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Tuesday 3 September 2019 01:40:23 PM
वाराणसी। खादी और ग्रामोद्योग आयोग ने वाराणसी के सेवापुरी में पहला टेराकोटा ग्राइंडर लॉंच किया है। यह मशीन बेकार और टूटे बर्तनों का पाउडर बनाएगी, जिसका बर्तन निर्माण में पुनः उपयोग किया जा सकेगा। केवीआईसी के चेयरमैन सुनील कुमार सक्सेना ने इस अवसर पर कहा है कि बर्तन निर्माण में लगे लोगों के लिए यह मशीन एक वरदान सिद्ध होगी। उन्होंने कहा कि पहले बेकार पड़े मिट्टी के बर्तनों को खल-मूसल से पाउडर बनाया जाता था और इसके बारिक पाउडर को साधारण मिट्टी में मिलाया जाता था, एक निश्चित मात्रा में इस पाउडर को मिलाने से नए तैयार होने वाले बर्तन अधिक मजबूत होते हैं। उन्होंने कहा कि इस टेराकोटा ग्राइंडर के माध्यम से बेकार और टूटे-फूटे बर्तनों का पाउडर बनाने का कार्य तेजी से होगा, इससे लागत में भी कमी आएगी और बर्तन बनाने वाली मिट्टी की कमी की समस्या भी दूर होगी।
केवीआईसी के चेयरमैन ने कहा कि वाराणसी क्षेत्र में बर्तन बनाने वाली मिट्टी की कीमत 2600 रुपये प्रति ट्रेक्टर ट्रॉली है, यदि मिट्टी में 20 प्रतिशत टेराकोटा पाउडर मिलाया जाता है तो इससे 520 रुपये की बचत होगी, इससे गांवों में रोज़गार के अवसर सृजत होंगे। इस ग्राइंडर को केवीआईसी के चेयरमैन ने डिजाइन किया है और इसका निर्माण राजकोट की एक इंजीनियरिंग इकाई ने किया है। सुनील कुमार सक्सेना ने गांव के लोगों में बिजली से चलने वाले 200 बर्तन बनाने वाला पहिये वितरित किए। सुनील कुमार सक्सेना ने कहा कि इससे 900 नई नौकरियां पैदा होंगी और वाराणसी स्टेशन में टेराकोटा उत्पादों की बढ़ती मांग भी पूरी होगी। उन्होंने कहा कि रेल मंत्रालय ने क्षेत्रीय रेलवे और आईआरसीटीसी को पर्यावरण अनुकूल टेराकोटा उत्पादों के प्रयोग को बढ़ावा देने को कहा है, इन उत्पादों में कुल्लड़, गिलास और प्लेट शामिल हैं। वाराणसी और रायबरेली रेलवे स्टेशनों पर खान-पान की इकाईयों को टेराकोटा उत्पादों में यात्रियों को खाद्य पदार्थ देने का सुझाव दिया गया है।
केंद्रीय सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्री नितिन गडकरी ने 400 से प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर कुल्लड़ और ऐसे कई टेराकोटा उत्पादों के उपयोग का प्रस्ताव दिया है। स्वच्छ भारत अभियान के तहत केवीआईसी ने जयपुर में प्लास्टिक मिश्रित कागज का निर्माण प्रारंभ किया है। यह निर्माण कार्य री-प्लान परियोजना के तहत कुमारप्पा राष्ट्रीय हस्त निर्मित कागज संस्थान में किया जा रहा है। इस परियोजना के तहत प्लास्टिक का संग्रह किया जाता है फिर इसकी सफाई होती है और इसे मुलायम बनाया जाता है, फिर इसे कागज के कच्चे माल में 80 प्रतिशत (लुगदी) और 20 प्रतिशत प्लास्टिक मिलाया जाता है। संस्थान ने सितंबर 2018 से अबतक 6 लाख से ज्यादा हस्तनिर्मित, प्लास्टिक मिश्रित कैरी बैगों की बिक्री की है।