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Wednesday 27 April 2016 06:00:47 AM
नई दिल्ली। केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने आज वित्त मंत्रालय से संबद्ध परामर्शदात्री समिति की ‘बैंकिंग सेक्टर की गैर निष्पादित संपत्तियों’ पर आयोजित दूसरी बैठक में भाग लिया, जिसमें उन्होंने बताया कि बैंकिंग सेक्टर खासकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की गैर निष्पादित संपत्तियों के मामले को सुलझाने के लिए कई उपाय किए हैं। वित्तमंत्री ने बताया कि दो तरह के बकायेदार हैं-एक वैसे जो घरेलू और वैश्विक मंदी या अन्य कारणों से बकाए का भुगतान करने में सक्षम नहीं हैं और दूसरे वे जो बैंकों के बिना सोचे समझे दिए गए कर्ज का जानबूझकर भुगतान नहीं कर रहे हैं, सरकार ने इन दोनों श्रेणियों के बकायेदारों से निपटने के लिए कई उपाय किए हैं।
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि आर्थिक मंदी के कारण जिन कर्जों का भुगतान नहीं हो पा रहा है, उनके लिए सरकार ने मुख्यत: स्टील, वस्त्र, ऊर्जा और सड़क के अलावा अन्य दबाव वाले सेक्टरों को पुर्नजीवित करने के कई उपाय किए हैं। अरुण जेटली ने कहा कि सरकार ने बैंकों को फिर से पूंजी देने के लिए पूर्व के केंद्रीय बजट 2015-16 और इस साल के बजट 2016-17 में 25,000 करोड़ रुपए देने का प्रावधान किया है। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक बैंकों के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशकों सहित शीर्षस्थ प्रबंधन की नियुक्ति में पारदर्शिता और पेशावारानापन लाया गया है। उन्होंने कहा कि सरकार के बिना किसी तरह के हस्तक्षेप के व्यावसायिक निर्णय लेने के लिए सरकार ने बैंक प्रबंधन पेशेवरों को पूरी स्वायत्तता देने के कई उपाय किए हैं।
अरुण जेटली ने कहा कि दीवालिया कानून संयुक्त संसदीय स्थायी समिति में पारित हो गया है और जल्दी ही मौजूदा संसद सत्र में विचार के लिए पेश किया जाएगा। उन्होंने कहा कि वसूली की कार्रवाई को और अधिक कारगर तथा तीव्र बनाने के लिए प्रतिभूतिकरण और वित्तीय आस्तियों के पुनर्निर्माण और प्रवर्तन प्रतिभूति हित अधिनियम तथा ऋण वसूली न्यायाधिकरण अधिनियम में संशोधन कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि जहां कहीं भी पाया जाएगा कि बकाए ऋण वसूली के लिए बैंकों की जमानतदारों के खिलाफ की गई कार्रवाई अपर्याप्त है, वैसे मामलों में सरकार ने बैंकों को सुझाव दिया है कि वे कर्जदारों के बकाए के मामले में जमानतदारों के खिलाफ सरफेसी अधिनियम, भारतीय अनुबंध अधिनियम, आरडीडीबी और एफआई अधिनियम की प्रसांगिक धाराओं के तहत कार्रवाई करें। उन्होंने बताया कि इस आशय के बैंकों को निर्देश पिछले महीने ही जारी कर दिया गया है।
परामर्शदात्री समिति के सदस्यों ने कर्ज वसूली और एनपीए पर नियंत्रण पाने के कई सुझाव दिए। सदस्यों ने कहा कि व्यवस्था में और अधिक पादर्शिता लाने की जरूरत है और बैंकों ने जिन कर्जदारों के कर्ज माफ किए हैं, उनकी पूरी सूची भी सामने आनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जानबूझकर कर्ज की वापसी न करने वाले ऐसे कर्जदारों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह की घटना को दोहराने की कोई हिम्मत न कर सके। कुछ सदस्यों ने सरकार की बैंकों के प्रबंधन में पेशेवर लोगों की नियुक्ति की प्रक्रिया की सराहना की और सुझाव दिया कि किसानों की मदद के लिए किसानों के कर्ज को पुर्नगठित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि बैंकों के विलय के कारण किसी तरह के रोज़गार में कटौती नहीं की जानी चाहिए। सदस्यों ने सरकार से कहा कि वह सभी भारतीय उद्योगपतियों के बीच बराबरी सुनिश्चित करे, कुछ प्रमुख उद्योगपतियों के जानबूझकर कर्ज न चुकाने का खामियाजा दूसरे उद्योगपतियों को नहीं भुगतना पड़े। सदस्यों ने कहा कि बैंकों में बड़े कॉरपोरेट घरानों को दिए गए कर्ज की वसूली के लिए एक समिति का गठन किया जाना चाहिए।
परामर्शदात्री समिति की बैठक में लोकसभा के सदस्य अनिरुदन संपत, बैजंता जय पांडा, दिलीपकुमार मंसुखलाल गांधी, कैलाश नारायण सिंह देव, पूनम महाजन, प्रभात सिंह प्रताप सिंह चौहान, रामचरित निषाद, श्रीराम मल्याद्रि, सुभाष चंद्र बहेरिया, सुप्रिया सदानंनद सुले, सुरेशचना बसप्पा अंगाडी और राज्यसभा के सदस्य दिग्विजय सिंह, डॉ केपी रामालिंगम, राजकुमार धूत, रणविजय सिंह जूदेव, सतीश चंद्र मिश्रा, कुमारी शैलजा और सुखेंदु शेखर राय ने भाग लिया। समिति की बैठक में वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा, रामरत्न पी वहल, वित्त सचिव शक्तिकांता दास, राजस्व सचिव डॉ हसमुख अधिया, वित्तीय सेवाओं की सचिव अंजुलि चिब दुग्गल, सविच डीआईपीएएम नीरज कुमार गुप्ता, मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) डॉ अरविंद सुब्रह्ण्यम और मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे।