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Thursday 13 August 2020 01:49:35 PM
नई दिल्ली/ पोर्ट ब्लेयर। भारत में 74वें स्वतंत्रता दिवस समारोह की तैयारियों के बीच पर्यटन मंत्रालय ने देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला में ‘सेलुलर जेल: पत्र, संस्मरण और यादें’ शीर्षक से वेबिनार आयोजित किया, जिसमें भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी अनेक हृदय विदारक कहानियां सामने आ गईं। इस वेबिनार श्रृंखला को निधि बंसल सीईओ इंडिया सिटी वॉक एंड इंडिया विद लोकल्स, डॉ सुमी रॉय संचालन प्रमुख इंडिया विद लोकल्स एवं इंडिया हेरिटेज वॉक और सोमरिता सेनगुप्ता सिटी एक्सप्लोर इंडिया सिटी वॉक ने प्रस्तुत किया। वेबिनार में सेलुलर जेल के गलियारों और सेलों के माध्यम से भारत के स्वतंत्रता संग्राम की यात्रा को प्रदर्शित किया गया। इसमें वीर सावरकर, बीके दत्त, फज़ले हक़ खैराबादी, बरिंद्र कुमार घोष, सुशील दासगुप्ता जैसे कुछ प्रसिद्ध राजनीतिक बंदियों के जीवन और कहानियों को प्रस्तुत किया गया। प्रस्तुति में भारत की स्वतंत्रता के लिए अंडमान में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के महत्वपूर्ण योगदान का भी उल्लेख किया गया।
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में सेलुलर जेल एक ऐसी जेल है, जहां पर अंग्रेजों ने आजादी की लड़ाई लड़ रहे भारतीयों को बहुत ही अमानवीय स्थितियों में निर्वासित और क़ैद करके रखा था। आज यह एक विश्वविख्यात राष्ट्रीय स्मारक है। इसे सेलुलर इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसका निर्माण एकांत कारावास के उद्देश्य से केवल व्यक्तिगत सेलों का निर्माण करने के लिए किया गया था। मूल रूपसे इस इमारत में सात विंग थे, जिसके केंद्र में एक बड़ी घंटी के साथ एक टॉवर बना हुआ था, जिसे गार्ड संचालित करता था। प्रत्येक विंग में तीन मंजिलें थीं और प्रत्येक एकांत सेल की लंबाई-चौड़ाई लगभग 15 फीट और 9 फीट थी, जिसमें 9 फीट की ऊंचाई पर मात्र एक खिड़की ही थी। इन विंगों को एक साइकिल के स्पोक्स जैसा बनाए गया था और एक विंग के सामने दूसरे विंग के पिछले हिस्से को रखा गया था, इसलिए एक कैदी को दूसरे कैदी के साथ संवाद करने का भी कोई भी माध्यम उपलब्ध नहीं था।
स्वतंत्रता संग्राम के प्रस्तुतकर्ताओं ने बताया कि किस प्रकार से 1857 का वर्ष ब्रिटिश वर्चस्व के लिए एक ख़तरा बन चुका था और उससे 19वीं शताब्दी के मध्य में अंग्रेजी साम्राज्य दहल गया था। बीसवीं सदी के राजनीतिक माहौल ने स्वतंत्रता संग्राम के कई चरण देखे हैं जैसेकि गांधीजी की अहिंसा वाली नीति, सविनय अवज्ञा आंदोलन और कई स्वतंत्रता अभियान। इस जेल का निर्माण कार्य 1896 में शुरू हुआ था और 1910 में संपन्न हुआ था। इसकी मूल इमारत एक गहरे भूरे लाल रंग की ईंटों से बनी हुई है। इमारत के सात विंग के केंद्र में चौराहे के रूपमें एक टॉवर है, जिसका इस्तेमाल क़ैदियों पर नज़र रखने के लिए किया जाता था। सेलुलर जेल का निर्माण होने से पहले वह वाइपर द्वीप की जेल थी, जिसे ब्रिटिश शासन ने देश की आजादी की लड़ाई लड़ने वालों को प्रताड़ित करने केलिए, उनको यातनाएं देने केलिए सबसे भयानक रूपमें इस्तेमाल किया था। काल कोठरी वाला सेल, लॉक-अप, स्टॉक और कोड़ों की मार इस वाइपर जेल की अकथनीय कहानी रही है।
स्वतंत्रता आंदोलन में गिरफ्तार की गईं महिलाओं को भी इस जेल में भी रखा गया था। सेलुलर जेल की स्थितियां ही कुछ ऐसी थीं कि इस जगह को कुख्यात नाम दिया गया-वाइपर चेन गैंग जेल। जिन लोगों ने ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी थी, उन्हें एक साथ जंजीर में जकड़ दिया जाता था और रात में उन्हें उनके पैरों के इर्द-गिर्द बेड़ियों के माध्यम से चलने वाली श्रृंखला तक सीमित कर दिया जाता था। इस जेल में चेन गैंग के सदस्यों को कठोर श्रम के लिए रखा जाता था। सेलुलर जेल की वास्तुकला को 'पेंसिल्वेनिया प्रणाली या एकांत प्रणाली' के सिद्धांत के आधार पर परिकल्पित किया गया था, जिसमें अन्य कैदियों से पूरी तरह अलग रखने के लिए प्रत्येक कैदी के लिए अलग-अलग कारावास का होना आवश्यक है। एक ही विंग में या अलग विंगों में कैदियों के बीच किसी भी प्रकार का कोई संचार संभव नहीं था। सेलुलर जेल की हर ईंट प्रतिरोध, कष्ट और बलिदानों की हृदय विदारक कहानियों की गवाह है। ये महान देशभक्तों और स्वतंत्रता सेनानियों के अमानवीय कष्टों की एक मूक दर्शक है, जो इसकी काल कोठरियों में कैद थे, यहां तककि उन्हें अत्याचार के शिकार के रूपमें अपना बहुमूल्य जीवन भी बलिदान करना पड़ा।
सेलुलर जेल पोर्ट ब्लेयर में प्रायः अमानवीय सजा ही होती थी, जोकि पिसाई करने वाली मिल पर अतिरिक्त घंटों का काम करने से लेकर एक सप्ताह तक हथकड़ी पहनकर खड़े रहने को मजबूर, बागवानी, गरी सुखाने, रस्सी बनाने, नारियल की जटा तैयार करने, कालीन बनाने, तौलिया बुनने, छह महीने तक बेड़ियों में जकड़े रहने, एकांत काल कोठरी में कैद रहने, चार दिन तक भूखा रखने और दस दिन के लिए सलाखों के पीछे रहने तक थी। एक सजा तो ऐसी भयावह थी कि जिसमें क़ैदी को अपने शरीर से पैरों को अलग करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। वेबिनार श्रृंखला के प्रस्तुतकर्ताओं ने स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान पर एक जुनून की हद तक प्रकाश डाला, जिन्हें सेलुलर जेल में अमानवीय कष्टों का सामना करना पड़ा था। वीर सावरकर-1911 में स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर को मार्ले-मिंटो सुधार (भारतीय परिषद अधिनियम 1909) के खिलाफ विद्रोह करने के जुर्म में अंडमान की सेलुलर जेल जिसे काला पानी के नाम से जाना जाता है में 50 साल की सजा सुनाई गई थी और उन्हें 1924 में रिहा किया गया था। वे अपनी बहादुरी के लिए जाने जाते थे और इसलिए उन्हें 'वीर' उपनाम दिया गया था।
क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त जिन्हें बीके दत्त के नाम से भी जाना जाता है, यहां रहे हैं। वे अमर शहीद भगत सिंह के साथ 1929 में सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में किए गए बम विस्फोट मामले में शामिल थे। एक बीमारी के कारण 20 जुलाई 1965 को 54 वर्ष की उम्र में ही उनका निधन हो गया था। इस मामले में इन दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी और उन्हें सेलुलर जेल में डाल दिया गया था। फज़ले हक़ खैराबादी को 1857 को भारतीय विद्रोह की विफलता के बाद माफी के दायरे में रखा गया था, लेकिन 30 जनवरी 1859 को ब्रिटिश अधिकारियों ने हिंसा भड़काने के जुर्म में उन्हें खैराबाद से गिरफ्तार कर लिया था। फज़ले हक़ को 'जेहाद' के लिए भूमिका अदा