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Friday 24 July 2020 01:58:52 PM
पणजी। मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य केंद्र की प्रोफेसर आशा बानो सोलेटी ने कहा है कि लॉकडाउन या घर पर रहने की पाबंदियों के चलते सामान्य जीवन तो प्रभावित हुआ ही है, इससे लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी काफी बुरा असर पड़ा है और यह सच्चाई हर किसी के बारे में है। प्रोफेसर आशा बानो ने बताया कि बच्चों और छात्रों, वयस्कों, बुजुर्गों, महिलाओं, एलजीबीटीक्यूआई समुदाय, स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों, जरूरी सेवा प्रदाताओं, आर्थिक रूप से कमजोर समूहों, शोक संतप्त परिवारों और निश्चित रूप से दिव्यांगों और जिनका पहले से ही मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं है, कोविड-19 ने इनमें से कई के दिमाग पर बुरा असर डाल दिया है। वेबिनार चर्चा के संचालक पीआईबी मुंबई के डिप्टी डायरेक्टर दीप जॉय मम्पीली ने बताया है कि भारत सरकार ने कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में मानसिक स्वास्थ्य को भारत की राष्ट्रीय प्रतिक्रिया के एक अभिन्न अंग के रूपमें अपनाया है।
प्रोफेसर आशा बानो सोलेटी गोवा कॉलेज ऑफ होम साइंसेज (जीआईएचएस) पणजी के सहयोग से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) और क्षेत्रीय संपर्क कार्यालय (आरओबी) कार्यालयों (महाराष्ट्र और गोवा) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 'कोविड-19 के समय में मानसिक स्वास्थ्य' विषय पर वेबिनार को संबोधित कर रही थीं। विशेषज्ञों के पैनल में टाटा मेमोरियल अस्पताल मुंबई की क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक और साइको-ऑन्कोलॉजिस्ट सविता गोस्वामी भी शामिल थीं, जिन्होंने लोगों के विभिन्न समूहों द्वारा अनुभव की जाने वाली मानसिक स्वास्थ्य दशाओं के प्रकारों के बारे में बताया और इससे निपटने की सलाह भी दी। इसके अलावा जीआईएचएस में मानव विकास की सहायक प्रोफेसर लारिसा रोड्रिग्स ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि मौजूदा महामारी के दौरान खासतौर से छात्र समुदाय मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से कैसे निपट रहे हैं।
प्रोफेसर आशा बानो सोलेटी ने कहा कि कोविड-19 के चलते एक 'तूफान' सा आ गया है, कई तरह की प्रतिकूल परिस्थितियों से मुश्किल हालात बने हैं। उन्होंने कहा कि क्वारंटीन और इस तरह की रोकथाम रणनीतियों के नतीजों पर हाल के एक अध्ययन में पाया गया है कि अवसाद, चिंता विकार, मूड डिसऑर्डर, घबराहट, कलंक का आरोप, आत्म नियंत्रण की कमी पृथकवास में रहे लोगों में ज्यादा पाई जा रही है। एक अन्य समीक्षा में यह बात भी सामने आई है कि मानसिक स्वास्थ्य तनावों के परिणामस्वरूप लंबे समय तक स्थायी तनाव के लक्षण जैसे-भ्रम, जनता में गुस्सा और ऐसे कुछ और मामले सामने आए हैं। इस घटना से जुड़ी अन्य समस्याओं में घरेलू हिंसा में बढ़ोत्तरी शामिल हुई है, जो महामारी में बहुत जल्दी सामने आने लगी। मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने कहा कि यह न्यू नॉर्मल में बहुत सामान्य है। प्रोफेसर आशा बानो सोलेटी ने कहा कि वैसे इन समस्याओं को दूर करने के लिए सरकार और अन्य लोगों के द्वारा इंटरनेट और संचार आधारित सेवाओं के माध्यम से समुदाय तक पहुंचने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन मानसिक स्वास्थ्य संसाधनों पेशेवर मदद की उपलब्धता और पहुंच एक चुनौती है, खासतौर से ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में।
