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'लघु पत्रिकाओं ने साहित्यिक लोकतंत्र बचाया'

'लघु पत्रिकाओं का संसार और बनास जन' पर फेसबुक चर्चा

सांस्कृतिक मूल्यों पर बाजारवाद का बड़ा कुठाराघात-पल्लव

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Friday 13 November 2020 02:24:05 PM

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नई दिल्ली। 'बनास जन' पत्रिका के संपादक और हिंदू कॉलेज दिल्ली के हिंदी विभाग में प्राध्यापक पल्लव का कहना है कि साहित्य के लोकतंत्र में लघु पत्रिकाएं वही काम करती हैं, जो राजनीति के लोकतंत्र में जागरुक मीडिया करता है, साहित्यिक लोकतंत्र को बचाए रखने में लघु पत्रिकाओं की बड़ी भूमिका है। वे कहते हैं कि सही बात को कहते जाना ही साहित्य का कर्तव्य है और लघु पत्रिकाएं इस काम को करने की काफी कोशिश करती हैं। आलोचक पल्लव रामगढ़ में महादेवी वर्मा सृजन पीठ के 'लघु पत्रिकाओं का संसार और बनास जन' विषय पर कुमाऊँ विश्वविद्यालय की फेसबुक लाइव चर्चा में बोल रहे थे। पल्लव ने कहा कि लघु पत्रिकाओं से जनधर्मी साहित्य की व्याप्ति हुई, जिस आदर्श समाज की कल्पना हमारे मन में है, उसकी बात करने वाले विचार के लिए लघु पत्रिकाओं ने जमीन तैयार की। उन्होंने कहा कि साहित्य की तमाम विधाओं के लिए लघु पत्रिकाओं ने जिस जनपक्षधरता के साथ खुद को समर्पित किया है, उस विचारधारा ने हिंदी साहित्य को जनधर्मी बनाए रखा है।
प्रख्यात आलोचक पल्लव ने कहा कि नब्बे के दशक में भूमंडलीकरण का हमारे जीवन में आना बहुत बड़ी घटना है, सोवियत संघ के विघटन के बाद पूरी दुनिया पर विश्व बैंक ने भूमंडलीकरण की नीतियों को एक तरह से थोपने की कोशिश की, इसके बाद बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए भारत का बाजार खुलता चला गया। उन्होंने कहा कि हमारे सांस्कृतिक मूल्यों पर बाजारवाद ने कुठाराघात किया। उपभोक्तावाद हमें वस्तुमोही, लालची और एकलखोरा बनाता है। उन्होंने कहा कि सारी चीजें मेरे पास आ जाएं और मैं ही उनका उपभोग करूं, यह सामूहिकता को खत्म करने वाली प्रवृत्ति है, ऐसे देश में जहां साझेदारी सबसे बड़ा मूल्य होता था, वहां इस विचार ने भारतीय समाज को पूरी तरह बदल दिया। इस घटना का सबसे मुखर विरोध साहित्यकारों के तबके ने किया। लघु पत्रिकाओं के माध्यम से यह विरोध आज भी जारी है। उन्होंने कहा कि पूंजीवादी शक्तियों या समाजविरोधी शक्तियों के समक्ष हम शरणागत हो चुके हैं।
पल्लव ने कहा कि साहित्य ही एक ऐसा मोर्चा है, जहां यह शरणागति नहीं हुई है और न होगी। उन्होंने कहा कि साहित्य मनुष्य का विचार है, वह मनुष्यता के विरोध में नहीं जा सकता, यदि वह मनुष्यता के विरोध में जाएगा तो उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। पल्लव ने कहा कि लघु पत्रिकाएं एक तरह से साहित्य का हरावल दस्ता हैं, बड़े संसाधनों और पूंजी वाली पत्रिकाएं धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, कादम्बिनी, नंदन आदि धीरे-धीरे बंद हो गई, वहीं बीते वर्ष में छोटी पूंजी और छोटे प्रयासों वाली एक लघु पत्रिका यदि बंद होती है तो दूसरी शुरू हो जाती है। उन्होंने कहा कि फिनिक्स पक्षी की तरह लघु पत्रिकाएं अपना काम निरंतर जारी रखती हैं। साहित्य में अकादमिक घालमेल पर विचार व्यक्त करते हुए पल्लव ने कहा कि एक तरह का कैरियरवाद साहित्यिक गतिविधियों में देखने को मिलता है, कुछ लघु पत्रिकाएं शोध-पत्र छापने का काम करती हैं और यह दावा भी करती हैं कि वह साहित्यिक पत्रिका हैं, लघु पत्रिकाएं इस उद्देश्य से नहीं निकाली जातीं कि वह किसी के कैरियर में सहायक हों। उन्होंने कहा कि साहित्यिक पत्रिकाओं की प्रतिबद्धता अपने पाठकों के साथ है, किसी के कैरियर के साथ नहीं, इस घालमेल से कहीं हम हिंदी साहित्य के पाठकों को न खो दें।
पल्लव ने कहा कि विश्वविद्यालयों के हिंदी विभाग अकादमिक क्षेत्र में योगदान के लिए शोधपत्र अथवा शोध सामग्री छापने का काम कर सकते हैं। उन्होंने साहित्य के पाठकों का आह्वान किया कि लघु पत्रिकाएं जरूर पढ़ें। लघु पत्रिकाओं को बचाए रखने की जिम्मेदारी उन सबकी है, जो साहित्य के प्रति अपनी किसी न किसी जिम्मेदारी को समझते हैं। उन्होंने 'बनास जन' की दस वर्ष की यात्रा को विस्तार से साझा किया। पल्लव भारतीय भाषा परिषद कोलकाता के युवा साहित्य पुरस्कार, वनमाली सम्मान, आचार्य निरंजननाथ सम्मान, राजस्थान पत्रिका सृजन पुरस्कार आदि प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं। फेसबुक चर्चा में महादेवी वर्मा सृजन पीठ के निदेशक प्रोफेसर श्रीश कुमार मौर्य, शोध अधिकारी मोहनसिंह रावत, वरिष्ठ साहित्यकार गीता गैरोला, प्रोफेसर जितेंद्र श्रीवास्तव, कृष्ण कुमार भगत, महेश पुनेठा, क्षमा सिसोदिया, चिंतामणि जोशी, लक्ष्मण वृजमुख, उर्मिला शुक्ल, गोविंद नागिला, खेमकरण सोमन, डॉ कमलेश कुमार मिश्रा, गंगा सिंह रावत, मनीषा पांडे, डॉ गिरीश पांडे 'प्रतीक', कविता उप्रेती, अजेय पांडेय, शीला पुनेठा, डॉ ॠषि शर्मा, मृदुल जोशी, आशीष तिवारी, कृष्ण मोहन प्रसाद, पूजा गंगा कोली, मनोज जोशी, मीना पांडेय, विपिन चौधरी, शुभ्रा मिश्रा कनक, रघुवीर शर्मा, अनिल कुमार, देवांशु पाल, मीना झा, प्रियंका मेहता, प्रदीप सिंह, यशवंत कुमार, तनुजा प्रजापति, नीरज कुमार, डॉ केके लाल यादव, श्रेयस श्रीवास्तव, अमन कुमार, पुष्पा ठाकुर, जुगेश मुकेश गुप्ता, जयराम पासवान आदि साहित्य-प्रेमी सम्मिलित हुए।

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