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Friday 21 June 2019 02:29:35 PM
नई दिल्ली। भारत सरकार ने मेक इन इंडिया पहल के तहत एक बड़े कदम के रूपमें भारतीय नौसेना के लिए छह पी75(i) पनडुब्बियों के निर्माण से जुड़ी परियोजना के लिए संभावित भारतीय रणनीतिक साझेदारों का चयन करने के वास्ते अभिरूचि पत्र आमंत्रित किए हैं। इस परियोजना की कुल लागत 45,000 करोड़ रुपये है। यह रणनीतिक साझेदारी मॉडल वाली दूसरी परियोजना है। पहली परियोजना नौसैना के उपयोग वाले 111 हेलिकॉप्टरों की खरीद से संबंधित है। नई परियोजना देश में स्वदेशी तकनीक से पनडुब्बियों के डिजाइन और निर्माण की क्षमता को बढ़ावा देगी और पनडुब्बी निर्माण और डिजाइन की अत्याधुनिक तकनीक भी साथ लेकर आएगी। परियोजना को रक्षा खरीद परिषद ने 31 जनवरी 2019 को मंजूरी दी थी। परियोजना के लिए रणनीतिक साझेदारों के चयन से संबंधित अभिरूचिपत्र रक्षा मंत्रालय और भारतीय नौसेना की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया है। इसे दो सप्ताह में जारी कर दिया जाएगा।
संभावित रणनीतिक साझेदारों को मूल रक्षा उपकरण निर्माताओं के साथ मिलकर देश में स्वदेशी तकनीक से पनडुब्बियों के डिजाइन और निर्माण इकाइयां लगाने की अनुमति दी गई है, ताकि भारत को विश्व में पनडुब्बी निर्माण के बड़े केंद्र के रूपमें स्थापित किया जा सके। परियोजना के तहत सभी छह पनडुब्बियों का निर्माण चयनित रणनीतिक साझेदारों को मूल रक्षा उपकरण निर्माताओं के साथ मिलकर करना होगा। इसके अतिरिक्त परियोजना के तहत भारतीय नौसेना के पास छह और पनडुब्बियों के निर्माण का विकल्प भी होगा। यह परियोजना देश में न केवल मूल पनडुब्बी या जहाज निर्माण उद्योग को बढ़ावा देने में मदद करेगी, बल्कि पनडुब्बियों से संबंधित कलपुर्जे, प्रणालियों एवं उपकरण बनाने वाले विनिर्माण इकाईयों को भी बढ़ावा देगी, जिससे मुख्य रूपसे कलपुर्जे बनाने वाले सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग लाभांवित होंगे। संभावित रणनीतिक साझेदारों द्वारा दो महीने के भीतर अभिरूचि पत्र का जवाब देने की उम्मीद है।
पनडुब्बियों के निर्माण की परियोजना के लिए साझेदारों के रूपमें भारतीय कंपनियों का चयन जहाज निर्माण क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता क्षमता और वित्तीय स्थिति के आधार पर किया जाएगा। चयनित कंपनियों को भारतीय नौसेना की आवश्यकताओं के अनुरूप पनडुब्बियों के निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के मानदंडों को पूरा करना होगा। कुल मिलाकर इसका उद्देश्य सशस्त्रबलों की भविष्य की जरूरतों के लिए जटिल हथियार प्रणालियों के डिजाइन, विकास और निर्माण के लिए निजी क्षेत्र में स्वदेशी क्षमताओं का विकास करना है। यह व्यापक राष्ट्रीय उद्देश्यों को पूरा करने, आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने और रक्षा क्षेत्र को सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ पहल के साथ जोड़ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।