सरिता बरारा
Monday 10 March 2014 10:07:49 PM
मेवात, हरियाणा। जब मैं देखती हूं कि आज भी मेरे गांव में बहुत से अभिभावक अपनी बच्चियों को स्कूल भेजने से इंकार करते हैं या बड़े-बूढ़े मेरी जैसी लड़कियों के लड़कों की तरह घर से बाहर खुले में खेलने पर एतराज जताते हैं तो मुझे बहुत दुःख होता है। यह कहना है 12 साल की नादिया का। हरियाणा के मेवात जिले में रहने वाले मियो मुस्लिम समुदाय की नादिया नई नंगल गांव के स्कूल में सातवीं कक्षा की छात्रा है। सामुदायिक रेडियो 'रेडियो मेवात' के एक कार्यक्रम में एक महिला ने बतौर कॉलर बातचीत करते हुए सवाल पूछा कि जब हमारे समुदाय की एक लड़की रेडियो पर कार्यक्रम पेश कर सकती है तो हमें रेडियो पर संगीत कार्यक्रम का मजा लेने जैसी मामूली-सी बात के लिए भी क्यों रोका जाता है? राजनीतिज्ञ और चुनाव लड़ने वाले भी ऐसे मुद्दों से दूर भागते हैं, आखिर महिलाएं और लड़कियां भलीं, जिन्होंने अपनी और अपनी पीढ़ी की सामाजिक और शैक्षिक प्रगति के लिए अपने समाज के पुरातन विचारों से लोहा लिया और महिला समाज का प्रगतिशील आइना बन रही हैं।
रेडियो मेवात के लिए काम करने वाली वारीसा, समुदाय की उन कुछ गिनी-चुनी लड़कियों में से है, जो समुदाय के लोगों के तमाम सख्त विरोधों के बावजूद अपने पिता के सहयोग से अपनी शिक्षा को जारी रख पाई है। सरकारी स्कूल से पढ़ी वारीसा बताती है कि आठवीं कक्षा तक पहुंचते-पहुंचते, उसके साथ की सभी लड़कियां स्कूल छोड़कर जा चुकी थीं। हरियाणा का मेवात जिला महिला-शिक्षा के क्षेत्र में देश के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से एक है। वर्ष 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक महिला-शिक्षा की दर यहां 36 प्रतिशत से थोड़ी ही अधिक है, जबकि लड़कियों के स्कूल छोड़ने की दर काफी अधिक है। सरकारी वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि जहां वर्ष 2012-13 में सरकारी स्कूलों में पहली कक्षा से 5वीं कक्षा तक पढ़ने वालों छात्रों की संख्या 1,60,057 थी, तो वहीं कक्षा 6 से 8 में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या केवल 42,605 ही थी। जहां तक लड़कियों का सवाल है तो 5 प्रतिशत से ज्यादा लड़कियां उच्च कक्षाओं तक नहीं पहुंच पाई हैं। पर, इन निराशाजनक आंकड़ों के बावजूद यह बात उम्मीद की लौ जलाती है कि मियो मेवात जैसे पिछड़े क्षेत्र के गांव की साधारण-सी नादिया ने आज लड़कियों के साथ हो रहे भेदभाव पर सवाल खड़े करने की हिम्मत की है। यह बात साबित करती है कि समाज में हिम्मत और परिवर्तन की शुरुआत हो चुकी है।
सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि मेवात जैसे शैक्षिक रूप से पिछड़े इलाके के एक गांव में कुछ अभिभावकों ने अपनी लड़कियों को निजी क्षेत्र के सहशिक्षा (को-एड) स्कूलों में भेजना शुरू कर दिया है। नई नंगल का स्कूल इसका उदाहरण है। ऐसे स्कूलों में पढ़ाने के लिए अभिभावक अपनी जेब से पैसे खर्च करने में भी पीछे नहीं हैं। रेडियो मेवात के लिए काम करते हुए आज वारीसा लड़कियों की शिक्षा के महत्व और उनके साथ किए जाने वाले भेदभाव के खिलाफ प्रचार में जुटी हुई हैं। वारीसा आगे कहती है कि रेडियो पर मनोरंजक कार्यक्रम प्रसारित करने के अलावा मैं रेडियो मेवात पर मियो समुदाय