स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Friday 28 January 2022 12:31:28 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय संस्कृति राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी ने आजादी के अमृत महोत्सव के हिस्से के रूपमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की गुमनाम नायिकाओं पर एक सचित्र पुस्तक का विमोचन किया है। पुस्तक को अमर चित्रकथा केसाथ मिलकर जारी किया गया है, जोकि भारत का एक लोकप्रिय प्रकाशन है। मीनाक्षी लेखी ने इस अवसर पर कहाकि यह पुस्तक उन महिलाओं के साहसपूर्ण जीवन का वर्णन करती है, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया तथा देश में विरोध एवं विद्रोह की मशाल जलाई। उन्होंने कहाकि इसमें उन रानियों की कहानियां हैं, जिन्होंने साम्राज्यवादी शासन के खिलाफ संघर्ष में साम्राज्यवादी शक्तियों से संघर्ष किया और मातृभूमि केलिए अपना जीवन समर्पित कर दिया, यहां तककि बलिदान भी दिया।
संस्कृति राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी ने कहाकि अगर हम भारतीय इतिहास के गौरवशाली अतीत को देखें तो हम पाते हैंकि भारतीय संस्कृति ऐसी थी, जिसने महिलाओं का सम्मान किया और लैंगिक रूपसे भेदभाव के लिए कोई जगह नहीं थी, यह इस तथ्य से स्पष्ट हैकि महिलाओं में युद्ध के मैदान में सैनिकों की तरह लड़ने का साहस और शारीरिक शक्ति थी। पुस्तक में शामिल कुछ गुमनाम नायिकाओं की वीरता की गाथा सुनाते हुए मीनाक्षी लेखी ने कहाकि महिलाएं साम्राज्यवादी शक्तियों के खिलाफ असंतोष व्यक्त करने में समान रूपसे मुखर थीं, उदाहरण केलिए रानी अब्बक्का ने कई दशक तक पुर्तगालियों के हमलों का मुंहतोड़ जवाब दिया। उन्होंने कहाकि इतिहास शायद ही इस परिदृश्य में लिखा गया है और अब आजादी के अमृत महोत्सव के हिस्से के रूपमें जैसाकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दृष्टिकोण है, इन गुमनाम नायकों के बलिदानों को भी लोगों के सामने लाया जाएगा।
मीनाक्षी लेखी ने कहाकि स्वतंत्रता का उत्सव तभी सार्थक है, जब हम अपने युवाओं को अतीत से परिचित कराएं और उन्हें अपने इतिहास पर गर्व महसूस कराएं। मीनाक्षी लेखी ने बतायाकि युवाओं केलिए यह महत्वपूर्ण हैकि वे स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को साम्राज्यवादी के बजाय भारतीय परिप्रेक्ष्य से समझें, जिसे पुस्तक के माध्यम से बताने का प्रयास किया गया है। उन्होंने अमर चित्रकथा की टीम को धन्यवाद देते हुए कहाकि अमर चित्रकथा ने वर्षों से बच्चों में चरित्र निर्माण और उन्हें संस्कार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। गौरतलब हैकि संस्कृति मंत्रालय ने अमर चित्रकथा केसाथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम के 75 गुमनाम नायकों पर सचित्र पुस्तकों का विमोचन करने का निर्णय लिया है, दूसरा संस्करण 25 गुमनाम जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों पर होगा, जो प्रक्रियाधीन है और इसमें कुछ समय लगेगा, तीसरा और अंतिम संस्करण अन्य क्षेत्रों के 30 गुमनाम नायकों पर होगा। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन ने साम्राज्यवादी शासन के विरोध में जीवन के हर क्षेत्र से लाखों लोगों को एकजुट किया, हम सभी स्वतंत्रता संग्राम के कुछ ही महान, प्रतिष्ठित नेताओं को जानते हैं।
भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष के उपलक्ष्य में भारत सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम के भूले-बिसरे नायकों को याद करने और उनका स्मरण करने का फैसला किया है, जिनमें से कइयों के प्रसिद्ध होने के बावजूद नई पीढ़ी उन्हें नहीं जानती हैं। कर्नाटक के उल्लाल की रानी, रानी अब्बक्का ने 16वीं शताब्दी में शक्तिशाली पुर्तगालियों से लड़ाई लड़ी और उन्हें पराजित किया। शिवगंगा की रानी वेलु नचियार ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ युद्ध छेड़ने वाली पहली भारतीय रानी थीं। झलकारी बाई एक महिला सैनिक थीं, जो झांसी की रानी की प्रमुख सलाहकारों मेंसे एक बन गईं और भारतीय स्वतंत्रता की पहली लड़ाई 1857 में एक प्रमुख हस्ती बन गईं। मातंगिनी हाजरा बंगाल की बहादुर स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। गुलाब कौर स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने भारतीय लोगों को ब्रिटिशराज के खिलाफ लड़ने और संगठित करने केलिए अपने जीवन की आशाओं और आकांक्षाओं का त्याग किया।
चकली इलम्मा क्रांतिकारी महिला थीं, जिन्होंने 1940 के दशक के मध्य में तेलंगाना विद्रोह केदौरान जमींदारों के अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। सरोजिनी नायडू की बेटी पद्मजा नायडू और अपने आपमें एक स्वतंत्रता सेनानी, जो स्वतंत्रता केबाद पश्चिम बंगाल की राज्यपाल और बादमें मानवतावादी बनीं। पुस्तक में बिश्नी देवी शाह की कहानी है, जिन्होंने उत्तराखंड में बड़ी संख्या में लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने केलिए प्रेरित किया। सुभद्रा कुमारी चौहान महान हिंदी कवियों में से थीं, जो स्वतंत्रता आंदोलन में भी प्रमुख हस्ती थीं। दुर्गावती देवी ने जॉन सॉन्डर्स की हत्या केबाद भगत सिंह को सुरक्षित निकलने में मदद की और उनके क्रांतिकारी दिनों के दौरान भी अनेक रूपमें सहायता की। स्वतंत्रता सेनानी सुचेता कृपलानी ने स्वतंत्र भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूपमें उत्तर प्रदेश सरकार का नेतृत्व किया। केरल के त्रावणकोर में स्वतंत्रता आंदोलन के प्रेरणादायक नेता अक्कम्मा चेरियन को महात्मा गांधी ने 'त्रावणकोर की झांसी की रानी' नाम दिया था। अरुणा आसफ अली को 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन केदौरान मुंबई में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराने केलिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है।
आंध्र प्रदेश में महिलाओं की मुक्ति केलिए अथक संघर्ष करने वाली कार्यकर्ता दुर्गाबाई देशमुख प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी और संविधान सभा की सदस्य भी थीं। नागा आध्यात्मिक और राजनीतिक नेता रानी गाइदिन्ल्यू ने मणिपुर, नागालैंड और असम में अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व किया। उषा मेहता बहुत कम उम्र से एक स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्हें 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भूमिगत रेडियो स्टेशन के संचालन केलिए याद किया जाता है। ओडिशा की सबसे प्रमुख महिला स्वतंत्रता सेनानियों में पार्वती गिरी को लोगों के उत्थान में उनके काम को लेकर पश्चिमी ओडिशा की मदर टेरेसा कहा जाता था। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता सेनानी तारकेश्वरी सिन्हा स्वतंत्र भारत के शुरुआती दशक में एक प्रख्यात राजनेता बन गईं। स्वतंत्रता सेनानी स्नेहलता वर्मा ने मेवाड़ राजस्थान में महिलाओं की शिक्षा और उत्थान केलिए निरंतर कार्य किए। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान तिलेश्वरी बरुआ भारत की सबसे कम उम्र की शहीदों में शामिल थीं। उन्हें 12 साल की उम्र में गोली मार दी गई थी, जब उन्होंने और कुछ स्वतंत्रता सेनानियों ने एक पुलिस स्टेशन पर तिरंगा फहराने की कोशिश की थी। पुस्तक में वीर नायिकाओं के अतुलनीय योगदान और उल्लेखनीय भूमिका का विशेष रूपसे सचित्र वर्णन किया गया है।