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वि‍मर्श, साहि‍त्य को जीवन ऊर्जा देते हैं-श्याम

तेजेंदर शर्मा को हरियाणा साहित्य अकादमी पुरस्कार

कथा यूके एवं डीएवी गर्ल्स कॉलेज का प्रवासी साहित्य सम्मेलन

विवेक मिश्र

Saturday 26 January 2013 09:20:11 AM

sahitya akademi award

यमुना नगर, हरियाणा। कथा यूके तथा डीएवी गर्ल्स कॉलेज यमुना नगर के संयुक्त तत्वावधान में 18-19 जनवरी को अंतराष्ट्रीय प्रवासी साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस दो दिवसीय सम्मेलन में कुल छह सत्र आयोजित किए गए तथा इसका समापन एक काव्य गोष्ठी से हुआ। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर राम बक्श सिंह ने की तथा मुख्य अतिथि वरिष्ठ आलोचक प्रोफेसर गोपेश्वर सिंह रहे। कार्यक्रम कथा यूके की संरक्षक ज़किया ज़ुबैरी के स्वागत भाषण से शुरु हुआ। उन्होंने कहा कि पिछले दिनों कथा यूके के आयोजनों को भारत के बाहर ही नहीं बल्कि भारत में भी सभी का बहुत प्रेम और समर्थन मिला है। उन्होंने यह भी कहा कि आप सब के उत्साहवर्धन से हम अपने वतन से दूर रह कर भी अपनी मिट्टी से जुड़े रहकर अपनी भाषा में साहिय रच पाते हैं।
उद्घाटन सत्र के चर्चा के विषय-प्रवासी साहि‍त्य और मुख्यधारा की अवधारणा का प्रवर्तन करते हुए वरिष्ठ कथाकार तथा कथा यूके के महासचिव तेजेंदर शर्मा ने अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि आज प्रवासी साहित्य केवल वही साहित्य नहीं, जो गिरमिटिया मज़दूरों के रूप में अपना वतन छोड़कर विदेशों में जा बसे लोगों ने अपने देश को याद करते हुए किसी नॉस्टेलजिया में लिखा है, बल्कि आज बहुतायत में ऐसे लोग प्रवास में हिंदी साहित्य रच रहे हैं, जो पढ़ने-लिखने के बाद अपनी इच्छा से देश से बाहर जाकर बसे हैं। इनके दुख-दर्द, इनके अनुभव पहले के प्रवासियों से बिलकुल अलग हैं। यह आज लगभग एक वैश्विक गांव की अवधारणा में जीने वाले लोग हैं। इससे इनका साहित्य सिर्फ़ नॉस्टेलजिया में रचा जा रहा साहित्य नहीं है, बल्कि वह हिंदी की तथाकथित मुख्य धारा में रचे जा रहे साहित्य की तरह बहुआयामी और गंभीर साहित्य है। उसे अलग करके नहीं, बल्कि मुख्यधारा से जोड़कर ही देखा जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि लगातार बदलते समय में भारत से बाहर लिखे जा रहे साहित्य को परखने के लिए आलोचना के नए औज़ार विकसित करने की ज़रूरत है।
सत्र के मुख्य अतिथि गोपेश्वर सिंह ने कहा कि आज दरसल साहित्य की कोई मुख्यधारा नहीं है और यदि है भी तो उस पर भी पाठकों की कमी का संकट है, इसलिए यदि प्रवासी साहित्यकार चाहते हैं कि उन्हें भारत में पाठक और आलोचक स्वीकार करें तो उन्हें भी वही जोखिम उठाने होंगे, उन्ही चुनौतियों का सामना करना होगा, जिनका कि यहां के साहित्यकार कर रहे हैं। कार्यक्रम के अध्यक्ष ने प्रवास की पीड़ा से जन्मे अलगाव की पीड़ा और उससे उपजे साहित्य को अपने आप में एक ऐसी धारा बताया, जिसकी अपनी एक मुख्यधारा बनती नज़र आ रही है।
