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Tuesday 26 May 2020 01:23:53 PM
नई दिल्ली। कलाकृतियों के प्रतिष्ठित और विख्यात मूर्तिकार रामकिंकर बैज की 115वीं जयंती मनाने के लिए केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय ने ‘रामकिंकर बैज मूक बदलाव और अभिव्यक्तियों के माध्यम से यात्रा’ शीर्षक से आभासी यात्रा का आयोजन किया। गौरतलब है कि राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय और कलाकृतियों को चाहने वालों को इस प्रतिष्ठित कलाकार की 639 कलाकृतियों पर बड़ा गर्व है। आभासी यात्रा के दौरान एनजीएमए के आरक्षित संग्रह से रामकिंकर बैज की उन उत्कृष्ट कलाकृतियों को दर्शाया गया है, जिन्हें इन पांच अलग-अलग थीम की श्रृंखला में वर्गीकृत किया गया है-चित्र, जीवन का अध्ययन, सार एवं संरचनात्मक रचना, प्रकृति का अध्ययन एवं परिदृश्य और मूर्तियां।
एनजीएमए के महानिदेशक अद्वैत चरण गडनायक ने इस अवसर पर कहा है कि यह आभासी यात्रा आधुनिक भारत के एक प्रतिष्ठित कलाकार को श्रद्धांजलिस्वरूप है, जिन्हें सबसे महान मूर्तिकारों एवं चित्रकारों में शुमार किया जाता है। इसका आयोजन विशेष रूपसे युवा कलाकारों के लिए किया गया है, ताकि इस कलाकार के आलंकारिक और भावात्मक दोनों ही रूपों के साथ किए गए इस तरह के बेकरार प्रयोगों की गहरी समझ उनमें विकसित हो सके। अद्वैत चरण गडनायक ने कहा कि वे लॉकडाउन में इस वर्चुअल टूर को शुरु करने की परिकल्पना और इसका विशिष्ट स्वरूप तैयार एवं विकसित करने के लिए आईटी प्रकोष्ठ के अथक प्रयासों पर गर्व करते हैं, जिसका उद्देश्य सम्मानित आगंतुकों को एनजीएमए के प्रतिष्ठित संग्रह से रू-ब-रू होने का अवसर प्राप्त प्रदान करना है। आधुनिक भारत के सबसे मौलिक कलाकारों में से एक रामकिंकर बैज एक प्रतिष्ठित मूर्तिकार, चित्रकार और ग्राफिक कलाकार थे।
रामकिंकर बैज (1906-1980) का जन्म पश्चिम बंगाल के बांकुरा में एक ऐसे परिवार में हुआ था, जिसकी आर्थिक एवं सामाजिक हैसियत बहुत कमजोर थी, लेकिन वह अपने दृढ़संकल्प के बल पर भारतीय कला के सबसे प्रतिष्ठित प्रारंभिक आधुनिकतावादियों में स्वयं को शुमार करने में कामयाब रहे। वैसे तो उनकी कलाकृतियों को शुरुआत में लोकप्रिय होने में थोड़ा इंतजार करना पड़ा, लेकिन ये धीरे-धीरे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तरों पर लोगों का ध्यान खींचने में कामयाब होने लगीं। उन्हें एक के बाद एक कई राष्ट्रीय सम्मान मिले। वर्ष 1970 में भारत सरकार ने भारतीय कला में उनके अमूल्य योगदान के लिए उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया। वर्ष 1976 में उन्हें ललित कला अकादमी का फेलो बनाया गया। कोलकाता में कुछ समय तक बीमार रहने के बाद रामकिंकर ने 2 अगस्त 1980 को अंतिम सांस ली।
आभासी यात्रा में पांच अलग-अलग श्रेणियों और तीन स्केच पुस्तकों में इस प्रतिष्ठित कलाकार की 520 कलाकृतियों को दर्शाने के अलावा अतीत की स्मृति पर प्रकाश डालने के लिए जीवनस्मृति भी शामिल है। आभासी यात्रा के आखिर में आगंतुक https://so-ham.in/ramkinkar-baij-journey-through-silent-transformation-and-expressions/ पर एनजीएमए के बैनर तले प्रथम सांस्कृतिक मीडिया प्लेटफॉर्म पर वार्तालाप में शामिल हो सकते हैं और आभासी यात्रा की सामग्री (कंटेंट) पर आधारित एक प्रश्नोत्तरी में भाग ले सकते हैं।