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Thursday 07 February 2013 08:08:42 AM
लखनऊ। कविता में आपस में जोड़ने की शक्ति होती है, वह समाज को अच्छा बनाती है, कविता अंदर के भाव से प्रस्फुटित होती है, संस्कारों से पैदा होती है, संस्कार के बिना चरित्र नहीं बनेगा और चरित्र के बिना देश नहीं बनेगा। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के तत्वावधान में सुप्रसिद्ध साहित्यकार जयशंकर प्रसाद की पावन स्मृति को समर्पित कविता लेखन विषय पर केंद्रित दो दिवसीय कार्यशाला में उप्र हिंदी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष उदय प्रताप सिंह ने ये आदर्श उद्गार व्यक्त किए।
इस अवसर पर परिवेश पत्रिका के संपादक मूलचंद्र गौतम ने कहा कि जबसे सृष्टि है, कविता भी तभी से प्रारंभ हुई है। वियोगी होगा पहला कवि यहां से कविता की शुरूआत होती है, जब तक आदमी की आंख में आंसू तथा होठों पर मुस्कान रहेगी, तब तक कविता रहेगी। उन्होंने कहा कि समाजवादी सरकार फिर से साहित्य को उन्नत बनाने की दिशा में कदम उठा रही है।
कार्यशाला के मुख्य अतिथि डॉ कुंवर बेचैन ने कहा कि संवेदना कविता का प्रमुख अंग है, जिसके अंदर संवेदना है, वही कवि है, जहां कवि शब्द के माध्यम से गुस्से को व्यक्त करता है, वहां पर आम आदमी हथियार उठाता है, शब्द के अंदर भाव भर देना ही कविता है। कार्यशाला में डॉ रमा सिंह ने कहा कि बेजुबान दर्द की अभिव्यक्ति ही कविता है, हम आईटी की तरफ बढ़ रहे हैं, परंतु हम संवेदनहीन हो गए हैं, साहित्य मन को मन से जोड़ता है, वह तोड़ने का कार्य नहीं करता।
कार्यशाला में आए अतिथियों, कवियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत करते हुये डॉ सुधाकर अदीब निदेशक उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने कहा कि नवागत लेखक, रचनाकार लेखन कार्य कर सकें तथा उन्हें सहायता मिल सके, इसके लिये संस्थान ऐसी कार्यशालाओं का आयोजन करता रहेगा। कार्यशाला के प्रथम सत्र में विषय विशेषज्ञ के रूप में श्रीकृष्ण तिवारी वाराणसी, डॉ बुद्धिनाथ मिश्र देहरादून, डॉ रमा सिंह गाजियाबाद आदि उपस्थित थे।