करने और हत्या को प्रोत्साहित करने का दोषी पाया गया था। वे अपना वकील खुद ही बने और अपना बचाव खुद ही किया। उनकी दलीलें और अपने बचाव का तरीका इतना प्रभावपूर्ण और विश्वसनीय था कि पीठासीन मजिस्ट्रेट उनको निर्दोष घोषित करने का फैसला लिख रहे थे, मगर तब उन्होंने फतवा जारी करने वाली बात ही कबूल कर ली और कहा कि वे झूंठ नहीं बोल सकते हैं। उन्हें अंडमान द्वीप के कालापानी यानी सेलुलर जेल में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी और उनकी संपत्ति को अवध अदालत के न्यायिक आयुक्त ने जब्त कर लिया था।
बरिंद्र कुमार घोष का जन्म 5 जनवरी 1880 को लंदन के निकट क्रॉयडन में हुआ था। तीस अप्रैल 1908 को दो क्रांतिकारियों खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी द्वारा किंग्स फोर्ड की हत्या के प्रयास के बाद अंग्रेज़ पुलिस ने 2 मई 1908 को बरिंद्र कुमार घोष और अरविंद घोष को गिरफ्तार किया। इस मामले में उनके और भी कई साथी भी शामिल किए गए। अलीपुर बम कांड के नाम से जाने गए इस मुकद्मे की शुरुआत में बरिंद्र कुमार घोष और उल्लासकर दत्ता को मौत की सजा सुनाई गई थी, हालांकि बाद में इस सजा को कम करके उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया था। इसके बाद 1909 में देशबंधु चितरंजन दास और बरिंद्र कुमार घोष को अन्य दोषियों के साथ सेलुलर जेल भेज दिया गया था। सुशील कुमार दासगुप्ता (1910-1947) का जन्म बरिशाल में हुआ था, जो अब बांग्लादेश में है। वे बंगाल के क्रांतिकारी युगंतार दल के सदस्य थे और 1929 की पुटिया मेल डकैती मामले में उन्हें मेदिनीपुर जेल लाया गया। वहां से वे साथी क्रांतिकारियों सचिनकर गुप्ता और दिनेश मजूमदार के साथ फरार हो गए। वे सात महीने तक फरार रहे थे। आखिरकार दिनेश मजूमदार को पकड़ लिया गया और उन्हें फांसी दे दी गई। सुशील दासगुप्ता को पहले सेलुलर जेल भेजा गया और सचिनकर गुप्ता को पहले मंडलीय जेल और फिर सेलुलर जेल भेज दिया गया था।
स्वतंत्रता आंदोलन में सन् 1932 से लेकर 1937 के दौरान विशेष रूपसे सामूहिक भूख हड़ताल का सहारा लिया गया। अंतिम हड़ताल जुलाई 1937 में शुरू हुई थी और वह 45 दिन तक जारी रही थी। अंग्रेज़ सरकार ने अंततः दंडात्मक उपनिवेश को बंद करने का फैसला किया और सेलुलर जेल के सभी राजनीतिक कैदियों को जनवरी 1938 तक भारत की मुख्य भूमि पर अपने-अपने राज्यों में वापस भेज दिया गया। सुभाषचंद्र बोस की आज़ाद हिंद सरकार ने 29 दिसंबर 1943 को द्वीपों पर राजनीतिक नियंत्रण करने का मसौदा पारित किया। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय सेना का तिरंगा झंडा फहराने के लिए पोर्ट ब्लेयर का दौरा किया। अंडमान की उनकी एकमात्र यात्रा के दौरान जापानी अधिकारियों ने उन्हें सावधानी के साथ स्थानीय आबादी से छुपा कर रखा था। उन्हें अंडमान के लोगों की पीड़ाओं से अवगत कराने का कई बार प्रयास किया गया कि उस समय कई स्थानीय भारतीय राष्ट्रवादी सेल्युलर जेल में यातनाएं झेल रहे थे। वेबिनार श्रृंखला के प्रस्तुतकर्ताओं ने सेलुलर जेल से परे सौंदर्य से भरपूर द्वीपों का भी प्रदर्शन किया। अंडमान द्वीप समूह बंगाल की खाड़ी में एक भारतीय द्वीप समूह है। ये लगभग 300 द्वीपों से बना है और अपने पाम-लाइन, सफेद-रेत वाले समुद्र तटों, मैंग्रोव और उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों के लिए जाना जाता है। प्रवाल भित्तियां, शार्क और रे मछली जैसे समुद्री जीवों का समर्थन करती हैं, जोकि लोकप्रिय गोताखोरी और स्नोर्कलिंग साइटों का निर्माण करते हैं।
