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Monday 9 November 2020 04:35:01 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय राज्यमंत्री और प्रख्यात मधुमेह विशेषज्ञ डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा है कि मधुमेह के मरीजों के लिए जो उपयुक्त भोजन व्यवस्था निर्धारित की जाती है, वही तरीके स्वस्थ लोगों के लिए भी अपनाए जा सकते हैं, ताकि वे इस बीमारी की चपेट में न आएं। डॉ जितेंद्र सिंह ने डाइबिटीज पर एक वेबिनार डिजिटल आउटरिच फॉर नॉलेज अपग्रेडेशन डाइबिटीज स्पेसिफिक न्यूट्रिशन में यह बात कही। इस वेबिनार का आयोजन एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडिया ने किया था। उन्होंने डाइबिटीज पर भारतीय पारंपरिक औषधि प्रणाली के महत्व को भी रेखांकित किया।
विश्व मधुमेह सप्ताह की पूर्व संध्या पर हुए इस वेबिनार में डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने चिकित्सा प्रबंधन की स्वेदशी प्रणाली को अहम स्थान दिलाया है। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी ने ही संयुक्तराष्ट्र में सर्वसम्मति से प्रस्ताव दिया था कि अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाए और इसी का परिणाम है कि अब विश्व में हर घर में योग प्रणाली पहुंच चुकी हैं। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी ने ही एक अलग आयुष मंत्रालय का गठन किया, क्योंकि वह स्वदेशी चिकित्सा प्रबंधन प्रणाली के महत्व को अच्छी तरह जानते हैं, इसके अलावा उन्होंने समग्रात्मक चिकित्सा को भी बढ़ावा दिया है।
डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि कोरोना ने हमें नए मानकों के साथ रहना सिखाया है और चिकित्सकों को गैर फार्मा प्रबंधन विधियों जिसमें साफ-सफाई भी शामिल है के बारे में भी संकेत दिया है, क्योंकि हाल ही के वर्षों में इसकी अहमियत कम हो गई थी। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के समाप्त हो जाने के बाद भी एक दूसरे से दूरी बनाए रखने का अनुशासन और खांसते एवं छींकते वक्त सावधानी बरतना संक्रामक रोगों से बचाव के लिए जरूरी है। डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत जैसा देश कोविड महामारी के बाद एक अग्रणी राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है और पूर्वोत्तर क्षेत्र इसमें एक अहम भूमिका अदा करेगा।
डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि बांस पूर्वोत्तर की समृद्धि का एक नया इंजन है जिसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है और प्रधानमंत्री के आह्वान वोकल फॉर लोकल के अनुरूप यह लोकप्रिय होता जा रहा है। उन्होंने इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले प्रतिनिधियों को यह जानकारी भी दी कि किस प्रकार भारत सरकार ने अपने हाल ही के एक फैसले में बांस की छड़ों पर आयात शुल्क 20 प्रतिशत बढ़ाया है, जिससे भारत में अगरबत्तियों के काम में आने वाली लकड़ियों (स्टिक) को बनाने वाली इकाइयों की स्थापना होगी, अभी तक ये लकड़ियां बाहर से आयात की जा रही थीं।
एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ अरूलरहाज ने कहा कि यह संगठन हमेशा से ही प्रमाण आधारित चिकित्सा में विश्वास करता रहा है और प्रधानमंत्री के डिजिटल प्रयासों से यह संगठन जल्दी ही वैश्विक स्तरपर अपनी पहचान बनाएगा। डीन ऑफ इंडियन कॉलेज ऑफ फिजिशियंस प्रोफेसर शशांक जोशी ने कहा कि एपीआई डीआईएएस की शुरुआत 2013 में की गई थी, ताकि विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल करने वाले चिकित्सकों को एक मंच पर लाया जा सके और इसका मकसद लोगों की व्याधि संबंधी पीड़ाओं को कम करना है। वेबिनार में प्रोफेसर वी मोहन, डॉ अमित सराफ, डॉ मंगेश तिवासकर, अमल केलशिकर और कई प्रख्यात चिकित्सा विशेषज्ञों तथा वक्ताओं ने भी हिस्सा लिया।