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सेतु समुंद्रम छुआ भी तो विरोध करेंगे-संघ

भारत में जनसंख्या असंतुलन चिंता का विषय

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Monday 18 March 2013 07:09:30 AM

dr. krishnagopal

जयपुर। जयपुर में केशव विद्यापीठ जामड़ोली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के दूसरे दिन संघ के सह सरकार्यवाह डॉ कृष्णगोपाल ने कहा कि पड़ोसी देशों से घुसपैठ के कारण लगातार भारत में जनसंख्या असतुंलन बढ़ता जा रहा है, यह वृद्धि प्राकृतिक नहीं है। डॉ गोपाल ने सरकार्यवाह सुरेश भैय्याजी जोशी के श्रीलंका के तमिल पीड़ितों की समस्याओं और देश की वर्तमान परिस्थितियों पर जारी दो वक्तव्यों की जानकारी भी दी।
डॉ कृष्णगोपाल ने संवाददाताओं के सवाल पर कहा कि महिला उत्पीड़न के खिलाफ कानून तो अच्छा बनना ही चाहिए, मगर इसके साथ ही समाज, परिवार और शैक्षणिक संस्थाओं में महिलाओं के प्रति आदर भी बढ़ना चाहिए। हर घर, परिवार में संस्कार बढ़ें ऐसे प्रयास समाज में होने चाहिएं। देश की वर्तमान परिस्थिति के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार की अदूरदर्शितापूर्ण नीतियों से आर्थिक संकट और कृषि, लघु उद्योग व अन्य रोज़गार आधारित क्षेत्रों की उपेक्षा आज देश के लिए चिंता का कारण बन कर उभर रही है। देश के उत्पादक उद्योगों की वृ़द्धि दर आज स्वाधीनता के बाद सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है। इस गिरावट से फैलती बेरोज़गारी, निरंतर महंगाई, विदेश व्यापार में घाटा और देश के उद्योग, व्यापार व वाणिज्य पर विदेशी कंपनियों का आधिपत्य, आज देश के लिए गंभीर आर्थिक सकंट व पराश्रयता का कारण सिद्ध हो रहे हैं।
कृषि की उपेक्षा से किसानों में आत्महत्या की घटनाओं, अधिकाधिक किसानों का अनुबंध पर कृषि के लिए बाध्य होने और सरकार की भू-अधिग्रहण की विवेकहीन हठधर्मिता आदि से आज करोड़ों किसानों का जीवन संकटापन्न होने के साथ ही, देश की खाद्य सुरक्षा भी गंभीर रूप से प्रभावित है। उन्होंने कहा कि गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियां जहां हमारी अगाध श्रद्धा का केंद्र हैं, वहीं वे करोड़ों लोगों के जीवन का आधार होने के साथ-साथ, देश के बहुत बड़े क्षेत्र के पर्यावरणीय तंत्र की भी मूलाधार हैं। इन नदियों के प्रवाह को अवरूद्ध करने के सरकारों के प्रयास, उन्हें प्रदूषण मुक्त रखने के प्रति उपेक्षा एवं उनकी रक्षार्थ चल रहे आंदोलनों की भावना को न समझते हुए उनकी उपेक्षा भी गंभीर रूप से चिंतनीय है।
संघ इन सभी जनांदोलनों का स्वागत करता है। कावेरी जैसे नदी जल विवाद भी अत्यंत चिंताजनक हैं। राज्यों के बीच नदी जल विभाजन व्यापक जन हित में, न्याय व सौहार्द पूर्वक होना आवश्यक है। इसी प्रकार प्राचीन रामसेतु, जो करोड़ों हिंदुओं की श्रद्धा का केंद्र होने के साथ-साथ, वहां पर विद्यमान थोरियम के दुर्लभ भंडारों को सुरक्षित रखने में भी प्रभावी सिद्ध हो रहा है, उसे तोड़ कर ही सेतु-समुद्रम योजना को पूरा करने की सरकार की हठधर्मिता, देश की जनता के लिए असह्य है। पूर्व में भी वहां से परिवहन नहर निकालने हेतु उसे तोड़ने के सरकार के प्रयास आरंभ करने पर, रामभक्तों के प्रबल विरोध के आगे झुकना पड़ा है, आज शासन के पचौरी समिति के सुझाए वैकल्पिक मार्ग को अपनाने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर देने के शपथ पत्र से पुनः उसकी नीयत पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है, इसलिए संघ ने सरकार से अनुरोध किया है कि, जन भावनाओं का सम्मान करते हुए उसे तोड़ने का वह दुस्साहस न करे, अन्यथा उसे पुनः प्रबल जनाक्रोश का सामना करना पड़ेगा। ऐसे सभी सामयिक घटनाक्रमों के प्रति सरकार को जन भावनाओं को ध्यान में रखते हुए देश हित में व्यवहार करना चाहिए।

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