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Monday 8 July 2019 02:01:44 PM
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा है कि भारतीय दर्शन के उत्कृष्ट विचारों को आमजन तक पहुंचाने के लिए देश में सांस्कृतिक पुनर्जागरण के साथ ही जागरुकता और ज्ञान साझा करने के लिए व्यापक स्तरपर अभियान चलाने की आवश्यकता है। उन्होंने शेयर और केयर को भारतीय दर्शन का मूल बताते हुए एक ऐसे समाज के निर्माण की आवश्यकता पर बल दिया, जो वास्तव में भारतीय दर्शन को परिलक्षित करता हो। अंग्रेजी और भारत की नौ भाषाओं में लिखी गई भारतीय ज्ञान शास्त्र पर पुस्तक विवेकदीपिनी के विमोचन पर उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह भारतीयों का सौभाग्य है कि आदि शंकराचार्य और स्वामी विवेकानंद जैसे आध्यात्मिक गुरूओं ने हमारे देश के नैतिक मूल्यों की नींव रखी।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि आदि शंकराचार्य के प्रश्नोत्तर रत्नमालिका में भारतीय ज्ञान पर जो कुछ लिखा गया है, उसकी धर्म और समुदाय विशेष से इतर सार्वभौमिक प्रासंगिकता है और वे विश्व के प्रति भारतीय सोच के नैतिक दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने कहा कि ज्ञान की ये सूक्तियां वास्तव में सार्वभौमिक हैं, यह एक ऐसी बौद्धिक विरासत है, जिसपर हर भारतीय को न केवल गर्व करना चाहिए, बल्कि रोजमर्रा के जीवन में इन मूल्यों को आत्मसात भी करना चाहिए। वेंकैया नायडू ने कहा कि वे चाहते हैं कि वेदांत भारती जैसे गैर सरकारी संगठनों के साथ देशभर के स्कूल और कॉलेज भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में समाहित सहिष्णुता, समावेश, सद्भाव, शांति, कल्याण, धार्मिक आचरण, उत्कृष्टता और सहानुभूति के सार्वभौमिक संदेश को फैलाने का काम करें। उन्होंने कहा कि भारत के प्राचीन ज्ञान का सकारात्मक प्रभाव पूरी दुनिया अनुभव करती है और यह एक ऐसी कड़ी है, जो हमें अतीत से जोड़ती है। उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा बहुमूल्यखजाना है, जो हमें वैश्विक स्तरपर शांति, नैतिक आचरण और टिकाऊ विकास का प्रतिनिधित्व करने के लिए प्रेरित करता है। उन्होंने विवेकदीपिनी को नौ भारतीय भाषाओं में अनुदित करने के लिए प्रकाशक के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि प्राचीन भारतीय ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए आगे ऐसे और प्रयास करना बहुत जरूरी हैं।
वेंकैया नायडू ने आदि शंकाराचार्य के ज्ञानपूर्ण संदेशों का अंग्रेजी, कन्नड़, हिंदी, तमिल, बांग्ला, तेलुगु, मलयालम, मराठी, ओडियाऔर गुजराती भाषाओं के माध्यम से प्रचार-प्रसार करने के लिए वेदांत भारती की भी सराहना की। उन्होंने कहा कि ये संदेश लोगों तक अपने सही अर्थों में पहुंचने चाहिएं और सभी भारतीय भाषाओं में विवेकदीपिनी का अनुवाद किया जाए। मातृभाषाओं के उपयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि भाषा और संस्कृति का आपस में गहरा संबंध है। लैंगिक और अन्य सभी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने का आह्वान करते हुए उन्होंने जातिवाद को समाज का सबसे बड़ा अभिशाप बताया और कहा कि जितनी जल्दी हो सके इसे खत्म कर दिया जाना चाहिए। योगनादेश्वर सरस्वती मठ के पीठाधिपति श्रीश्री शंकर भारती स्वामी, वेदांत भारती के निदेशक डॉ श्रीधर भट आइनाकाई, वेदांत भारती के ट्रस्टी ए रामास्वामी, एसएस नागानंद, सीएस गोपालकृष्ण और गणमान्य नागरिक भी इस अवसर पर उपस्थित थे।