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Thursday 16 April 2015 03:02:31 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के अधीन साहित्य अकादमी ने एक बेजोड़ पहल में प्रख्यात दलित लेखकों और विचारकों की एक विचार गोष्ठी आयोजित की। यह विचार गोष्ठी भारतरत्न और भारतीय संविधान के प्रधान निर्माता डॉ भीमराव राम अंबेडकर के जन्म की 125वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित की गई। विचार गोष्ठी में भाग लेने वाले जाने-माने विद्वानों में लक्ष्मण गायकवाड़, विजय सुरवाडे, जेवी पवार, प्रोफेसर नामदेव कांबले, अर्जुन डांगले, गिरीश प्रभुने, ईश्वर नंदपुरे, मधु पेराजे, रविंद्र गोले, प्रोफेसर के शानमुखा, प्रोफेसर के इनोच, डॉ शरणकुमार लिंबाले और आरएन जॉय डिक्रूज आदि शामिल थे।
डॉ विनय सहस्त्रबुद्धे ने गोष्ठी में केंद्रीय संस्कृति राज्यमंत्री डॉ महेश शर्मा का संदेश पढ़ा और विचार गोष्ठी में भाग लेने की असमर्थता के लिए उनकी ओर से खेद व्यक्त किया। अपने संदेश में डॉ महेश शर्मा ने सभी सम्मानित भागीदारों से अनुरोध किया कि वे अपने विचारों और सुझावों को स्वतंत्र रूप से साझा करें, जिस पर संस्कृति मंत्रालय के माध्यम से दलितों की बेहतरी और उनके सशक्तिकरण के लिए विचार किया जा सके। डॉ महेश शर्मा ने जोर देते हुए कहा कि दलित साहित्य विभिन्न साहित्यों में सबसे सशक्त धारा है, यह दर्द, पीड़ा और त्रासदी का साहित्य है, किंतु हमें इसे आकांक्षा के साहित्य तक ले जाना होगा, क्योंकि इस समुदाय ने आर्थिक तौर पर उन्नति की है और ऐसे अनेक दलितों के उदाहरण हैं, जिन्होंने अपने जीवन में ऊंची छलांगें लगाई हैं।
डॉ महेश शर्मा ने कहा कि हमें इससे आगे बढ़कर समन्वय के ऐसे साहित्य पर जोर देना होगा, जिसमें कुल मिलाकर समाज के समन्वय के लिए साहित्य के समन्वय पर जोर दिया गया है। डॉ महेश शर्मा ने बताया कि इस साहित्य को पाठ्य पुस्तकों में शामिल करके हम युवा पीढ़ी को संवेदनशील बना सकते हैं। उन्होंने साहित्य अकादमी के भागीदारों ने अपने तरह के इस पहले वार्ता सत्र के आयोजन का जोरदार स्वागत किया और सम्मानित महसूस किया। इसके साथ ही उन्होंने आशा व्यक्त की कि भविष्य में भी ऐसे कार्यक्रमों को प्रमुखता के साथ जारी रखा जाएगा। अधिकांश विद्वानों का यह विचार था कि दलित साहित्य, जिसे अब कई देशों में पढ़ाया जा रहा है, इसे भारत के स्कूलों में पाठ्य पुस्तकों में स्थान मिलना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सम्मानित लेखकों ने यह भी बताया है कि विदेशी भाषाओं में इनका अनुवाद करके इसे विश्व समुदाय के बीच ले जाना चाहिए। विचार-विमर्श के दौरान कई अन्य बातें सामने आईं, जिनमें दलित महिलाओं पर लेखन पर जोर देना, उदीयमान दलित लेखकों के कार्यों को बढ़ावा देना, आकांक्षा से भरपूर साहित्य को प्रमुखता देना, अस्पृश्यता और दलित जीवन के अन्य पहलुओं जैसी अवधारणाओं पर आधारित वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देना शामिल है। दलित साहित्य के विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद के साथ-साथ दलितों से संबंधित छोटी भाषाओं के संरक्षण की भी मांग की गई।