स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Monday 25 March 2019 04:06:55 PM
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने युवाओं का एक ऐसे नए भारत के निर्माण के लिए आह्वान किया है, जो भय, भ्रष्टाचार, भूख, भेदभाव, अशिक्षा, ग़रीबी, जाति बंधनों और शहरी-ग्रामीण विभाजन से मुक्त हो। वेंकैया नायडू ने युवाओं को रचनात्मक दृष्टिकोण विकसित करने और अपने प्रत्येक कार्य में पूर्णता प्राप्त करने के लिए ध्यान एकाग्र करने को कहा। उन्होंने युवाओं से कहा कि वे पारंपरिक मूल्यों को संरक्षित करना, नकारात्मकता को दूर करना, सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करना, सामाजिक रूपसे कर्तव्यनिष्ठ, शांति प्रिय और स्नेही बनना सीखें। उपराष्ट्रपति ने ये विचार दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रों के साथ बातचीत करते हुए साझा किए। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्ष से भारत लगातार 7 प्रतिशत से अधिक की विकासदर हासिल कर रहा है और आने वाले 10-15 वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था का विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का अनुमान है।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि भविष्य उन लोगों का है, जो सपने देखने की हिम्मत रखते हैं और एक बेहतर कल बनाने के लिए साहस, उदारशीलता और सामर्थ्य रखते हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि हर किसी को एक समावेशी और समृद्ध भारत का निर्माण करने का प्रयास करते हुए रामराज्य की दिशा में प्रवेश करना चाहिए। ज्ञान को भारतीय अर्थव्यवस्था का द्योतक बताते हुए उपराष्ट्रपति ने उच्चशिक्षा प्रणाली को वैश्विक स्तरपर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए इसे पुन: ज्ञान रूपसे उन्नत बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि शिक्षा प्रणाली में बदलाव के माध्यम से औपनिवेशिक मानसिकता को पूरी तरह से खत्म करना चाहिए और देश के वास्तविक इतिहास, प्राचीन सभ्यता, संस्कृति और विरासत की शिक्षा देते हुए छात्रों में राष्ट्रीयता के मूल्यों को स्थापित करना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने इच्छा जताई कि छात्र कृतज्ञता, सहानुभूति, विचारों के साझाकरण और देखभाल के दृष्टिकोण को विकसित करें और उन्हें अपने साथियों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील बनने के लिए कहें। उन्होंने कहा कि छात्रों को सामाजिक बुराइयों, कट्टरता, पूर्वाग्रहों के खिलाफ संघर्ष में अग्रणी रहना चाहिए तथा लैंगिक समानता और समावेश को बढ़ावा देना चाहिए।
भारत के वैश्विक ज्ञान केंद्र के रूपमें पुन: उभरने के प्रयास पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि विशेष रूपसे विश्वविद्यालयों को अपने शिक्षण और कामकाज के तरीकों में बदलाव करना चाहिए एवं छात्रों को निर्बाध रूपसे अपने व्यवसाय अथवा स्वरोज़गार के लिए सक्षम बनना चाहिए। भारत में जनसांख्यिकीय लाभ का उल्लेख करते हुए उन्होंने पर्याप्त कौशल और ज्ञान प्रदान करने पर जोर दिया, ताकि नौकरी चाहने वाले युवा नौकरी के सृजक बन सकें। उन्होंने कहा कि भारत को अपनी जबरदस्त आर्थिक वृद्धि और सदियों पुरानी सभ्यता के मूल्यों के लिए पहचाना और सम्मानित किया जा रहा है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत के 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित करने के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र में 177 देशों की स्वीकृति भारत के इस बढ़ते प्रभाव का प्रमाण है।
उपराष्ट्रपति ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सूचीबद्ध सात पाप-कार्य के बिना धन, विवेक के बिना प्रसन्नता, चरित्र के बिना ज्ञान, नैतिकता के बिना व्यापार, मानवता के बिना विज्ञान, बलिदान के बिना धर्म और सिद्धांत के बिना राजनीति का उल्लेख करते हुए कहा कि ये सूत्र व्यापक स्तरपर व्यक्ति, समाज, देश और दुनिया के नैतिक मूल्यों को आकार देने के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत बन चुके हैं। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने युवाओं को सफलता प्राप्त करने और सपनों को साकार करने के लिए चरित्र, उत्साह, क्षमता, आचरण, करुणा, कड़ी मेहनत और अनुशासन के महत्व का स्मरण दिलाया। उन्होंने छात्रों को मातृ, मातृभाषा, मूल स्थान, मातृभूमि और गुरु ये पांच मूल मंत्र हमेशा याद रखने को कहा।