श्रीगोपाल नारसन
Monday 18 March 2013 08:03:54 AM
रूड़की। जापान में हिंदी व्यवसाय की भाषा बनती जा रही है। लंबे अर्से से जापानी भी भारतीयों की तरह हिंदी सीख रहे हैं, ताकि हिंदी पढ़ लिखकर विश्व के सबसे बड़े बाजार भारत में हिंदी के बल पर कैरियर की उड़ान भर सकें। जापान में हिंदी की पढ़ाई कर रहे जापानी बच्चों को भारत से रू-ब-रू कराने के लिए उनका एक टूर फरवरी के आखिरी सप्ताह से मार्च के दूसरे सप्ताह तक भारत में रहा। जापान में हिंदी के प्रोफेसर राम प्रकाश द्विवेदी व जापान में दशकों तक हिंदी की सेवा कर चुके सुरेश रितुपूर्ण के मार्गदर्शन में 21 जापानी बच्चे भारत प्रवास के दौरान ऋषिकेश व हरिद्वार और रूड़की आए। रूड़की में प्रोफेसर वेदज्ञ आर्य व प्रतिभा आर्य के घर पहुंचे इन जापानी बच्चों का लोगों ने हार्दिक स्वागत किया।
जापानी बच्चे यहां प्यार और सम्मान पाकर अभिभूत हुए। उन्होंने भारतीय व्यंजन चटखारे लेकर खाए और उनकी खूब तारीफ की। बच्चों ने हरिद्वार और ऋषिकेश के विभिन्न मंदिरों और आश्रमों से प्रभावित होने के किस्से भी सुनाए। प्रोफेसर सुरेश रितपूर्ण ने बताया कि भारत में आने से पहले ये बच्चे अपनी अपनी पसंद के खाने का आर्डर करते थे और आपस में बिना शेयर किए अपना अपना खाना खाते थे, परंतु भारत में बच्चों और बड़ों की आपस में खाना शेयर करने की आदत से प्रभावित होकर ये बच्चे भी अब आपस में अपना खाना शेयर करने लगे हैं, जो उन्हे एक दूसरे के करीब ला रहा है और उनकी मित्रता परवान चढ़ रही है।
मजेदार बात यह है कि मासांहारी होते हुए भी इन बच्चों को भारतीय शाकाहारी खाना मांसाहारी से ज्यादा स्वादिष्ट लगा, तभी वे भारतीय व्यंजनों के स्वाद में इस कदर खोए रहे कि जापानी डिस की डिमांड करना ही भूल गए। जापान में 11 वीं की छात्रा मिकाको और नतसुमी ने कहा कि वे बचपन से ही ताजमहल देखने को लालायित थी, उनकी यह हसरत इस टूर के माध्यम से पूरी हुई तो लगा जैसे स्वपन लोक में आ गए हों। सियोन, यूसूके, मियो, यूरी समेत सभी जापानी छात्राओं ने भारत की संस्कृति, संस्कारों और धरोहरों को पसंद किया। जयपुर, जोधपुर, जैसलमेर, दिल्ली घूम चुके जापानी बच्चों ने हिंदी में ही संवाद करते हुए कहा कि जापान में लोग ताजमहल और महात्मा गांधी के दीवाने हैं, सच पूछिए तो भारत जापान से अच्छा है परंतु ट्रैफिक भारत में ज्यादा होने के कारण कष्टकारी है, जबकि जापान में ट्रैफिक बहुत ही सुगम और व्यवस्थित है।
हिंदी बोलने में खुशी महसूस कर रहे इन जापानी बच्चों ने कई हिंदी फिल्मी गीत भी सुनाए, जिनमें हम होंगे कामयाम एक दिन विशेष रूप से सराहा गया। अंग्रेजी के बजाए जापानी और हिंदी के दीवाने इन बच्चों ने 22 दिन के अपने भारत प्रवास के दौरान भारत को जानने और समझने का एक भी अवसर नहीं खोया, बल्कि पूरे समय भारतीयता के रंग में रंगे रहे। जापानी बच्चों के हिंदी प्रोफेसर रामप्रकाश द्विवेदी का कहना है कि 4 साल की हिंदी पढ़ाई के बाद ये बच्चे फर्राटे से हिंदी बोलने व हिंदी लिखने लगते हैं, जो उनके बेहतर कैरियर में वरदान बनती है।