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जीएसएसवी-मार्क III का प्रक्षेपण भी सफल

अंतरिक्ष प्रक्षेपण टेक्‍नोलॉजी में भारत की बढ़ती सक्षमता

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने दी इसरो टीम को बधाई!

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Thursday 18 December 2014 05:34:34 AM

launch of gssv-mark iii

श्रीहरिकोटा। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो के अध्‍यक्ष डॉ के राधाकृष्‍ण, उनकी टीम और उनका क्रू मॉड्यूल एटमॉसफेयरिक रि-एंट्री एक्सपेरीमेंट (सीएआरई) ले जाने वाले भारत की नई पीढ़ी को रॉकेट-जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लॉच व्‍हेकिल (जीएसएसवी-मार्क III) के सफल प्रक्षेपण के लिए बधाई दी है। उन्होंने अपने संदेश में कहा कि जीएसएलवी एमके-3 कासफल प्रक्षेपण हमारे वैज्ञानिकों के परिश्रम और प्रतिभा का एक और उदाहरण है, जीएसएलवी-मार्क III का प्रक्षेपण हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम की महत्‍वपूर्ण घटना है और यह अंतरिक्ष प्रक्षेपण टेक्‍नोलॉजी में भारत की बढ़ती सक्षमता दिखाती है।
इसरो ने अंतरिक्ष में अब तक का सबसे भारी रॉकेट भेजा है, इसी के साथ जीएसएलवी मार्क-3 को लांच कर दिया गया है। इसकी कामयाबी के बाद भारत दुनिया के उन देशों में शामिल हो गया है, जो अंतरिक्ष में बड़े सेटेलाइट भेजने की काबिलियत रखते हैं। इसरो ने आज आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से भारत के सबसे वजनी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट का प्रक्षेपण किया, अगर ये प्रक्षेपण सफल रहता है तो इसरो अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने की अपनी योजना का एक महत्वपूर्ण पड़ाव पार कर लेगा।
इसरो के अनुसार सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भारत के नवीनतम पीढ़ी के अंतरिक्षयान जीएसएलवी एमके 3 के पहले प्रयोगिक प्रक्षेपण के लिए 24 घंटे 30 मिनट लंबी उलटी गिनती शुरू हुई। इस अभियान में ‘क्रू मॉड्यूल एटमॉसफेयरिक रि-एंट्री एक्सपेरीमेंट’ (केयर) भी किया जा रहा है। इसरो ने बताया कि अभियान के लिए साढे 24 घंटे की उलटी गिनती 17 दिसंबर को सुबह से शुरू हुई थी, ‘मिशन रेडीनेस रिव्यू एंड लांच ऑथोराइजेशन बोर्ड’ की बैठक मंगलवार को हुई और उसमें 18 दिसंबर को सुबह नौ बजकर 30 मिनट पर प्रक्षेपण को मंजूरी दी गई। श्रीहरिकोटा से उड़ान भरने के तुरंत बाद इसरो एलवीएम-3 के जटिल वायुमंडलीय उड़ान पहलुओं के उड़ान सत्यापन किया और फिर तापीय प्रतिरोध, क्लस्टर फारमेशन में पैराशूट के संचालन, एअरो ब्रेकिंग सिस्टम इत्यादि के साथ क्रू मॉड्यूल के पृथ्वी के परिमंडल में फिर से प्रवेश करने की क्षमता का भी परीक्षण किया। समुद्र से 126.16 किलोमीटर की ऊंचाई से उड़ान के बाद क्रू मॉड्यूल राकेट से करीब 325.52 सेकंड में अलग हुआ। विशेष तरह से निर्मित पैराशूट मॉड्यूल के अंडमान निकोबार द्वीप में इंदिरा गांधी प्वाइंट से कोई सौ किलोमीटर की दूरी पर बंगाल की खाड़ी में आसानी से गिरने में मदद की, जिसे बाद में तटरक्षक ने निकाल लिया। श्रीहरिकोटा से उड़ान भरने और बंगाल की खाड़ी में गिरने की इस पूरी प्रक्रिया में करीब 20 से 30 मिनट का समय लगा।
इसरो ने बताया कि राकेट पर 140 करोड़ रुपए का खर्च और क्रू मॉड्यूल पर 15 करोड़ रुपए का खर्च आया है, 630 टन वजन के जीएसएलवी-एमके 3 3.65 टन वजनी क्रू मॉड्यूल को लेकर गया, क्योंकि राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजंसी अंतरिक्ष यात्रियों को आखिरकार अंतरिक्ष में भेजने की अपनी योजना के लिए खुद को समर्थ बना रहा है। भारत सरकार ने अभी अंतरिक्ष अभियान में मानव भेजने की मंजूरी नहीं दी है। जीएसएलवी एमके-3 के 42.4 मीटर लंबे अभियान के पूर्ण होने से इसरो को भारी उपग्रहों को उनकी कक्षा में पहुंचाने में मदद मिलेगी। जीएसएलवी एमके-3 की परिकल्पना और उसकी डिजाइन इसरो को इनसैट-4 श्रेणी के 4,500 से 5,000 किलोग्राम वजनी भारी संचार उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की दिशा में पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बनाएगा, इससे अरबों डालर के वाणिज्यिक प्रक्षेपण बाज़ार में भारत की क्षमता में इजाफा होगा।

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