और पुस्तक के पुनर्नवा संस्करण के सम्पादक डॉ पल्लव ने पुस्तक पर सम्पादकीय टिप्पणी करते हुए पुस्तक के पुनः प्रकाशन की आवश्यकता प्रतिपादित की और कहा कि इसमें मीरा को पहलीबार लोक के परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित किया गया है। उन्होंने कहा कि अपने पुरखों का स्मरण और उनके महत्वपूर्ण प्रदेय का उल्लेख इस आत्मकेंद्रित समय में अधिक आवश्यक है, ताकि हम अपनी परम्परा को सही तरीके से समझ सकें। कवयित्री रजनी कुलश्रेष्ठ ने कहा कि मीरा के पदों में कृष्णभक्ति के साथ सामाजिक सरोकारों से सम्बंधित समस्त प्रकार के मानवीय रिश्तों का बखूबी वर्णन उपलब्ध है। उन्होंने प्रोफेसर आलम शाह खान से जुड़े कुछ प्रसंग भी सुनाए।मीरा कन्या महाविद्यालय की पूर्व प्राचार्य मंजू चतुर्वेदी ने कहा कि मीरा की भक्ति एवं कविता में इतनी शक्ति है कि 500 वर्ष से अधिक समय व्यतीत हो जाने के पश्चात भी वह प्रासंगिक है, इसी तरह प्रोफेसर आलम शाह खान की पुस्तक भी 30 साल बाद भी प्रासंगिक है।
युवा कथाकार और प्रोफेसर आलम शाह खान की पुत्री डॉ तराना परवीन और डॉ तब्बस्सुम ने अतिथियों का फूलों से अभिनंदन किया। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की शोधार्थी नेहा ने कार्यक्रम के प्रारंभ में प्रोफेसर आलम शाह खान के जीवन और उनके लेखन का परिचय प्रस्तुत किया। प्रोफेसर आलम शाह खान यादगार समिति के वरिष्ठ सदस्य आबिद अदीब ने उदयपुर के जनतांत्रिक आंदोलनों में धार्मिक सहिष्णुता बनाए रखने में प्रोफेसर आलम शाह खान के योगदान के संस्मरण सुनाते हुए उनके लेखन को याद किया। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार उग्रसेन राव ने किया। कार्यक्रम मेंप्रोफेसर अरुण चतुर्वेदी, शंकरलाल चौधरी, ज्योतिपुंज पंड्या, डॉ बीआर बारूपाल, संजय व्यास, लक्ष्मण व्यास, साहित्यकार एवं प्रतिष्ठित नागरिक उपस्थित थे। गीतकार किशन दाधीच ने आभार व्यक्त किया।