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Sunday 28 September 2014 05:16:32 AM
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम हामिद अंसारी ने कहा है कि सामाजिक, नस्ली और धार्मिक असमानता से हमारा समाज जूझ रहा है, यह असमानता, मानव विकास और अन्य सामाजिक-आर्थिक सूचियों में महत्वपूर्ण विकास में सामूहिक भेदभाव से संबद्ध है। आनुभाविक आंकड़ों से पता चलता है कि इस असमानता का जाति, नस्ल, धर्म, लिंग और असमर्थता जैसे सामाजिक उद्गम की पहचान से गहरा वास्ता रहा है।
नई दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में असमानता पर पुनर्विचारः सिद्धांत, प्रमाण और नीति’ पर भारतीय दलित अध्ययन संस्थान (आईआईडीएस) के दशवार्षिक समारोह सम्मेलन के उद्घाटन पर उन्होंने विचार व्यक्त किया कि अपनी सामाजिक पहचान के कारण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यक और महिलाएं पक्षपात और सामाजिक असमानता झेलने पर विवश हैं, इसका असर संसाधनों तक उनकी पहुंच, अवसरों और कभी-कभी तो उनके नागरिक अधिकारों पर भी पड़ता है। उन्होंने कहा कि भारत की जनसंख्या में तकरीबन आधे लोग अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के हैं और अल्पसंख्यक तथा बंजारा एवं गैर-अधिसूचित जनजातियों के व्यक्तियों को मिलाकर ये लोग हमारी जनसख्यां के करीब तीन-चौथाई हैं, इससे पता चलता है कि ये चुनौती कितनी बड़ी है और इसका निवारण कितना महत्वपूर्ण है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद से हमारे विकासगत अनुभव ये दर्शाते हैं कि अति कमजोर वर्ग सहित हमारे लोगों के जीवन स्तर में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। महत्वपूर्ण सूचक-गरीबी, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के सामाजिक-धार्मिक और आर्थिक वर्गों में विशेष रूप से पिछले 20 वर्ष में कम हुई है। इसी प्रकार देश के सभी वर्गों में कुपोषण, शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर, साक्षरता, बेघर लोगों की संख्या में कमी आई है और पेयजल और स्वच्छता सुविधा बढ़ी है। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि कुल मिलाकर इतने सकारात्मक बदलाव के बावजूद हमारे विकास एजेंडे के परिणाम सामाजिक-धार्मिक और आर्थिक वर्गों में असमान हैं, इन वर्गों की स्थिति में आमतौर पर सुधार हुआ है, लेकिन अन्य वर्गों की तुलना में यह दर धीमी है, जिसके परिणास्वरूप इन कमजोर वर्गों और हमारे हमारी जनसंख्या के अन्य वर्गों के बीच अभी भी असमानता है, अन्य की तुलना में अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति, मुसलमान और महिलाएं अब भी पिछड़ी हुई हैं।
मोहम्मद हामिद अंसारी ने इस बात पर जोर दिया कि हमारे समाज में शांति, सद्भावना बनाए रखने और लगातार तरक्की के लिए सम्मिलित सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था का निर्माण जरूरी है, मानव होने के नाते ये हम सभी की जिम्मेदारी भी है, इसके लिए कमजोर वर्ग के लोगों का सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण तथा निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी समुचित हिस्सेदारी की आवश्यकता होगी, इसे हासिल करने के लिए समाजसेवी संगठन, शिक्षा संस्थान, सरकार और गैर-सरकारी क्षेत्र एवं प्रत्येक नागरिक को मिलजुल कर प्रयास करने की आवश्यकता है।