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Monday 18 March 2013 06:40:24 AM
जयपुर। संघ के सरकार्यवाह भैय्याजी जोशी ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (यूएनएचआरसी) की, पिछले साल जेनेवा बैठक से ठीक पहले उन्होंने वक्तव्य प्रसारित किया था कि श्रीलंका सरकार अपने देश के तमिलों की समस्याओं का समाधान करने के लिए सक्रियतापूर्वक कदम उठाकर उनके उचित पुनर्वास, सुरक्षा एवं राजनैतिक अधिकारों को भी सुनिश्चित करे, इसके बाद वह आज यह कहने को बाध्य है कि एक वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद भी धरातल पर स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है। इस कारण से वैश्विक जगत का श्रीलंका सरकार की मंशाओं के प्रति संदेह और गहरा हो गया है।
उन्होंने कहा कि आरएसएस श्रीलंका सरकार को यह स्मरण कराना चाहता है कि वह 30 वर्ष के लिट्टे (एलटीटीई) एवं श्रीलंका सुरक्षा बलों के मध्य हुए संघर्ष के परिणामस्वरूप हुई तमिलों की दुर्दशा पर आँख मूंदकर नहीं बैठ सकता, जिन्हें इस कारण अपने जीवन, रोज़गार, घरों और मंदिरों को भी खोना पड़ा। एक लाख से अधिक तमिल आज अपने देश से पलायन कर तमिलनाडु के समुद्री किनारों पर शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं।
भैय्याजी जोशी ने कहा कि हमारा यह सुनिश्चित मत है कि श्रीलंका में स्थाई शांति तभी संभव है, जब उस देश की सरकार उत्तरी एवं पूर्वी प्रांतों तथा भारत में रहने वाले तमिल शरणार्थियों की समस्याओं पर गंभीरतापूर्वक एवं पर्याप्त रूप से ध्यान दे। उन्होंने भारत सरकार से आग्रह किया है कि वह यह सुनिश्चित करे कि श्रीलंका सरकार विस्थापित तमिलों के पुनर्वास तथा उन्हें पूर्ण नागरिक व राजनैतिक अधिकार प्रदान करने के लिए जिम्मेदारीपूर्वक व्यवहार करे।
उन्होंने कहा कि हमें ध्यान रखना ही होगा कि हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित यह पड़ौसी द्वीप, जिसके भारतवर्ष से हजारों वर्ष पुराने रिश्ते हैं, कहीं वैश्विक शक्तियों के भू-सामरिक खेल का मोहरा बन कर हिंद महासागर का युद्ध क्षेत्र न बन जाए। उस देश के सिंहली व तमिलों के बीच की खाई को और अधिक बढ़ाने के प्रयासों को सफल नहीं होने देना चाहिए, इसी में ही श्रीलंका के संकट का स्थाई हल निहित है।