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Monday 25 May 2020 02:59:36 PM
नई दिल्ली/ श्रीनगर। केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने विपक्षी राजनीतिक दलों पर आरोप लगाया है कि वह वोट बैंक हासिल करने के लिए जम्मू-कश्मीर में जनसंख्या संरचना को लेकर हौआ खड़ा कर रहा है। उन्होंने विपक्ष की मंशा को उजागर करते हुए कहा कि अब यह साफ है कि जम्मू-कश्मीर में नई अधिवास नियम अधिसूचना का विरोधियों के बहिष्कार करने से कुछ सीमित वोट बैंक के सहारे फलने-फूलने का मौका जारी नहीं रहेगा जैसा कि पहले किया जाता था। जम्मू-कश्मीर के लिए नए अधिवास कानून पर एक निजी समाचार चैनल के साथ साक्षात्कार में डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में कुछ परिवारों ने पीढ़ी दर पीढ़ी अपना आधिपत्य बनाए रखने में सफलता पाई है, इसके लिए उन परिवारों ने सिर्फ उन्हीं लोगों को अपनी वोट सूची में शामिल किया, जिन्हें वे अपने पक्ष में करने में सक्षम थे, बाकी उन लोगों को वोटर सूची में शामिल नहीं किया, जिनके बारे में वे सोचते थे कि वे उनकी चाल में नहीं फंसेंगे और अपनी मर्जी से वोट करेंगे।
राज्यमंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में यह साजिश उस हद तक जारी रही, जबतक उन्होंने बाहर से आए लोगों को न सिर्फ नागरिकता लेने या वोट का अधिकार हासिल करने से वंचित रखा, बल्कि 1947 से ही बड़ी संख्या में जम्मू-कश्मीर में आकर बसे लोगों को वोट का अधिकार लेने ही नहीं दिया और यह स्वत: सिद्ध तर्क देते रहे कि ये लोग नागरिकता या वोट का अधिकार पाने के पात्र ही नहीं हैं, क्योंकि वे तबके पश्चिम पाकिस्तान के शरणार्थी हैं। डॉ जितेंद्र सिंह ने तथाकथित जनसंख्या संरचना के पैरोकारों से कड़े शब्दों में प्रश्न किया कि जनसंख्या संरचना पर बोलने की उनके पास क्या नैतिकता है, जिन्होंने कश्मीरी पंडितों के पूरे समाज के कश्मीर घाटी से पलायन पर चुप्पी साधते हुए जनसंख्या संरचना पर खुद सबसे बड़ा हमला किया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जो कश्मीर की समग्र संस्कृति की शपथ लेते थे, खुद वही लोग उस समग्र संस्कृति की हत्या के दोषी हैं, जो घाटी में कश्मीरी पंडित समाज की उपस्थिति से ही जिंदा थी।
डॉ जितेंद्र सिंह ने पूर्वानुमान करते हुए कहा कि विपक्ष अधिवास कानून का विरोध कर सकता है, लेकिन उनके बच्चे दिल की गहराई से इस बदलाव का समर्थन करेंगे और लंबी अवधि में वे खुद को भाग्यवान समझेंगे। उन्होंने कहा कि इतिहास हमें ही सही ठहराएगा। उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में लिए गए इस फैसले की विभिन्न खासियतों का उल्लेख किया। डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह न सिर्फ अमानवीय है, बल्कि संवैधानिक औचित्य और बराबरी के सिद्धांत के खिलाफ भी है कि अपने जीवन का 30 से 35 वर्ष जम्मू-कश्मीर के लोगों की सेवा करने में लगाने वाले अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों को सेवानिवृत्ति के बाद निर्दयता से कह दिया जाए कि अपना सामान उठाओ और यहां से जाओ और रहने के लिए जम्मू-कश्मीर छोड़कर भारत में कहीं भी अपना नया ठिकाना तलाश करो।
डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि विडंबना यह है कि यहां ऐसा उस वक्त होता था, जब भारत के कुछ राज्य इन अधिकारियों को न सिर्फ आवासीय सुविधा देते थे, बल्कि सस्ते दाम पर प्लॉट भी उपलब्ध कराते थे। उन्होंने कहा कि उन बच्चों की स्थिति तो और भी बुरी होती थी, जो जम्मू-कश्मीर में जन्मे, पले-बढ़े और स्कूल की पढ़ाई भी पूरी की, लेकिन बाद में उच्च शैक्षणिक संस्थानों में नामांकन के लिए वे आवेदन ही नहीं कर सकते थे। डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह कुप्रबंध और विषमता है, जिसे दुरुस्त करने में हमें 70 साल का इंतजार करना पड़ा है। उन्होंने कहा कि शायद यह भगवान की इच्छा थी कि प्रधानमंत्री के रूपमें केवल नरेंद्र मोदी ही जम्मू-कश्मीर के उद्धार का यह महान कार्य पूरा करें।