Thursday 8 May 2014 09:38:25 PM
दिनेश शर्मा
वाराणसी। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार और भारतीय जनता पार्टी को अपने दम पर देश की सत्ता की ओर ले जा रहे नरेंद्र भाई मोदी के लिए बनारस पलक पांवड़े बिछाए है। चुनाव आयोग और बनारस के जिला प्रशासन की विवादास्पद कार्यशैली को खारिज करते हुए बनारस की जनता ने आज फिर एहसास कराया कि वह नरेंद्र मोदी को अपने सांसद और देश के प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहती है। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्धशाली बनारस की धरती को जिस तरह राजनीतिक विवादों का अखाड़ा बनाने की कोशिशें दिखाई पड़ रही हैं, खुद बनारस की जनता ही उसे विफल कर रही है, जिसका प्रमाण यह है कि आज फिर बनारस की जनता बिना किसी कार्यक्रम के नरेंद्र मोदी के साथ सड़क पर दिखी। नरेंद्र मोदी ने बनारस की जनता से शांति और धैर्य की परंपरा को निभाए रखने की अपील की है। इन दिनों नरेंद्र मोदी के खिलाफ राजनीतिक साजिशों में बहुत कुछ ऐसा है, जो दिख भी रहा है। बनारस की जनता देख रही है कि जिला प्रशासन और चुनाव आयोग ने यहां अपनी साख से समझौता किया है।
नरेंद्र मोदी और भाजपा के नेता और कार्यकर्ता बनारस में एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रख रहे हैं, तथापि यहां पर दूसरे दलों का चुनाव प्रचार और चुनावी हथकंडे चुनाव और बनारस की गरिमा को गिराने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। वे इस चुनाव को बाधित करने के लिए हर वो कर्म कर रहे हैं, जिसे बनारस पसंद नहीं करता है और जब जिला प्रशासन भी कुछ वैसा ही दिखाई देने लगे तो यहां के लोगों के कान खड़े होना स्वाभाविक है। दो-तीन दिन से जिला प्रशासन के तौर-तरीके इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि वह किन्हीं हाथों में खेल रहा है। सवाल है कि नरेंद्र मोदी को आज बनारस में अपनी सभाएं छोड़ कर बीएचयू से भाजपा के आफिस तक क्यों जाना पड़ा? उन्हें बीजेपी कार्यालय जाना था सो एक बार फिर बनारस इस मार्ग में उनके साथ हो लिया। यहां की जनता ने समझा है कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई साजिश रची गई है।
प्रशासन ने बेनियाबाग में नरेंद्र मोदी को रैली की इजाजत नहीं दी है, बनारस के लोग यह सुनकर नाराज हो गए और उन्होंने शांतिभाव से अपनी नाराजगी भी शाम तक प्रकट कर दी। बनारस से दिल्ली तक इसकी प्रतिक्रिया हुई है। चुनाव आयोग और जिला प्रशासन के नरेंद्र मोदी से भेद-भाव के विरुद्ध बीजेपी के नेता अरुण जेटली, अमित शाह, कई नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ लंका चौक पर जैसे ही शांतिपूर्ण धरने पर बैठे, बनारस का राजनीतिक तापमान गरमा गया और बनारस का ये इलाका भगवामय हो गया। मोदी के रैली कार्यक्रम रद्द कर दिए गए। उनका बीएचयू से भाजपा कार्यालय की ओर जाने का नया कार्यक्रम बना और शाम को, ‘सुबह बनारस शाम बनारस मोदी तेरे नाम बनारस’ के गगनभेदी नारों के साथ बनारस दोपहर से शाम तक नरेंद्र मोदी के इस पांच किलोमीटर के सफर में उमड़ पड़ा। बिना किसी अपील के लोगों का हुजूम उनके साथ हो लिया।
बनारस में नरेंद्र मोदी के सामने आज एक भावनात्मक घटना घटित हुई। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के कर्नल और नेताजी के ड्राइवर रहे करीब एकसौ सात वर्षीय कर्नल निजामुद्दीन जब अपनी वही हरे रंग की टोपी लगाए नरेंद्र मोदी के पास पहुंचे तो नरेंद्र मोदी सम्मान प्रकट करते हुए उनके सामने नकेवल नतमस्तक हुए, अपितु उन्होंने पूरी कृतज्ञता के साथ कर्नल निजामुद्दीन के पैर छुए और उन्हें अंगवस्त्र भेंट किया। उस वक्त नरेंद्र मोदी भावुक हो गए और वहां का वातावरण भी भावनामय हो गया। कर्नल निजामुद्दीन नरेंद्र मोदी के इस प्रकार सम्मान प्रकट करने से बहुत प्रभावित हुए और विजय का आशीर्वाद दिया। बाद में मीडिया ने कर्नल निजामुद्दीन को घेर लिया और उनसे पूछा कि मोदी आपको कैसे लगे तो उन्होंने कहा कि बहुत अच्छे। जब उनसे पूछा गया कि मुसलमानो में उनका विरोध है तो उन्होंने इस सवाल को दृढ़ता से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री होना चाहिए। कर्नल निजामुद्दीन आजमगढ़ के रहनेवाले हैं और कई भाषाओं के जानकार एवं शानदार निशानेबाज़ भी रहे हैं।
नरेंद्र मोदी के बनारस आने से बनारस और समूचे पूर्वांचल की राजनीति ही उलट-पलट गई है। यहां के राजनीतिक समीकरण नरेंद्र मोदी के इर्द-गिर्द सिमट गए हैं। एक तो यही बात प्रमुखता से कही जा रही है कि गैर भाजपा राजनीतिक दलों को नरेंद्र मोदी के सामने कोई प्रत्याशी ही नहीं मिला और जो यहां से मैदान में हैं उनका इतिहास सबको मालूम है। वे ही इस चुनाव को किसी तरह खराब करने में लगे हैं, अरविंद केजरीवाल इसके उदाहरण हैं। बहरहाल आज यह बात हर किसी की ज़ुबान पर है कि बेनियाबाग में नरेंद्र मोदी की रैली की अनुमति नहीं देने की क्या वजह थी? जिला निर्वाचन अधिकारी जिलाधिकारी प्रांजल यादव ने यदि सुरक्षा कारणों से ऐसा किया तो इससे पहले औरों को इसकी अनुमति क्यों दी गई? सुरक्षा प्रबंध करना किसका काम है और जिला निर्वाचन अधिकारी जिलाधिकारी अपनी इस जिम्मेदारी से पीछे क्यों हटे? या उन पर कोई दबाव आया?