से संबंधित महिला अध्यापकों को रेडियो कार्यक्रमों में आमंत्रित करती हूं, ताकि उनसे प्रेरणा पाकर अन्य अभिभावक भी अपनी लड़कियों को स्कूल भेजें और माध्यमिक स्कूलों की प्राथमिक कक्षाओं में ही अपनी लड़कियों को पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर न करके उन्हें आगे और भी पढ़ने दें। वह कहती हैं कि खुशी की बात तो यह है कि आज विवाहित महिलाएं भी भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाने लगी हैं। वारीसा का कहना है कि कम से कम आज महिलाओं में इतना साहस तो आ ही गया कि वे अपने खिलाफ होने वाले भेदभाव को लेकर सवाल खड़े करने लगी हैं, कुछ साल पहले तक तो यह सब संभव ही नहीं था।
इस क्षेत्र में लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार, गैर सरकारी संगठन और निजी क्षेत्र पिछले कई सालों से प्रयास कर रहे हैं। वर्ष 1982 में हरियाणा सरकार ने एफपी झिरका और नूहँ में सह शिक्षा (को एड) वाले अंग्रेजी माध्यम के दो स्कूल शुरू किए थे, ताकि मेवात क्षेत्र के इस परंपरागत संस्कृति और सामाजिक ताने-बाने वाले इलाके के बच्चों को गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान की जा सके। इसके दो साल बाद ही इन स्कूलों को सीबीएसई से संबंद्ध कर दिया गया। आज ऐसे सात सह शिक्षा वाले स्कूल मेवात मॉडल स्कूल सोसाइटी (एमएमएसएस) चला रही है, जिनमें लड़कियों से कोई ट्यूशन फीस नहीं ली जाती। इनमें से छह स्कूल उच्चतर माध्यमिक स्तर के और एक माध्यमिक स्तर का है। इस वक्त इन मॉडल स्कूलों में 40 प्रतिशत से अधिक संख्या लड़कियों की है, जिनमें से 57 प्रतिशत से अधिक लड़कियां मियो समुदाय की हैं। इतना ही नहीं मेवात मॉडल स्कूल सोसाइटी की शिक्षा अधिकारीज्योति छिकारा के अनुसार वर्ष 2009 में 12वीं कक्षा में 90 प्रतिशत से अधिक अंक लेने वाली 5 में से 4 छात्राएं मियो समुदाय की ही हैं।
मेवात के इस इलाके में 6 कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय भी चलाये जा रहे हैं, जिनमें 1,400 लड़कियां पढ़ रही हैं। इनमें से 64 प्रतिशत मियो समुदाय की हैं। करीब 140 लड़कियों को नूहँ के मेवात मॉडल स्कूल में पढ़ाई के अलावा मुफ्त रहने और खाने की सुविधा भी प्रदान की गई है। खास बात यह है कि शिक्षा ने नादिया जैसी लड़कियों को आत्मविश्वास, साहस और समाज में भेदभाव के खिलाफ आवाज बुलंद करने का दृढ़-निश्चय दिया है। नादिया एक संवेदनशील लड़की है, जो समाज में फैले भेदभाव और अन्याय को लेकर काफी चिंतित है। नादिया कहती है कि वो एक डॉक्टर बनना चाहती है, क्योंकि अमीरों को तो अस्पतालों में अच्छी देखभाल और पूरा इलाज मिल जाता है, जबकि गरीबों को घंटों अस्पताल की लंबी लाइनों में इंतजार करना पड़ता है और उनके बावजूद भी डॉक्टर का व्यवहार उनके प्रति उदासीन रहता है। छठीं कक्षा में पढ़ने वाली सैजिया, नादिया के स्कूल में ही हैड गर्ल है। सैजिया का कहना है कि वह हैड गर्ल होने के नाते अन्य जिम्मेदारियां निभाने के अलावा लड़कियों की समस्याओं और चिंताओं को अपने अध्यापकों तक पहुचातीं है, क्योंकि बहुत-सी लड़कियां अपनी भावनाओं और विचारों को अभिव्यक्त करने में शर्माती हैं।
