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Sunday 29 November 2020 02:06:56 PM
अगरतला। विज्ञान संचार समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रसार में अहम भूमिका निभाता है और पिछले कुछ दशक में वैज्ञानिक चेतना के प्रसार के लिए विभिन्न स्तरों पर प्रयास भी किए गए हैं, इसके बावजूद अपेक्षित सफलता नहीं मिली है। स्कूली स्तर पर छात्रों में विज्ञान के प्रति रुचि का विकास, विज्ञान संचारकों एवं शिक्षकों का प्रशिक्षण, उच्च शिक्षण संस्थानों में विज्ञान संचार के औपचारिक अध्ययन तथा अध्यापन और वैज्ञानिक संस्थानों में कुशल विज्ञान संचारकों की नियुक्ति को प्रोत्साहन दिया जाए तो इस मुहिम को तेज करने में मदद मिल सकती है। ये विचार 10वें भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान फिल्म महोत्सव में विशेषज्ञों ने एक ऑनलाइन परिचर्चा में व्यक्त किए। मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के उपकुलपति रहे डॉ मोहम्मद असलम परवेज़ ने परिचर्चा में कहा कि किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास बचपन से उसे मिलने वाले इन्पुट्स पर प्रमुख रूपसे केंद्रित होता है।
डॉ मोहम्मद असलम परवेज़ ने कहा कि एक विज्ञान संचारक के रूपमें वे यह अनुभव करते हैं कि मूलभूत विज्ञान से जुड़े ‘क्यों, कैसे, कहां’ जैसे प्रश्नों के प्रति अभिरुचि का विकास छात्रों में स्कूली स्तर से ही होना चाहिए, इसके लिए विशिष्ट कोर्स तैयार किए जा सकते हैं। डॉ मोहम्मद असलम परवेज़ ने कहा कि अंग्रेजी को छोड़ दें तो क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान आधारित पाठ्य सामग्री की कमी है, यह बेहद जरूरी है कि क्षेत्रीय भाषाओं में भी वैज्ञानिक पाठ्य सामग्री का तेजी से विकास एवं उसका प्रचार-प्रसार हो। भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक पंपोश कुमार ने कहा कि डीएसटी के अंतर्गत कार्यरत नेशनल काउंसिल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी कम्युनिकेशन ने करीब 25 साल पहले साइंस कम्युनिकेशन पाठ्यक्रम देशभर मे शुरू करने की पहल की थी, उनमें से कई आज भी चल रहे हैं, वर्तमान समय की जरूरतों को देखते हुए उन पाठ्यक्रमों को अधिक सशक्त बनाने की जरूरत है।
विज्ञान फिल्मोत्सव में समूह चर्चा में दूरदर्शन उत्तराखंड के कार्यक्रम प्रमुख डॉ सुभाष सी थलेडी ने कहा कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को आम बोलचाल की भाषा में जनसाधारण तक पहुंचाने की जरूरत है, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का प्रसारण कम होता है। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा में स्नातक या फिर स्नातकोत्तर छात्रों के लिए संचार का अध्ययन अनिवार्य करना एक बेहतर विकल्प हो सकता है। मीडिया शिक्षाविद, लेखिका एवं डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर शुभा दास मलिक ने कहा कि नई पीढ़ी में विज्ञान संचार के प्रति रुचि विकसित करने के लिए शिक्षकों में भी विज्ञान के प्रति रुचि जरूरी है, यदि शिक्षक पहल करें तो छात्रों को पॉपुलर साइंस राइटिंग के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है, इसकी शुरुआत स्वास्थ्य एवं पर्यावरण जैसे विषयों में लेखन के लिए छात्रों को प्रोत्साहित करके की जा सकती है, ऐसे में छात्र विज्ञान संचार की ओर आकर्षित हो सकते हैं।
मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी हैदराबाद के इंस्ट्रक्शनल मीडिया सेंटर के निदेशक रिज़वान अहमद ने बताया कि करीब दो दशक पहले विज्ञान संचार पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेने वाले छात्रों की संख्या बेहद कम थी, अखबारों में भी विज्ञान की खबरें नाममात्र की प्रकाशित होती थीं, शायद यही कारण है कि भारत में विज्ञान संचार के लिए जरूरी कल्चर और परिप्रेक्ष्य विकसित नहीं हो सका। उन्होंने कहा कि दूसरे देशों के मुकाबले भारत में विज्ञान संचार पाठ्यक्रम बहुत कम संचालित होते हैं, इनकी संख्या बढ़ाने और विज्ञान संचारकों के लिए करियर के अवसर सुनिश्चित करने से इस संदर्भ में लाभ हो सकता है। भारतीय जनसंचार संस्थान नई दिल्ली की प्रोफेसर एवं परिचर्चा की संचालिका अनुभूति यादव ने कहा कि हमारी वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में बहुत से शोध कार्य हो रहे हैं।
प्रोफेसर अनुभूति यादव ने कहा कि इन शोध कार्यों से जुड़े वैज्ञानिकों की अपनी एक तकनीकी भाषा होती है, आम बोलचाल की भाषा में इन शोध कार्यों में छिपे वैज्ञानिक तथ्यों को व्यक्त करना जरूरी है, ताकि सामान्य लोगों को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो रहे विकास से परिचित कराया जा सके। उन्होंने कहा कि प्रभावी विज्ञान संचार के लिए कुशल विज्ञान संचारक तैयार करने के साथ-साथ वैज्ञानिकों का प्रशिक्षण भी समान रूपसे जरूरी है। वरिष्ठ पत्रकार डॉ उपेंद्रनाथ पांडेय ने कहा कि आज जब विज्ञान संचार की जरूरत सबसे अधिक है तो ऐसे समय में विज्ञान संचार आधारित कोर्स संचालित करने वाले कई संस्थान बंद हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि अक्सर कहा जाता है कि अखबारों में विज्ञान की ख़बरों के लिए जगह नहीं है, वास्तव में विज्ञान की खबरों का उपभोग करने वाले पाठक या दर्शक भी कम हैं।
राष्ट्रीय विज्ञान फिल्म महोत्सव के संयोजक और विज्ञान प्रसार के वरिष्ठ वैज्ञानिक निमिष कपूर ने कहा कि विज्ञान संचार पाठ्यक्रमों के बंद होने के पीछे तीन कारण महत्वपूर्ण हैं, इनमें उत्कृष्ट कंटेंट की कमी, शिक्षकों के प्रशिक्षण का अभाव और करियर के अवसरों की कमी शामिल है, हालांकि पहले की तुलना में वर्तमान दौर में विज्ञान संचार के क्षेत्र में भी अवसरों की कमी नहीं है। वैज्ञानिक निमिष कपूर ने कहा कि एक सुविचारित विज्ञान संचार नीति शिक्षकों का प्रशिक्षण और नौकरी के अवसर सुनिश्चित हों तो समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने की मुहिम अधिक प्रभावी हो सकती है। विज्ञान फिल्म महोत्सव में विज्ञान आधारित फिल्में ऑनलाइन प्रदर्शित की जा रही हैं, इसके साथ ही वर्चुअल रूप से विज्ञान से जुड़े विभिन्न विषयों पर मास्टर क्लासेज भी हो रहे हैं। मोबाइल फिल्ममेकर एवं प्रशिक्षक सुनील प्रभाकर ने मोबाइल फोन के माध्यम से फिल्म बनाने के बारे में तकनीकी जानकारी दी।