Saturday 11 July 2020 06:25:19 PM
दिनेश शर्मा
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के कानपुर के बिकरू गांव में लोमहर्षक पुलिस हत्याकांड में वांछित गैंगेस्टर विकास दुबे के अंत पर एक तकिया कलाम चल रहा था कि अंत भला सो भला, लेकिन विकास दुबे के आतंक से निपटने के पुलिस के तौर-तरीके ने योगी सरकार के थोड़े बहुत किए-धरे को मिट्टी में मिला दिया है। मामले की सारी कहानी ही उलट गई है। दुनिया कह रही है और मान रही है कि यूपी पुलिस और एसटीएफ ने कानपुर में विकास दूबे का 'फर्जी एनकाउंटर' किया है यानी उसे मार डाला है, जिससे बड़े-बड़ों के राज दफन हो गए हैं, बल्कि योगी आदित्यनाथ सरकार और भारतीय जनता पार्टी को भी बुरा फंसा दिया है। विकास दुबे के 'फर्जी एनकाउंटर' को लेकर योगी सरकार में गहरे मतभेद और गतिरोध का ज़बरदस्त लोकापवाद उठा हुआ है। अपवाद को छोड़कर विकास दुबे के मारे जाने के शोर में उसके लोगों के हाथों शहीद हुए आठ पुलिसकर्मियों की शहादत की कहीं कोई चर्चा है? नहीं है। सरकार, राजनीतिक दलों, मीडिया और पुलिस में चर्चा केवल विकास दुबे और उसके आपराधिक एवं आर्थिक साम्राज्य की हो रही है। शहीद पुलिस वाले और उनके परिजन तो सीन से गायब हो चुके हैं।
उत्तर प्रदेश पुलिस और एसटीएफ के इतिहास में विकास दुबे का 'फर्जी एनकाउंटर' उसकी सबसे बड़ी छीछालेदर और नाकामियों के लिए याद किया जाएगा, इस मामले की एसआईटी जांच के 'सरकारी परिणाम' चाहे जो भी हों और क्या होंगे यह भी सभी को अभी से पता है। सोशल मीडिया और टीवी चैनलों के इस सनसनीख़ेज दौर में पुलिस और एसटीएफ के एनकाउंटर रणनीतिकार यह भूल गए कि सुईं गिरने की आवाज़ भी पलभर में जनसामान्य को सुनाई देगी, फिर यह तो एक ऐसा विफल कारनामा है, जिस पर सभी की नज़र थी और जिसके परिणामस्वरूप योगी सरकार और उसकी राजनीतिक पार्टी भाजपा के खिलाफ ऐसा तूफान उठ खड़ा हुआ है, जिसकी आगे चलकर भयानक प्रतिक्रियाएं होंगी। मनोविज्ञान कहता है कि इस घटनाक्रम को देखकर फर्जी मुकद्में झेल रहे और पुलिस से रोज-रोज नाहक ही उत्पीड़ित न जाने कितने 'विकास दुबे' बन जाएंगे, जो अपना अंत जानकार सीधे पुलिस पर हमले करेंगे। उत्तर प्रदेश के एडीजी कानून व्यवस्था इस फर्जी एनकाउंटर को महिमामंडित करने में लगे हुए हैं, मगर पुलिस ने उसका जिस तरह घर ढहाकर और उसके बाद जो मुठभेड़ें दिखाईं, उसकं बाद विकास दूबे का 'एनकाउंटर' दिखाया, वह एक तूफान बन गया है, जो सरकार में कईयों को घेर रहा है।
जस्टिस आनंद नारायण मुल्ला ने अपने समय में पुलिस के अत्याचारों से जुड़े एक मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस के बारे में कहा था कि 'यूपी पुलिस अपराधियों का एक सुसंगठित गिरोह है, जिसे मैं अपने हाथ की रेखाओं की तरह जानता हूं'। उनके इस कथन की बानगी इन दस दिनों में भी कायम दिखाई पड़ती है। कुछ महीनों में योगी सरकार की नाक के नीचे अबतक अनेक हत्याएं हो चुकी हैं। तेरह लोमहर्षक हत्याएं तो ये ही हैं, जिनमें आठ पुलिसवाले हैं, जिन्हें विकास दुबे और उसके लोगों ने मारा है और पांच विकास दुबे सहित उसके नाते-रिश्तेदार हैं, जिन्हें पुलिस ने उठाकर मुठभेड़ बताकर मार डाला है। घटना यह बताई जा रही है कि सीओ बिल्हौर देवेंद्र मिश्र बिकरू गांव में गैंगेस्टर विकास दुबे के घर पर एक मामले में रात में दबिश देने या उसको घेरकर उसका सुनियोजित एनकाउंटर