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Friday 08 February 2013 07:30:00 AM
कुंभ नगरी, इलाहाबाद। विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल ने प्रयागराज कुंभ में गंगा की वर्तमान स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की है और केंद्र सरकार को चेतावनी दी है कि गंगा की उपेक्षा जारी रहने पर संत समाज बड़े आंदोलन के लिए उठ खड़ा होगा। गंगा के प्रवाह में जल की कमी और उसमें प्रदूषण से गंगा की सनातन धारा पर दिन-प्रतिदिन संकट बढ़ता ही जा रहा है। गंगा और उसकी सहयोगी नदियों पर बनने वाले बाँध और गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक गंगा के तटवर्ती शहरों तथा उद्योगों का समस्त उत्सर्जित जल बिना किसी अवरोध के गंगा में गिर रहा है। सन् 1984 से लेकर अब तक प्रदूषण नियंत्रण के लिए केंद्र एवं प्रांत सरकारों के सभी प्रयास गर्त साबित हो रहे हैं। शहरी आबादी और उद्योगों से विसर्जित प्रदूषण की मात्रा, जल शोधन के लिए किए गए सरकारी उपायों से बहुत अधिक है। जल शोधन संयंत्र भी विद्युत चालित होने के कारण पूरे समय काम नहीं कर पाते हैं। उदाहरण के लिए हरिद्वार में प्रतिदिन 70 एमएलडीप्रदूषित जल-मल निकलता है जबकि जल शोधन यंत्रों की क्षमता मात्र 45 एमएलडी की है।
विहिंप के गंगा प्रस्ताव में कहा गया है कि विगत कई वर्षों से देश का गंगाभक्त समाज गंगा की वर्तमान दुर्दशा के विरुद्ध आवाज़ उठा रहा है। संत समाज समय-समय पर विभिन्न आंदोलनों, सभाओं एवं धरना-प्रदर्शन से सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित करता रहा है, लेकिन केंद्र और प्रांत की सरकारों का रवैया गंगा के प्रति सदैव गुमराह करने वाला रहा है। वर्ष 2010 के हरिद्वार कुंभ में आक्रोशित संत समाज को आश्वस्त करते हुए देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह विहिंप की मांग पर गंगा को राष्ट्रीय नदी तथा गंगा के अविरल और निर्मल प्रवाह को सुरक्षित करने के लिए ‘गंगा बेसिन प्राधिकरण’ का गठन किया था, लेकिन ये दोनों बातें घोषणा मात्र ही साबित हुई हैं। न तो गंगा को राष्ट्रीय नदी का संवैधानिक अधिकार दिया गया है और न ही संसद से गंगा के राष्ट्रीय नदी की स्वीकृति हासिल की गई है।
गंगा बेसिन प्राधिकरण जिसके अध्यक्ष स्वयं प्रधानमंत्री हैं, की दो वर्षों में केवल दो बैठकें हुई हैं और वे बैठकें भी बिना किसी निर्णय के समाप्त हो गईं। सरकार के इस रवैये से आहत होकर प्राधिकरण के कई सदस्यों ने त्यागपत्र दे दिया है। आज देश के सभी प्रमुख संत सरकार के इस रवैये से आहत और क्षुब्ध होकर संघर्ष करने के लिए सड़क पर उतरने को बाध्य हैं। जब-जब संत समाज गंगा की दुर्दशा को लेकर आक्रोश व्यक्त करता है, उस समय केंद्र सरकार तात्कालिक राहत के नाम पर कोई आश्वासन दे देती है, लेकिन उन आश्वासनों को अमल में लाने का न कोई प्रयास होता है और न सरकारी स्तर पर कोई फैसला ही लिया जाता है।
प्रस्ताव में कहा गया है कि प्रोफेसर जीडी अग्रवाल (वर्तमान नाम-स्वामी सानंद) के दीर्घकालीन अनशन और विश्व हिंदू परिषद के प्रयास से लोहारी नागपाला की परियोजना रोकी गई थी, लेकिन उसका अनुबंध आज तक निरस्त नहीं किया गया है। अभी अलकनंदा पर श्रीनगर में धारी देवी के निकट बन रही परियोजना को रोका तो गया है, लेकिन उसको भी निरस्त करने की नियत सरकार की नहीं है। वहां केंद्र के विशेषज्ञ पुनः अध्ययन के लिए भेजे गए हैं। इसी तरह आए दिन योजनाओं के विरुद्ध जब कभी कोई आक्रोश निर्मित होता है, तो परियोजनाओं को बीच में ही रोक दिया जाता है और आक्रोश शांत होते ही फिर से उस पर काम शुरू हो जाता है, इसलिए केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल का यह दृढ़ मत है कि गंगा और उसकी सहायक नदियों पर कोई बाँध न बनाया जाए और टिहरी जैसे बड़े बाँध से, जो पूरी भागीरथी को ही अपने जलाशय में कैद कर लेता है, गंगा को मुक्त किया जाए।
विहिंप ने मांग की है कि शहरी और औद्योगिक प्रदूषण को रोकने के लिए कड़े कानून बनाए जाएं और गंगा के निर्बाध प्रवाह और उसके जल की पवित्रता को बनाए रखने की, गंगा के एक राष्ट्रीय नदी होने के नाते, पूरी जिम्मेदारी केंद्र सरकार ले। गंगा बेसिन प्राधिकरण का पुनर्गठन हो और उस प्राधिकरण में गंगा के निर्बाध और निर्मल प्रवाह के लिए प्रतिबद्ध वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और प्रमुख संतों को शामिल किया जाए। पंडित मदनमोहन मालवीय एवं अंग्रेज सरकार के मध्य 1916 ईस्वी में हुए अनुबंध के प्रति केंद्र सरकार अपनी प्रतिबद्धता घोषित करे और उसको दृष्टि में रखकर गंगा के निर्बाध प्रवाह एवं गंगा में यथेष्ठ जल की मात्रा तथा जल की निर्मलता व पवित्रता को सुनिश्चित करने वाली एक मजबूत संवैधानिक योजना संसद में पारित करे, अन्यथा संत समाज गंगा की रक्षा के लिए कठोर निर्णय लेने को बाध्य होगा।