एमएमएसएस और केजीबीवी के तहत चलने वाले स्कूलों के अलावा 'एडुकॉम सोल्यूशंस' नामक संगठन के तहत छह यूनिवर्सल अकेडमी स्कूल भी मेवात में चलाये जा रहे हैं। ये संगठन भारत और विदेशों में शिक्षा के क्षेत्र में डिजिटल क्रांति लाने वाला अग्रणी संगठन हैं। हालांकि यहां पढ़ने वालों से फीस ली जाती है पर लड़कियों को फीस में रियायत दी जाती है। दो साल पहले नई नंगल में जब यूनिवर्सल अकेडमी स्कूल खुला तो वहां सिर्फ एक ही लड़की थी, आज वहां 25 लड़कियां पढ़ रही हैं। इस स्कूल में अब भी केवल 182 छात्र ही हैं, जो संख्या के लिहाज से बेहद कम हैं, लेकिन फिर भी मियो समुदाय वाले मेवात के इस पिछड़े क्षेत्र में जहां लड़कियों को शिक्षा दिलाना अंतिम प्राथमिकता है, वहां नि:शुल्क शिक्षा उपलब्ध न कराने वाले स्कूलों में भी अपने बच्चों का दाखिला कराने की पहल वाकई स्वागत योग्य है। ग्रामीण इलाकों में यूनिवर्सल अकेडमी के साथ भागीदारी में स्कूल चलाने वाली संस्था एडुकॉम की अकेडमिक प्रमुख अनुराधा बताती है कि शुरूआत में उनका काफी विरोध हुआ था, गांवों में लोगों को मनाने के लिए उन्हें काफी जद्दोजहद करनी पड़ती थी कि वे अपनी लड़कियों को स्कूल भेजें। उस वक्त ये आसान नहीं था पर आज हालात बदल रहे हैं। यूनिवर्सल अकेडमी स्कूलों में लड़कियां पढ़ने आ रहीं है।
यूनिवर्सल अकेडमी स्कूलों का लक्ष्य यह नहीं है कि उनके स्कूलों में ज्यादा से ज्यादा छात्र दाखिला लें या वे अपने छात्रों को मॉडल स्कूलों की तरह अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा दें, बल्कि उनका मकसद छात्रों को इस तरह तैयार करना है कि वे शहरी और ग्रामीण दोनों तरह के माहौल के मुताबिक समर्थ बन सकें। लड़की हो या लड़का, उनका लक्ष्य अपने छात्रों को इस तरह तैयार करना है कि वे या तो अपना कोई कारोबार शुरू कर सकें या फिर अगर वे शहरों में जाकर बसना नहीं चाहते तो अपने माता-पिता के साथ ग्रामीण माहौल में ही उनके काम काज में शामिल हो सकें। एक और बदलाव भी देखने में आया है कि अब ग्रामीणों को यह महसूस होने लगा है कि अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा प्राप्त करने से युवाओं को अपने आस-पास के क्षेत्रों में ही आसानी से नौकरियां मिल सकती है। इसके लिए उन्हें दूरदराज के इलाकों में जाने की जरूरत नहीं। मेवात के कई गांव गुड़गांव से ज्यादा दूर नहीं है़, जहां बहुत से कॉल सेंटर, बीपीओ और अन्य कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दफ्तर हैं।
नूहँ के निकट मेवात में रहने वाले शम्मसुद्दीन की तरह बहुत से माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में ही पढ़ें। शम्मसुद्दीन का कहना है कि अगर आपको अंग्रेजी आती है तो ही आपको नौकरी मिल सकती है, चाहे मॉडल स्कूल हों, केजीबीवी या यूनिवर्सल अकेडमी स्कूल। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पिछड़े इलाके के लड़के-लड़कियों को आज ऐसे स्कूलों में पढ़ने का मौका मिल रहा है, जहां गुणवत्ता वाली शिक्षा और सर्वांगीण विकास को प्रमुखता दी जा रही है। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात तो यह है कि ऐसी शिक्षा ने नादिया जैसी लड़कियों को इतना साहस और हौसला दिया है कि वे समाज के भेदभाव भरे रवैये पर सवाल उठा सकती हैं और एक ऐसे संसार का सपना देख सकती हैं, जहां न्याय हो और उनकी आवाज़ सुनी भी जाए और उनका सम्मान भी हो।