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Sunday 20 January 2013 08:09:38 AM
लखनऊ। रबी में उगाई जाने वाली सब्जियों में आलू का प्रमुख स्थान है, जिसमें कीटों/रोगों के प्रकोप के फलस्वरूप उत्पादन प्रभावित होता है, इसलिए यह आवश्यक है कि फसलों की नियमित निगरानी करते रहें और कीट/रोग की स्थिति में तत्काल उनके रोकथाम के उपाय अपनाएं। आलू की फसल में लगने वाले प्रमुख कीटों/रोगों माहू एवं कटवर्म कीट, अगेती-पछेती झुलसा, मोजैक रोग प्रमुख हैं।
कृषि निदेशक डीएम सिंह से प्राप्त जानकारी के अनुसार कीट आलू को उसकी पत्तियों एवं तनों का रस चूसकर नुकसान पहुंचाता है, यदि कीट का प्रकोप क्षति स्तर 5 प्रतिशत प्रभावित पौधे से अधिक हो तो एजाडिरैक्टिन 0.15 प्रतिशत ईसी-2.5 लीटर, डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ईसी-1.0 लीटर, मिथाइल-ओ-डिमेटान 25 प्रतिशत ईसी 1.0 लीटर में से किसी एक को प्रति हेक्टेअर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।
कटवर्म भूमिगत कीट है। कीट की सूड़ियां रात के समय छोटे-छोटे पौधों को जमीन की सतह से काट देती हैं। कीट के प्रकोप की स्थिति में क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी की 1.0 से 1.5 लीटर मात्रा को 600-700 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए। आलू की फसल में अगेती/पछेती झुलसा रोग का प्रकोप होने पर पत्तियों पर भूरे एवं काले रंग के धब्बे बनते हैं तथा तीव्र प्रकोप होने पर संपूर्ण पौधा झुलस जाता है। रोग के प्रकोप की स्थिति में मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्ल्यूपी-2.0 किलो ग्राम, जिनेब 75 प्रतिशत डब्ल्यूपी-2.5 किलो ग्राम रसायनों में से किसी एक को प्रति हेक्टेअर की दर से 600-800 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव किया जाए।
यह रोग विषाणुओं से फैलता है, जिसका प्रमुख वाहक कीट सफेद मक्खी है, जिसकी रोकथाम हेतु रोग ग्रसित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए। रोग वाहक कीटों को नष्ट करने के लिए डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ईसी-1.0 लीटर, फास्फामिडान 40 प्रतिशत एसएल-500 मिली लीटर रसायनों में से किसी एक को प्रति हेक्टेअर की दर से 600-700 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।