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हिंदी साहित्य पर समय और संचार का प्रभाव

इक्कीसवीं सदी में हिंदी उपन्यास पुस्तक का लोकार्पण-परिचर्चा

बाज़ारवाद व उपभोक्तावाद ने हिंदी साहित्य से नए संदर्भ जोड़े

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Wednesday 23 September 2020 04:28:50 PM

hindi novel book release-discussion in twenty-first century

उदयपुर। डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय उदयपुर जर्नादन रायनागर राजस्थान विद्यापीठ के सेमिनार हाल में कौटिल्य बुक्स से प्रकाशित ललित श्रीमाली की पुस्तक इक्कीसवीं सदी में हिंदी उपन्यास के लोकार्पण एवं परिचर्चा कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसमें विभिन्न वक्ताओं ने हिंदी साहित्य की स्थिति और साहित्य पर संचार साधनों के प्रभाव पर अपने विचार प्रकट किए। आज के संदर्भ में इस उपन्यास ने हिंदी साहित्य की वास्तविक तस्वीर प्रस्तुत की है। वक्ताओं ने कहा कि किस प्रकार समय के साथ साहित्य और उसका प्रस्तुतिकरण बदल रहा है। हिंदी साहित्य को नए संदर्भ में समझने के दृष्टिकोण से यह कार्यक्रम बहुत उपयोगी रहा।
हिंदी के वरिष्ठ समालोचक प्रोफसर नवल किशोर ने कहा कि जब भी संचार साधनों में बदलाव आता है तो साहित्य पर उसका प्रभाव परिलक्षित होता ही है। प्रोफेसर मलय पानेरी ने कहा कि भूमंडलीकरण के कारण एक नए किस्म का यथार्थ सामने आया है, उसने समाज को अनेक स्तरों पर प्रकाशित किया है और इसका प्रभाव साहित्य पर भी पड़ा है। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एसएस सारंग देवोत ने की। उन्होंने कहा कि बाज़ारवाद और उपभोक्तावाद से सामाजिक जीवन में व्यापक बदलाव हुए हैं, जिससे हमारे जीवन मूल्यों में बड़े बदलाव आए हैं और आज के कथा साहित्य में भी इस कारण वस्तु और शिल्प दोनों में ही बदलाव आया है।
रतनपुरी गोस्वामी ने पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि यह पुस्तक इक्कीसवीं सदी के अबतक के चर्चित उपन्यासों के शिल्प में आए बदलावों की और हमारा ध्यान आकृष्ट करती है। इस अवसर पर राजस्थान विद्यापीठ के कुल प्रमुख भंवरलाल गुर्जर, रजिस्ट्रार डॉ हेमशंकर दाधीच, डॉ पारस जैन, डॉ घनश्याम सिंह भींडर एवं कृष्ण कुमार कुमावत उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन पल्लव पांडेय ने किया और धन्यवाद ललित श्रीमाली ने किया। 

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