अंडमान द्वीप समूह के स्वदेशी लोग और भी ज्यादा दूरदराज वाले द्वीपों में निवास करते हैं, जिनमें से कई आगंतुकों को पहुंच प्राप्त नहीं हैं। पोर्ट ब्लेयर दक्षिण अंडमान द्वीप पर अंडमान निकोबार द्वीप समूह की राजधानी है। इसका समुद्र वाला तट सेलुलर जेल, एक ब्रिटिश दंडात्मक कॉलोनी के रूपमें अतीत की याद दिलाता है, जोकि अब भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के लिए एक स्मारक बन चुका है। अंत: स्थलीय, समुद्रिका मैरिन संग्रहालय, स्थानीय समुद्री जीवन को प्रदर्शित करता है। एंथ्रोपोलॉजिकल संग्रहालय, द्वीपों की स्वदेशी जनजातियों के ऊपर केंद्रित है। सेलुलर जेल संग्रहालय दुनियाभर के पर्यटकों के लिए अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के लिए एक प्रमुख और सबसे आकर्षक दर्शनीय स्थल है, जिसमें राष्ट्रीय स्मारक घर, स्वतंत्रता सेनानियों की तस्वीरें और प्रदर्शनी गैलरी, आर्ट गैलरी और स्वतंत्रता आंदोलन के ऊपर एक पुस्तकालय भी है। यह स्थल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की यादों को निश्चित रूपसे तरोताजा करता है। रॉस द्वीप या एनसी बोस द्वीप में बेकरी, पुराने कार्यालय भवनों, चर्चों आदि के रूपमें भव्य ब्रिटिश अतीत के खंडहर मौजूद हैं। नील द्वीप या शहीद द्वीप में सफेद किनारों के साथ प्रवाल भित्तियों को प्रायः स्नोर्कलिंग के लिए जाना जाता है। हैवलॉक द्वीप समूह जिसका नाम स्वराज द्वीप भी है राधानगर समुद्र तट का घर है। हाथी द्वीप पर यात्री स्कूबा डाइविंग, मछली पकड़ने, स्नोर्कलिंग आदि का आनंद ले सकते हैं।
राजेश कुमार साहू निदेशक पर्यटन मंत्रालय ने अपनी समापन टिप्पणी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वीडियो कॉंफ्रेंसिंग के माध्यम से अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को भारत की मुख्य भूमि से जोड़ने वाली सबमरीन ऑप्टिकल फाइबर-केबल के शुभारंभ की चर्चा की और कहा कि ये कनेक्टिविटी अब द्वीपों में अंतहीन अवसरों के साथ सक्षम बनाएगी। प्रधानमंत्री ने कहा था कि सबमरीन केबल के माध्यम से सस्ती और बेहतर कनेक्टिविटी और डिजिटल इंडिया के सभी लाभों को प्राप्त करने में अंडमान-निकोबार की मदद करेगी, विशेष रूपसे ऑनलाइन शिक्षा, टेली-मेडिसिन, बैंकिंग प्रणाली, ऑनलाइन व्यापार में सुधार और पर्यटन को बढ़ावा देने में। देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला एक भारत श्रेष्ठ भारत के अंतर्गत भारत की समृद्ध विविधता को प्रदर्शित करने का एक प्रयास है और यह वर्चुअल प्लेटफॉर्म के माध्यम से एक भारत श्रेष्ठ भारत की भावना को लगातार बढ़ावा दे रही है। देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला को राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस विभाग, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ तकनीकी साझेदारी में प्रस्तुत किया जा रहा है। वेबिनार के सत्र भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय के सोशल मीडिया हैंडलों पर और https://www.youtube.com/channel/UCbzIbBmMvtvH7d6Zo_ZEHDA/featured पर भी उपलब्ध हैं।