हरियाणा साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ श्याम सखा श्याम ने भी अपने विचार रखे। उन्होंने कथाकार तेजेंदर शर्मा को हरियाणा साहित्य अकादमी पुरस्कार दिए जाने की भी घोषणा की। सत्र का संचालन कथाकार-आलोचक डॉ अजय नावरिया ने किया। वह इस पूरे आयोजन के संयोजक भी थे। उन्होंने यह बात शुरुआत में ही ज़ोर देकर कही कि मुख्यधारा एक दमघोंटू मुहल्ले का रूप ले रही है, जहां यदि ताज़ी हवा न पहुंची तो वह सड़ने लगेगा। इस तरह के वि‍मर्श, साहि‍त्य को जीवन ऊर्जा देते हैं और उसे समृद्ध करते हैं। इस अवसर पर डॉ अजय नावरिया तथा डीएवी कॉलेज की प्राचार्या डॉ सुषमा आर्य की पुस्तक ‘प्रवासी हिंदी कहानी-एक अंतर यात्रा’ का लोकार्पण भी किया गया। डॉ सुषमा आर्या ने अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में-प्रवासी साहित्य में अस्मिता निर्मिति के सूत्र विषय पर चर्चा हुई। अध्यक्ष्ता प्रोफेसर जबरीमल्ल पारिख अध्यक्ष, हिंदी विभाग, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय ओपन यूनिवर्सिटी ने की तथा मुख्य अतिथि अंबेडकर विश्वविद्यालय नई दिल्ली के सत्यकेतु सांकृत रहे। इस सत्र में दाइतो बंका यूनिवर्सिटी टोक्यो, जापान के प्रोफेसर हिदेआकी इशिदा मुख्य वक्ता थे। उन्होंने तेजेंदर शर्मा तथा ज़किया ज़ुबैरी की कहानियों पर बात करते हुए कहा कि यह कहानियां कहीं से भी प्रवासी साहित्य कहकर किनारे की जा सकने वाली कहानियां नहीं हैं, इनमें वही पैनापन और धार है, जो किसी भी एशियाई लेखक की कहानियों में होना चाहिए। इस सत्र में डॉ मधु अरोड़ा, डॉ प्रीत अरोड़ा ने भी अपना पर्चा पढ़ा। सत्र का संचालक एवं विषय प्रवर्तन डॉ नीलम ने किया। डॉ नीलम का कहना था कि प्रवासी कहानियों में स्त्री की घुटन भरी ज़िंदगी जिस शिद्दत से प्रस्तुत की जाती है, उतनी मार्मिकता से हिंदी कहानी में अन्यत्र कहीं नहीं दिखाई देती। ये स्त्रियां अपनी जिम्मेदारियों का वहन पूरी ईमानदारी से करती हैं, बच्चों के बड़े हो जाने के बाद, ये अपने पैरों की बेड़ियां तोड़ स्वतंत्र अस्तित्व का निर्माण करती हैं।
तृतीय सत्र का विषय ‘प्रवासी साहित्य: यथार्थ और अलगाव के द्वंद्व’ रहा तथा इसकी अध्यक्षता प्रोफेसर मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, प्रख्यात आलोचक तथा संपादक नया पथ ने की। वरिष्ठ आलोचक डॉ रेखा अवस्थी कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थीं। इस सत्र में विशिष्ट अतिथि डॉ बली सिंह थे तथा वक्तागणों में मीनाक्षी जिजिविषा और निर्मल रानी थीं। इस सत्र का संचालन एवं विषय प्रवर्तन कहानीकार विवेक मिश्र ने किया।