करने के उत्साह में पुलिसबल के साथ पहुंचे और उनकी और पुलिसबल के आठ जवानों की भी विकास दुबे एवं उसके लोगों ने हत्या कर दी। इसके बाद पुलिस ने बदला लेते हुए विकास दुबे के करीबी लोगों को उठाकर उनमें से चार लोगों की हत्या कर दी, जिसे कानपुर पुलिस एनकाउंटर बता रही है। कानपुर में बिकरू गांव में 2/3 जुलाई की रात हुए इस पुलिस हत्याकांड का नामजद मुख्य अभियुक्त विकास दुबे उज्जैन में महाकाल मंदिर पहुंचकर आत्मसमर्पण करते हुए गिरफ्तार हुआ था।
उत्तर प्रदेश पुलिस और एसटीएफ ने अपनी योजना के अनुसार विकास दुबे को मध्य प्रदेश से ट्रांजिट रिमांड पर लखनऊ लाते समय कानपुर के पास एक नाटकीय मुठभेड़ में ढेर किया, जिसकी आशंका उसकी गिरफ्तारी के समय से की जा रही थी, जिसकी देशभर का मीडिया पहले से ही आशंका जता रहा था। अब यह मामला राजनीतिक रंग ले चुका है और योगी सरकार पर हमले के रूपमें अपने चरम पर है। सोशल मीडिया पर इस मामले की गूंज देश के बाहर तक सुनाई दे रही है। कलतक जो विकास दूबे पुलिस कर्मियों की हत्या करने के कारण सोशल मीडिया पर आतंक और नफरत का प्रतीक बना था, उसके फर्जी एनकाउंटर के बाद कहानी ही उलटती जा रही है। यूपी पुलिस और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ निशाने पर हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मायावती, कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा और अनेक नेताओं ने इस संपूर्ण मामले की जांच हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट के जज से कराने की मांग की है। योगी सरकार ने एसआईटी को यह जांच सौंपी है और मजे की बात यह है कि जो डीआईजी जे रवींद्र गौड़ इस मामले की जांच करेंगे, उनपर पहले से ही फर्जी एनकाउंटर का आरोप है, जिसकी सीबीआई जांच चल रही है। दरअसल उत्तर प्रदेश के बरेली में 30 जून 2007 को एक एनकाउंटर हुआ था, जिसमें दवा कारोबारी मुकुल गुप्ता और पंकज सिंह को बैंक लूटने के दौरान मारने का दावा किया गया था। लिहाजा एसआईटी में डीआईजी जे रवींद्र गौड़ के इस मामले का जांच अधिकारी बनाते ही सवाल उठ गए हैं।
उत्तर प्रदेश राज्य में बड़े से छोटे स्तर तक माफियाओं जैसी पुलिस की निरंकुशता, जहां-तहां निर्दोष लोगों के उत्पीड़न और मुठभेड़ में मारदेने या फर्जी आपराधिक मुकद्में में फंसाने की धमकियां, यूपी एसटीएफ टीमों के अनेक लोगों द्वारा भारी धन की वसूली और उनकी शिकायतों पर कोई भी कार्रवाई नहीं होने से जनसामान्य का आक्रोश अपने चरम पर है। स्वयं भाजपा और उसके सहायक संगठनों के कार्यकर्ता भगवा गमछाधारी स्थानीय प्रशासन से अपमानित दर अपमानित होकर निराश होकर अपने घर बैठ गए हैं। राज्य में अंडरवर्ल्ड सब तरफ फैला और छाया हुआ है। जनसामान्य तक में यह चर्चा आम है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गृहमंत्री होते हुए पुलिस को नहीं संभाल पा रहे हैं। डीएम, एसएसपी, एसपी, एसडीएम, तहसीलदार, लेखपाल, थानेदार और सिपाही तकपर उनके 'सुशासन' का कोई भी प्रभाव नज़र नहीं आ रहा है। यही हाल राजधानी लखनऊ में शासन स्तरीय अनेक कनिष्ठ और वरिष्ठ नौकरशाहों एवं अधिकारियों का है जो 'खुलेआम मनमानी' कर रहे हैं। योगी आदित्यनाथ के 'व्यवहार' के कारण मंत्रिमंडल के अनेक मंत्री, सांसद और विधायक असहाय अवस्था में हैं, जिनका कई बार मुख्यमंत्री की कार्यप्रणाली के प्रति आक्रोश सार्वजनिक भी हो चुका है।