डॉ के परमेश्वरन
Monday 10 March 2014 10:18:39 PM
मदुरै। बंगाल की खाड़ी में स्थिति रामेश्वरम् से भारतीय पठार के मध्य, काशी (बनारस) तक की करीब 2500 किलोमीटर की पद यात्रा की कल्पना कीजिए! कुछ लोगों का दल वर्ष 1983 से हर 7 साल के बाद यह पद यात्रा करता है। भारत निर्माण जन सूचना अभियान के दौरान देवकोटी, जो शिवगंगा जिले में स्थित है में हम इस यात्रा पर जाने वाले दल के मुखिया से मिले, जो वर्ष 2011 में इस धार्मिक पद यात्रा पर गये थे। उन्होंने अपनी इस पद यात्रा के अनुभव को राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सद्भाव का एक पाठ बताया। देवकोटी के दक्षिण मूर्ति एक राष्ट्रीयकृत बैंक से सेवानिवृत्त हुए हैं। हमारे देश की बहुरंगीय और बहुपक्षीय संस्कृति को एक सूत्र में बांधने की भावना पर जोर देने के लिए कुछ अलग करने की इच्छा से वे उत्साहित हैं। बातचीत में दक्षिण मूर्ति को एक पुरानी कहावत का स्मरण हुआ, जिसके अनुसार साधारण लोग किताबें पढ़ते हैं और परिश्रमी लोग किताबों में जिंदा रहते हैं।
दक्षिण मूर्ति की मुलाकात तमिलनाडु के प्रसिद्ध कवि सोमासुंदरन से हुई, जिन्हें उनकी मधुर कविताओं के लिए "सुनहरी ज़ुबान" कहा जाता था। उन्होंने दक्षिण मूर्ति को वर्ष 2011 में रामेश्वरम् से काशी तक की पद यात्रा का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सौंपी। दक्षिण मूर्ति अपनी इस यात्रा को एक स्फूर्तिदायक अनुभव के रूप में याद करते हैं। वह कहते हैं कि दूर दराज के क्षेत्रों में लोगों से मिले प्यार और सम्मान को वह कभी नहीं भूल सकते। कई स्थानों पर दुकानदारों ने पद यात्रियों से चाय या कॉफी के पैसे लेने से भी मना कर दिया। रामेश्वरम् से बनारस तक की यात्रा 6 राज्यों तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से होकर गुजरी। इस दौरान पद यात्रियों ने गंगा, नर्मदा, कावेरी और गोदावरी सहित 40 नदियों में स्नान किया। दक्षिण मूर्ति के अनुसार विंध्या सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों से गुजरने का उनका अनुभव यादगार था। इस यात्रा से उनको मिले सबसे बड़े पाठ के बारे में पूछने पर दक्षिण मूर्ति भावुक होकर कहते हैं-'मैने यह सीखा है कि सभी लोगों में मानवता एक समान है, मैंने यह अनुभव किया कि एक दूसरे को समझकर और एक दूसरे की मदद कर हम एक दूसरे के साथ सहयोग से रह सकते हैं।'
दल में 19 सदस्य थे। दल ने अपनी यात्रा 14 फरवरी 2011 को शुरू की और यात्रा के 118वें दिन 13 जून 2011 को वे अपने गंतव्य पर पहुंच गये। हमारे देश की बहुरंगी संस्कृति के एक सूत्र में बंधे होने को प्रदर्शित करने के लिए दल ने बंगाल की खाड़ी से रेत और रामेश्वरम् मंदिर के आस-पास स्थिति विभिन्न पवित्र कुओं से जल लेकर उसे बनारस में गंगा में प्रवाहित किया। इस ऐतिहासिक यात्रा में दल के साथ सहायक भी थे, जो दल के सदस्यों के लिए भोजन तैयार करते और विद्यालयों, संस्थाओं तथा अन्य सार्वजनिक भवनों में उनके रहने की व्यवस्था करते थे। प्रतिदिन दल अपनी यात्रा सुबह 4 बजे उठ कर प्रारंभ करता था और वे दोपहर तक अधिक से अधिक दूरी तय करने की कोशिश करते थे। दोपहर के समय दल किसी गांव में बिताता था, जहां वह स्थानीय निवासियों से बात कर अपना अनुभव बांटते और विभिन्न मुद्दों पर उनकी राय लेते थे। शाम से दल अपनी यात्रा पुन: प्रारंभ करता और रात्रि दस बजे वे विश्राम करते थे। इस दौरान मार्ग में पड़ने वाले गांवों में दल ने संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि का प्रदर्शन भी किया।