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Sunday 03 February 2013 04:27:22 AM
चमोली। विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध से जुड़े आंदोलनकारियों का कहना है कि उत्तराखंड में अलकनंदा गंगा पर प्रस्तावित विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध परियोजना पर अभी भी रोक जारी है। सर्वोच्च न्यायालय के हवाले से 25 जनवरी को एक भ्रामक ख़बर आई और उसके बाद विश्व बैंक व अन्य सरकारी परियोजनाओं से जुड़े देहरादून के एक एनजीओ ने वक्तव्य जारी किया, जिसे कई अखबारों ने छापा है, मगर इस तरह की किसी खबर की कोई पुष्टि नही हो रही है। प्रकाशित समाचार अभी तक भ्रामक, तथ्यहीन, आधारहीन है। आंदोलनकारियों का कहना है कि हम फैलाई जा रही अपवाहो से परेशान होने वाले नही है। हम उत्तराखंड के पर्यावरण जोकि देश भर के लिये महत्वपूर्ण है और लोगो के प्राकृतिक संसाधनों के अधिकारों तथा पहले से प्रभावित हो चुके लोगो के उचित पुनर्वास के लिये अपना संघर्ष जारी रखेंगे।
विष्णुगाड-पीपलकोटी की वन स्वीकृति के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के 24 जनवरी, 2013 के आदेश में ऐसा कहीं कुछ नहीं लिखा है, जिसे प्रचारित किया जा रहा है। इसमें सब सही नहीं है, बांध के पक्ष में हवा बनाने के लिये यह दुष्प्रचार है। आदेश में सिर्फ याचिका को निरस्त करने के बारे में लिखा है, केस आदेश की प्रति पढ़कर ही सही स्थिति मालूम होती है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के 14 नवंबर 2011 के आदेश में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को निर्देश दिया गया था कि वो विभिन्न बांध परियोजनाओं में भौतिक, जैविक और सामाजिक दृष्टि से एक-दूसरे पर पड़ने वाले असरों पर एक उचित समिति बनाए, जिसके निणर्य व सिफारिशें निश्चित समय पर आए, ताकि लाभ-लागत का अनुपात निकालने में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को अंतिम निर्णय लेने के समय अनचाहे पर्यावरणीय एवं पारिस्थितिकीय खतरे को दूर किया जा सके, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय वन भूमि हस्तांतरण के सही मूल्यांकन के लिये लाभ-लागत निकालने के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देशों को तैयार करे।
उत्तराखंड के पर्यावरण व निवासियों के भविष्य के हित में विमल भाई और भरत झुनझुनवाला ने सर्वोच्च न्यायालय में इसी आदेश को विष्णुगाड-पीपलकोटी परियोजना पर भी लागू करने के लिये याचिका दायर की थी, जिसे सर्वोच्च अदालत ने स्वीकार तो नहीं किया, किंतु कानूनी रुप से टीएचडीसी अभी बांध काम नहीं कर सकती है, बिना द्वितीय चरण की वन स्वीकृति के बांध का काम नहीं हो सकता है, जो कि अभी नहीं मिली है। सरकार ने राष्ट्रीय नदी गंगा व उसकी सहायक नदियों में लगातार बहने वाला पानी कितना हो, यह तय करने के लिये योजना आयोग के सदस्य बीके चतुर्वेदी की अध्यक्षता में विभिन्न मंत्रालयों की एक समिति बनाई है, जिसकी रिपोर्ट मार्च 2013 में आने की संभावना है। विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध का भविष्य इस समिति की रिर्पोट पर भी निर्भर करता है।
इन सब बातों से जाहिर है कि बांध के प्रभावों को, बांध पीड़ितों की समस्याओं को समझे बिना, सिर्फ बांध के पक्ष में वे ही बोल सकते हैं, जिनके हित बांध के साथ जुड़े हैं, जिन्होंने कभी बांध प्रभावितों की लड़ाई नहीं लड़ी है, जिन्हें उत्तराखंड के स्थाई विकास और पर्यावरण सुरक्षा से कोई मतलब नहीं है। बांध की जनसुनवाई के समय विरोध में खड़े कुछ व्यक्ति अब कितने ठेके और दूसरे लाभ लेकर बैठे हैं, यह जानने से उनके बांध समर्थन की सारी असलियत सामने आ जाती हैं। टिहरी बांध विस्थापितों का पुनर्वास ना किये जाने पर सर्वोंच्च न्यायालय में एनडी जुयाल और शेखर सिंह बनाम भारत सरकार व अन्य तथा विस्थापितों के दूसरे मुकद्में चल रहे हैं, जिनमें लगातार दिये गये आदेशों के बावजूद भी उनका पालन नहीं हो रहा है। इस पर न्यायाधीशों को कड़ी टिप्पणियां करनी पड़ी हैं, यदि अदालत का दवाब नहीं होता तो पुनर्वास के नाम पर जो हुआ है, वो भी नही होता।
इन्हीं कार्यतर बांधों में हो रही पर्यावरण व विस्थापितों की दुर्दशा के परिप्रेक्ष्य में बांधों का विरोध हो रहा है। ज्ञातव्य है कि जुलाई 2010 को भी स्थानीय लोगों के पत्र के आधार पर विश्व बैंक ने इस परियोजना को वित्तीय सहायता देने पर विचार नहीं किया था। बांध के पावर हाउस के लिये जाने वाली सुरंग हरसारी गांव के नीचे से निकाली जा रही है, जिसके कारण 2004 से लोगों के घरों में दरारें आईं, जलस्त्रोत सूखे, खड़ी फसल का नुकसान हुआ। प्रभावितों ने काम रोके रखा। जिलाधीश व बाद में विश्व बैंक के अधिकारी भी 15 मार्च, 2012 को गांव आकर समस्याओं को देख गए हैं, किंतु नुकसानों का मुआवजा आज तक नहीं मिला। आश्वासन दिया गया कि हरसारी गांव के प्रभावितों से बात करके सुरंग का रुख बदला जायेगा, किंतु टीचडीसी ने एक तरफ़ा कार्रवाई करके बिना प्रभावितों से चर्चा किये जुलाई 2012 में दूसरी सुरंग का निर्माण का कार्य शुरू कर दिया, जो कि पूर्व सुरंग से मात्र 10 मीटर अलग है।
टीएचडीसी, प्रभावितों को आगे के विकल्प देने की बात कर रही है, किंतु अब तक के हुए नुकसानों की बात को वह टाल रही है। प्रभावितों पर दवाब है कि वे पहले बांध की स्वीकृति के लिये हामी भर दें फिर उनके पूर्व में हुए नुकसानों पर चर्चा की जाएगी। इसमें भी भरपाई की गारंटी नहीं है। वर्तमान में हो रहे विस्फोटों से हरसारी गांव का शेष पानी भी सूखने के कगार पर है। दुर्गापुर गांव में भी यही होने वाला है। गुलाब कोटी व यूंणा आदि गांवों की जमीनों में मक डालने से समस्याएं हो रही हैं। नौरख गांव में बिना वन स्वीकृति के बांध के लिये सड़क निर्माण किया जा रहा है, जिसे वन विभाग ने रोका है। ठेकेदार को नौरख के वन सरपंच ने मात्र जुर्माना लगाकर छोड़ा है, किंतु टीचडीसी ने इसमें कोई जिम्मेदारी नहीं ली है।