प्रोफेसर आशा बानो सोलेटी ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानसिक स्वास्थ्य नीति की रूपरेखा में खासतौर से इस महामारी के लिए संपूर्ण सामुदायिक दृष्टिकोण और हर किसी के मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से लड़ने के लिए ज्यादा से ज्यादा संसाधन तैयार करने का सुझाव दिया गया है। उन्होंने बताया कि डब्लूएचओ ने महामारी से संबंधित प्रतिकूलताओं को कम करने के लिए, जो मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान और गंभीर रूपसे बीमार होने का कारण बन सकते हैं। उन्होंने एक प्रो-एक्टिव संपर्क की वकालत की है और मानसिक स्वास्थ्य पर मैनुअल और वीडियो डॉक्यूमेंट्री को साझा करना भी जुड़ने का एक तरीका है। लॉकडाउन के मानसिक प्रभाव पर सुश्री रोड्रिग्स का कहना था कि सामाजिक दूरी की नई अवधारणा में जो चीज खो गई है, उसके लिए लोगों को एक-दूसरे से जुड़ने के नए तरीके, समायोजन की नई तरकीब ढूंढनी होगी, जिससे अकेलापन या अवसाद दूर हो सके, हालांकि सकारात्मक अंदाज में उन्होंने कहा कि यह देखा गया है कि समुदाय तेजी से एक-दूसरे के साथ जुड़ रहे हैं, लोग अब अपने उन शौक को पूरा कर रहे हैं, जिन्हें उन्होंने नजरअंदाज कर दिया था।
विभिन्न समूहों के मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं पर बोलते हुए सविता गोस्वामी ने कहा कि आज कोविड से भारत सहित पूरी दुनिया में अनिश्चितता और असहाय का माहौल है, जिसका लोग सामना कर रहे हैं, कोविड असाधारण है जिसका लोगों ने पहले कभी अनुभव या सामना नहीं किया, हरसंभव सावधानियां बरतने के बावजूद लोगों में संपर्क में आने और अनजाने में संक्रमण फैलने का डर बना हुआ है। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन ने हमारे सामाजिक व्यवहारों को भी पूरी तरह से बदल दिया है, काम करने की प्रक्रियाओं में बदलाव और नई अवधारणा जैसे 'वर्क फ्रॉम होम' जो पहले इतनी लोकप्रिय नहीं थी, अब एक सामान्य रूप से अपनाई जाने वाली व्यवस्था बन गई है, व्यसनों और शराब पीने में भी काफी वृद्धि हुई है, संक्षेप में कहें तो इन सभी स्थितियों ने संघर्षों, नए समायोजन, अकेलेपन और समझ के मुद्दों को जन्म दिया है, चरम स्थिति में यह निराशा और आत्महत्या की प्रवृत्ति की ओर ले जाता है। इन मानसिक स्वास्थ्य चिंताओं को दूर करने के लिए सविता गोस्वामी ने वेबिनार में सुझाव भी प्रस्तुत किए। सविता गोस्वामी ने कहा कि अपने, परिवार और पूरे समुदाय के लिए ज्यादा करुणा और सहानुभूति वाले दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
सविता गोस्वामी ने कहा कि लोगों के विभिन्न समूहों बच्चों, बुजुर्गों को स्थिति के बारे में इस तरह से शिक्षित करना जरूरी है ताकि वह आसानी से समझ सकें। दोस्तों और परिवार के साथ समस्याओं को लेकर बात करें। लोगों को पेशेवर मदद और मार्गदर्शन लेने में संकोच नहीं करना चाहिए। केवल सत्यापित और भरोसेमंद सूचना के स्रोतों पर ही ध्यान दें। शारीरिक व्यायाम करें, एक दिनचर्या बनाएं, ऐसी गतिविधियां करें जो आपको आनंद दें, इससे बदले में सकारात्मक विचार बनते हैं। परिवार के साथ गतिविधियां कर संबंध मजबूत रखें जैसे परिवार के सदस्यों के साथ टीवी शो देखना। धन्यवाद संबोधन में पीआईबी गोवा के डिप्टी डायरेक्टर डीवी विनोद कुमार ने कहा कि कोविड-19 ने मानसिक स्वास्थ्य पर नए सिरे से ध्यान देने का ऐतिहासिक अवसर दिया है, उतना ध्यान जितना जरूरी है। एनआईएमएचएएनएस बेंगलुरु ने एक मनोवैज्ञानिक-सामाजिक हेल्पलाइन नंबर 080-46110007 शुरू किया है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों को मनो-सामाजिक सहायता प्रदान करने के लिए मनोदर्पण पोर्टल और हेल्पलाइन (8448440632) शुरू किया है।