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Friday 11 September 2015 01:15:28 AM
भोपाल। भोपाल में दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भाषा शास्त्रियों का मत है कि दुनिया में करीब-करीब 6000 भाषाएं हैं और जिस प्रकार दुनिया बदल रही है, उनका अनुमान है कि 21वीं सदी के अंत में इन भाषाओं में से 90 प्रतिशत भाषाओं के लुप्त हो जाने की संभावनाएं दिखाई दे रही हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर इस चेतावनी को हम न समझें और हम अपनी हिंदी भाषा का संवर्धन और संरक्षण न करें तो फिर हमें भी रोते रहना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि भाषा में वो ताकत होनी चाहिए, जो हर एक को अपने आप में समेट ले और इसके लिए हमारे साहित्य के महापुरुषों फणीश्वरनाथ रेणु, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, मैथिलीशरण गुप्त, हजारीप्रसाद द्विवेदी, रामधारी सिंह दिनकर, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, धर्मवीर भारती आदि महापुरुषों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया है।
विश्व हिंदी सम्मेलन की भोपाल में यूं तो जोरदार तैयारियां की गईं, किंतु ऐसा भी लगा है कि भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसे पूरे मन से आयोजित नहीं किया। इसका प्रमुख कारण यह बताया जा रहा है कि यदि यह सम्मेलन किसी दूसरे देश में होता तो भारतीय विदेश मंत्रालय की इसमें भारी रूचि होती, क्योंकि इसके नाम पर अधिकारियों को बड़े सैरसपाटे का अवसर मिलता। बहरहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करीब 39 देशों से आए हिंदी प्रतिनिधियों की मौजूदगी को हिंदी का महाकुंभ कहकर संबोधित किया। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के हिंदी अधिवेशन में हिंदी भाषा पर जोर देने के प्रयास का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वास्तव में जब भाषा होती है, तब हमें अंदाज नहीं होता है कि उसकी ताकत क्या होती है, लेकिन जब भाषा लुप्त हो जाती है तब हर सबकी चिंता होती है कि कौन सी भाषा है, लिपि कौन सी है, सामग्री क्या है, विषय क्या है? उन्होंने कहा कि आज कहीं पत्थरों पर कुछ लिखा हुआ मिलता है, पुरातत्व विभाग उसकी खोज में लगा रहता है कि लिखा क्या गया है? भाषा के लुप्त होने के बाद जो संकट पैदा होता है, तभी हमें उसकी गहराई का अंदाजा लगता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारी संस्कृत भाषा में ज्ञान के भंडार भरे पड़े हैं, लेकिन संस्कृत भाषा को जानने वाले लोगों की कमी के कारण, उन ज्ञान के भंडारों का लाभ हम नहीं ले पा रहे हैं, कारण क्या है? हमें पता तक नहीं चला कि हम अपनी इस महान विरासत से धीरे-धीरे कैसे अलग होते गए, हम दूसरी चीजों में ऐसे लिप्त हो गए कि हमारा अपना ज्ञान का भंडार लुप्त हो गया, इसलिए हर पीढ़ी का ये दायित्व बनता है कि उसके पास जो विरासत है, उसे सुरक्षित रखा जाए और उसे आने वाली पीढ़ियों में संक्रमित किया जाए। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने वेद पाठ में परंपरा पैदा की थी, वेदों के ज्ञान को पीढ़ी दर पीढ़ी ले जाने के लिए वेद-पाठी हुआ करते थे, तब लिखने-पढ़ने की सुविधा नहीं थी, कागज की खोज नहीं हुई थी, तब वह ज्ञान स्मृति से दूसरी पीढ़ी में संक्रमित किया जाया करता था, पीढ़ियों तक ये परंपरा चलती रही थी, इसलिए हर पीढ़ी का दायित्व रहता है, भाषा को समृद्धि देना।
नरेंद्र मोदी ने कहा कि मेरी मातृभाषा हिंदी नहीं है, मेरी मातृभाषा गुजराती है लेकिन मैं कभी सोचता हूं कि अगर मुझे हिंदी भाषा बोलना न आता, समझना न आता, तो मेरा क्या हुआ होता, मैं लोगों तक कैसे पहुंचता, मैं लोगों की बात कैसे समझता? उन्होंने कहा कि देश में हिंदी भाषा का आंदोलन जिन लोगों ने चलाया, उनमें ज्यादातर की मातृभाषा हिंदी नहीं थी। सुभाष चंद्र बोस, लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, काका साहेब कालेलकर, राजगोपालाचार्य, इन सबकी मातृभाषा हिंदी नहीं थी, मगर उन्होंने हिंदी भाषा के लिए, उसके संरक्षण और संवर्धन के लिए जो दीर्घदृष्टि से काम किया, वह हमें प्ररेणा देता है। उन्होंने कहा कि आचार्य विनोबा भावे और दादा धर्माधिकारी तक ने हिंदी भाषा और लिपि को अलग-अलग ताकत के रूप में पहचाना था, विनोबा जी ने कहा था कि हिंदुस्तान की जितनी भाषाएं हैं, उनकी अपनी लिपि को तो बरकरार रखें ही, उनको समृद्ध भी बनाएं, लेकिन नागरी लिपि में भी अपनी भाषा लिखने की आदत डालें। उन्होंने कहा कि भारत की राष्ट्रीय एकता के लिए एक बहुत बड़ी ताकत के रूप में हिंदी सामने आई।