स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Saturday 11 July 2015 02:14:51 AM
पटना। बिहार विधान परिषद के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को चौबीस में से बारह सीटों पर सफलता मिलने से भाजपा के खिलाफ खड़ा महागठबंधन हिल गया है। बिहार विधानसभा चुनाव दरवाजे पर हैं, इसलिए ऐसे में भाजपा को मिली यह सफलता अगली रेकॉर्ड सफलता का साफ संकेत दे रही है। बिहार विधान परिषद में भाजपा के पास केवल पांच सीटें थीं, जिनका बारह हो जाना इस बात का प्रमाण है कि बिहार में लालू प्रसाद यादव या नीतीश कुमार का महागठबंधन भाजपा का मुकाबला करने में विफल हो गया है। इस चुनाव में लालू और नीतीश की जबरदस्त किरकिरी तो हुई ही है, इसमें समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव तक भी आंच गई है, जो इस महागठबंधन के न केवल सूत्रधार कहे जाते हैं, अपितु इसी महागठबंधन के बूते पर भाजपा के खिलाफ तीसरे मोर्चे की वकालत करते हैं। मुलायम सिंह यादव के लिए भी भाजपा की यह सफलता एक बड़ी चुनौती है तो रणनीतिक पराजय भी मानी जा रही है।
बिहार में भाजपा के खिलाफ महागठबंधन धराशाई होगा, यह यहां की जनता को पता है, लेकिन लालू-नीतीश और उनकी चाट-पकौड़ी में व्यस्त मीडिया को नहीं पता है, जनता के मन में क्या चल रहा है। वह टीवी चैनलों पर देश के कुछ और ही मुद्दे उछालकर बिहार में महागठबंधन को बढ़त दिखा रहे हैं। बिहार की जनता ने मीडिया और महागठबंधन के सारे कयासों को दरकिनार कर भाजपा को ऐसे मौके पर सफलता दी है, जब देशभर में मीडिया, कांग्रेस, जनतादल यू एवं राजद कभी दिल्ली और कभी पटना में बैठकर बिहार में महागठबंधन के मंत्रियों की सूची बना रहे हैं। नीतीश कुमार और लालू यादव तो भाजपा के खिलाफ दो पार्टी हैं ही, यहां के लोग मीडिया को भी एक पार्टी मानते हैं, जो भाजपा के खिलाफ अभियान का हिस्सा है। मीडिया में भी लोग टीवी चैनलों के खिलाफ हैं, जो राजनीतिक खबरों पर बिहार की जनता को गुमराह कर रहे हैं। इस चुनाव में भी टीवी चैनलों का गंदा रोल सामने आया और विधान परिषद चुनाव में सबकी उम्मीदों के विपरीत फैसला आया।
भाजपा ने बिहार विधान परिषद में एक तरह से तेरह सीटें जीती हैं, जिनमें कटिहार सीट पर जीते निर्दलीय अशोक कुमार को भाजपा का समर्थन था। पटना सीट पर निर्दलीय रीतलाल यादव की जीत हुई है। इस जीत का भी मीडिया को कोई भरोसा नहीं था, महागठबंधन में भी रीतलाल यादव की जीत को आश्चर्य की दृष्टि से देखा जा रहा है। दरभंगा प्रमंडल की तीनों सीट भाजपा ने जीती हैं। दरभंगा से दो बार जीते राजद के प्रत्याशी को इस बार भाजपा के सुनील सिंह ने हरा दिया। नीतीश कुमार नालंदा की सीट पर संतोष व्यक्त कर सकते हैं, जहां जदयू की प्रत्याशी रीना देवी ने लोजपा के उम्मीदवार रंजीत डॉन को हराया है, मगर छपरा से जदयू के प्रत्याशी सलीम परवेज चुनाव हार गए हैं। वे अभी तक बिहार विधान परिषद के उप सभापति भी थे। सलीम परवेज की पराजय महागठबंधन की एकता के दावों पर भी प्रश्न चिन्ह है। यह पराजय महागठबंधन को चुभ रही है और आगामी चुनावों में उसे मुसलमान वोटों का नुकसान हो सकता है। महागठबंधन में इसे लेकर कल से बहुत बड़ा बवाल मचा हुआ है।
नीतीश-लालू महागठबंधन को इस चुनाव में दस सीटें मिली हैं और कहां कम से कम बीस सीटें जीतने का दावा था, मगर महागठबंधन को जो दस सीटें मिली हैं, वह भी बड़े संघर्ष के बाद मिलीं। महागठबंधन अपने गढ़ों में पराजित हुआ है। कहने वाले कहते हैं कि सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब महागठबंधन विधान परिषद चुनाव में इस कदर मुंह की खाया है तो बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा के सामने कैसे टिकेगा? महागठबंधन के नेता यह सच्चाई क्यों नहीं मानते हैं कि जो महागठबंधन दिख रहा है, वह कुछ उनके ड्राइंगरूम और टीवी चैनलों तक ही सीमित है। अब तो यह भी सच है कि बिहार की जनता का नीतीश और लालू यादव से जो मोहभंग हुआ था और जिसके फलस्वरूप उसने लोकसभा चुनाव में और उसके बाद झारखंड में भाजपा को विजय दिलाई, वह तिलिस्म अभी भी कायम है और इस विधान परिषद चुनाव से साफ लगता है कि विधानसभा चुनाव में महागठबंधन का सफाया होगा और यहां की जनता भाजपा को सत्ता सौंपेगी। पिछले हफ्ते बैशाली में लालू यादव की जनसभा में एक दृश्य दिखाई दिया। लालू यादव के बेटे तेज प्रताप यादव ने महुआ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की जैसे ही इच्छा प्रकट की, वहां महाभारत शुरू हो गया। पहले से यहां से राजद के प्रत्याशी जागेश्वर राय और तेज प्रताप यादव के समर्थक भिड़ गए, जिन्हें किसी तरह लालू यादव ने शांत कराया। अंदाजा लगाइए कि अब बिहार लालू यादव की कितनी परवाह करता है और बिहार की राजनीति में लालू का कितना खेल बचा है।
भारतीय जनता पार्टी बिहार विधान परिषद चुनाव परिणाम से बेहद गदगद है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह बिहार में अगली बार भाजपा की सरकार को लेकर पूर्ण आश्वस्त हैं। वे इससे पहले भी कह चुके हैं कि उन्हें बिहार की जनता पर भरोसा है, जिसने भाजपा को लोकसभा में और झारखंड में भारी सफलता दिलाई है। भाजपा ने बिहार के राजनीतिक समीकरणों में पिछड़े वर्ग को प्राथमिकता दी है, इसी रणनीति के तहत झारखंड में पिछड़े वर्ग के नेता रघुवर दास को मुख्यमंत्री भी बनाया गया। पिछड़ा वर्ग बाहुल्य बिहार लंबे समय से लालू यादव, राबड़ी देवी, नीतीश कुमार, जीतनलाल मांझी और फिर से नीतीश कुमार का शासन देख रहा है। जनता ने देखा कि इस महागठबंधन के नेताओं ने जीतनलाल मांझी को काम ही नहीं करने दिया। नीतीश कुमार ने मांझी को हटाकर फिर से सत्ता संभाल ली। विधान परिषद चुनाव में महागठबंधन की पोल भी और मुट्ठी भी खुल गई है, देशभर को इसके नेताओं की ताकत पता चल गई है। बिहार विधानसभा चुनाव की भी प्रतीक्षा कीजिए, जिसमें महागठबंधन के दिग्गज नेता बिहार की जनता से और सत्ता के स्वार्थी गठबंधनों से तौबा करते नज़र आएंगे।