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Monday 28 January 2013 07:59:16 AM
गंगा आदि की पवित्रता की चिंता और आवश्यकता साधु-संतो व चंद पर्यावरण प्रेमियों को ही है। सरकार के प्रशासन और आम जनता को नहीं है। गंगा की पवित्रता का दायित्व सभी पर है, विशेष तौर से संप्रग सरकार पर, क्योंकि राजीव गांधी के प्रधानमंत्री काल में गंगा की पवित्रता की ओर स्वयं राजीव गांधी ने ही ध्यान दिया था। उनके काल से गंगा आदि नदियों की पवित्रता की आवाज़ सुनाई दी, गंगा आदि नदियों की पवित्रता पर कार्य शुरू हुआ।
इस कार्यकाल को लंबा समय हो गया सरकारें आईं, प्रधानमंत्री आए, गंगा की पवित्रता की बात चलती रही और अब पुनः कांग्रेस गठबंधन की सरकार आई है। सोनिया गांधी के हाथ में उसकी डोर है, फिर भी गंगा अपनी पवित्रता के लिए तरस रही है। गंगा ही नहीं, गंगा प्रेमी भी बेहद दुःखी हैं, परंतु इन लोगों में इच्छा शक्ति की कमी दिखाई देती है, वरना गंगा कभी की अपने वास्तविक अस्तित्व में आ जाती।
साधु-संतों को भी विशेष पर्वों पर और वह भी गंगा के स्नान के पर्वों पर गंगा की पवित्रता का ध्यान आता है और फिर सरकार को उलाहना देने लगते हैं। शाही स्नान नहीं करेंगे, जल समाधि लेंगे आदि-आदि। चतुर प्रशासन ने अतिरिक्त पानी छोड़ा गंगा कुछ हद तक शुद्ध हो गई, साधु-संतों की सब धमकियां भी धराशाई हुईं। शाही स्नान हुआ और संत चले जाएंगे, प्रदूषण तांडव करेगा, जबकि संतों को पुरजोर से ये आंदोलन जारी रखते हुए यहीं जमकर बैठना चाहिए और गंगा को पूर्णतः शुद्ध कराना चाहिए।
साधु-संतों को धनाड्य वर्ग से और जो भी नदी में अपना औद्योगिक गंदा कचरा डालते हैं, उनसे सभी प्रकार की दान-दक्षिणा लेने से इंकार कर देना चाहिए। जो लोग सरकार को टैक्स देकर व ईमानदारी का धंधा करते हैं, उनकी ही दान-दक्षिणा लें। दूषित धन से मन प्रदूषित हो जाता है और मन के प्रदूषित हो जाने से इच्छा शक्ति कमजोर हो जाती है। साधु संत प्रबल इच्छा शक्ति से गंगा में गंदगी डालने वाले तत्वों के आगे धूणा लगाकर बैठ जाएं और तब तक बैठे रहें, जब तक वे गंगा में गंदगी डालना बंद नहीं कर देते।