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भाषा वो मचलता हुआ हवा का झोंका है, जिस प्रकार से बहता है, जहां से गुजरता है, वहां की सुगंध को अपने साथ लेकर और जोड़ती चलती है, इसी प्रकार भाषा में भी वो ताकत होती है कि जिस पीढ़ी से गुजरे, जिस इलाके से गुजरे, जिस हालात से गुजरे, वो अपने आप में समाहित करती है, वो अपने आप को पुरस्कृत करती रहती है, ये ताकत भाषा की होती है, इसलिए भाषा चैतन्य होती है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि पिछले दिनों जब प्रवासी भारतीय सम्मेलन हुआ था तो हमारे विदेश मंत्रालय ने एक बड़ा अनूठा कार्यक्रम रखा था कि दुनिया के अन्य देशों में भारतीय लेखकों की लिखी गई किताबों का प्रदर्शन किया जाए, मैं हैरान था और खुश भी था कि अकेले मॉरिशस से 1500 लेखकों की किताबें और वो भी हिंदी में लिखी गई किताबों का वहां पर प्रदर्शन था। उन्होंने कहा कि हिंदी भाषा समृद्ध कैसे बने, भाषाशास्त्री उस पर चर्चा करें, हम हिंदी और तमिल भाषा की कार्यशाला करें और तमिल भाषा में जो अद्भुत शब्द हों, देखें कि उनको हम हिंदी भाषा का हिस्सा बना सकते हैं क्या? बांग्ला भाषा के पास जो अद्भुत शब्द-रचना है, जो हिंदी के पास न हो तो क्या हम वह उससे ले सकते हैं? हिंदी को समृद्ध बनाने के लिए दूसरी भाषाओं के शब्दों की भी हमें जरूरत है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर की डोगरी भाषा के भी दो-चार शब्द, कहावतें, वाक्य हिंदी में समाहित हो जाएं तो ऐसा करके हिंदी भाषा की समृद्धि के लिए प्रयास करना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने कहा कि मातृभाषा के रूप में हर राज्य के पास ऐसा अनमोल खजाना है, उसको हम कैसे जोड़ें और जोड़ने में हिंदी भाषा एक सूत्रधार का काम कैसे करे, उस पर अगर हम बल देंगे, हमारी भाषा और ताकतवर बनती जाएगी और उस दिशा में हम प्रयास कर सकते हैं। नरेंद्र मोदी ने कहा कि भाषा सहजता से सीखी जा सकती है, थोड़ा सा प्रयास करें, उसमें सुधार आ जाएगा। प्रधानमंत्री ने बताया कि मॉरीशस में विश्व हिंदी साहित्य का सचिवालय अब शुरू हुआ है और विश्व हिंदी साहित्य का एक सेंटर भी हम शुरू कर रहे हैं, उसी प्रकार से उज्बेकिस्तान में मध्य एशिया में शब्दकोश का लोकापर्ण करने का मुझे अवसर मिला और वो शब्दकोश, हिंदी उज़्बेक, उज़्बेक के लिए हिंदी है, इसलिए अब देखिए दुनिया के लोगों में कितना हिंदी के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि चीन में मैं फूदान विश्वविद्यालय में गया, वहां पर हिंदी भाषा में लोग मेरे से बात कर रहे थे, उनको भी लगता था कि इसका माहात्म्य कितना है, मंगोलिया, रूस, मध्य एशिया में तो शायद आज भी बच्चे हिंदी फिल्मों के गीत गाते हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि साहित्य सृजनकारों ने जीवन में एक कोने में बैठकर मिट्टी का दीया, तेल का दीया जला-जला करके, अपनी आंखों को भी खो दिया और हमारे लिए बहुत कुछ छोड़कर गए, लेकिन अगर उनकी वो भाषा ही नहीं बची तो इतना बड़ा साहित्य कहां बचेगा, इतना बड़ा अनुभव का भंडार कहां बचेगा? इसलिए भाषा के प्रति लगाव भाषा को समृद्ध बनाने के लिए होना चाहिए। प्रधानमंत्री ने आह्वान किया कि भारतीय भाषाओं और हिंदी भाषा को भी प्रौद्योगिकी के साथ परिवर्तित करें, जितना तेजी से इस क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञ हमारी स्थानीय भाषाओं से लेकर हिंदी भाषा तक नए सॉफ्टवेयर तैयार करें, नए ऐप्स लाएं, हिंदी भाषा एक बहुत बड़ा बाज़ार बनने वाली है। उन्होंने कहा कि भाषा अभिव्यक्ति का साधन होती है, हमारी भावनाओं को जब शब्द-देह मिलती है, तो हमारी भावनाएं चिरंजीव बन जाती है, इसलिए भाषा उस शब्द-देह का आधार होती है।