दूसरे दिन 19 जनवरी के प्रथम सत्र में ‘प्रवासी साहित्य का देश और काल’ विषय पर चर्चा हुई, जिसकी अध्यक्षता कनाडा से आईं साहित्यकार स्नेह ठाकुर ने की एवं कथाकार तरूण भटनागर मुख्य अतिथि रहे। सत्र की विशिष्ट अतिथि आउटलुक मैगजीन की फ़ीचर एडीटर तथा कथाकार आकांक्षा पारे थीं। डॉ रहमान मुसव्विर प्राध्यापक जामिया मिल्लिया इस्लामिया तथा डॉ मीना शर्मा ने अपने विचार रखे। सत्र का संचालन एवं विषय प्रवर्तन विपिन चौधरी ने किया। इस सत्र के पश्चात वेल्स (ब्रिटेन) के कवि-फ़िल्मकार डॉ निखिल कौशिक निर्देशित इक लघु फ़िल्म को पर्दे पर दिखाया गया। फ़िल्म का निर्माण लंदन की एक महत्वपूर्ण संस्था एशियन कम्युनिटी आर्ट्स ने किया। शीर्षक था-सैलेब्रेटिंग ब्रिटिश हिंदी लिटरेचर। यह फ़िल्म तेजेंदर शर्मा के 60वें जन्मदिन के उपलक्ष्य में बनाई गई थी।
दूसरे दिन के द्वितीय सत्र का विषय ‘प्रवासी साहित्य: क्षितिज का विस्तार’ था, जिसकी अध्यक्षता जय वर्मा कथाकार ब्रिटेन ने की और मुख्य अतिथि अर्चना पैन्यूली कथाकार डेनमार्क रहीं।
सत्र के विशिष्ट अतिथि कहानीकार विवेक मिश्र रहे। सत्र में कल्पना शर्मा ने अपने विचार रखे। सत्र का संचालन एवं विषय प्रवर्तन प्रांजल धर ने किया। डॉ रहमान मुस्सविर का कहना था कि ज़किया ज़ुबैरी की कहानियां उस समाज के चित्र प्रस्तुत करती हैं, जो हमारे लिए अजनबी और नितांत नया है। नए भावबोध, नए यथार्थ और नए अनुभव के संसार से हमें जोड़ती ज़किया ज़ुबैरी की कहानियां अपनी भावों की सघनता, सरोकारों की व्यापकता और अनुभव की प्रामाणिकता के कारण जानी पहचानी जाती हैं।दिन के तीसरे एवं आखरी सत्र का विषय ‘प्रवासी साहित्य: पहचान का संकट और पुनर्वास’ था, जिसके अध्यक्ष मंडल में प्रोफेसर हरिमोहन शर्मा, हिंदी विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय, कमलेश भारतीय उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी, जय वर्मा कवियत्री ब्रिटेन, ज़क़िया जु़बैरी, डॉ सुषमा आर्य, तेजेंदर शर्मा थे। सत्र का संचालन पुन: डॉ अजय नावरिया ने किया। एशियन कम्युनिटी आर्ट्स की अध्यक्ष काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी का कहना था कि साहित्य में ईर्ष्या या द्वेश के लिए कोई स्थान नहीं है, जो लोग साहित्य के लिए सकारात्मक कार्य कर रहे हैं, उन्हें समर्थन दिया जाना चाहिए, ईर्ष्या जैसा नकारात्मक रवैया नहीं अपनाया जाना चाहिए, शेक्सपीयर ने कहा था कि जलन कई स्तरों पर मनुष्य को जलाती है, उससे हासिल कुछ नहीं होता।
कार्यक्रम का समापन एक काव्य गोष्ठी से हुआ, जिसकी अध्यक्षता डॉ श्याम सखा श्याम कवि, कथाकार तथा सचिव हरियाणा साहित्य अकादमी, हरियाणा ने किया और डॉ ब्रजेंद्र त्रिपाठी कवि, उपसचिव साहित्य अकादमी इसके मुख्य अतिथि रहे। सत्र के विशिष्ट अतिथि डॉ अमरनाथ अमर दूरदर्शन दिल्ली रहे। गोष्ठी के कवियों में तेजेंदर शर्मा, ज़क़िया जु़बैरी, स्नेह ठाकुर, जय वर्मा,विपिन चौधरी, रहमान मुसव्विर, दीप्ति शर्मा, मीनाक्षी जिजिविषा थे। इस गोष्ठी का संचालन तेजेंदर शर्मा ने किया। डॉ सुषमा आर्य ने अंत में सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया।

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