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दु‌र्व्यवहार सार्वजनिक नहीं तो एससी एक्ट मान्य नहीं

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Saturday 09 February 2013 06:03:44 AM

नई दिल्ली। दिल्ली की एक अदालत ने कहा है कि अनुसूचित जाति या जनजाति के किसी व्यक्ति के लिए जातिसूचक अपशब्दों का इस्तेमाल करने आरोप में किसी शख्स पर तब तक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, जब तक यह सिद्ध नहीं हो जाए कि यह घटना सार्वजनिक रूप से हुई थी। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रजनीश भटनागर ने अनुसूचित जाति और जनजाति अत्याचार रोकथाम अधिनियम के प्रावधानों का जिक्र करते हुए एक ही परिवार के तीन सदस्यों को इस कानून के तहत लगे आरोपों से बरी कर दिया।
अदालत ने कहा कि अधिनियम के इस खंड को पढ़ने से ही यह जाहिर है कि आरोपियों द्वारा फरियादी के लिए कथित अपशब्दों का इस्तेमाल पूरी तरह सार्वजनिक तौर पर होने की बात साबित होनी चाहिए थी, हालांकि अदालत ने स्पष्ट किया कि आरोपियों पर फरियादी से कथित तौर पर मारपीट करने और उसे गलत तरह से रोकने के मामले में आईपीसी के तहत मजिस्ट्रेट की अदालत में मुकदमा चलाया जाए। इन आरोपियों में एक व्यक्ति, उसकी पत्नी और उनका बेटा शामिल है, शुरू में आरोपियों पर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति अत्याचार रोकथाम अधिनियम का उल्लंघन करते हुए अनुसूचित जाति के सदस्य को अपमानित करने का भी आरोप था।
अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता के बयान से ऐसा लगता है कि जब यह घटना हुई तो उस समय मौके पर शिकायतकर्ता और सिर्फ आरोपी ही मौजूद थे और उनके बीच में जो कुछ भी हुआ, वह कथित रूप से सबके सामने नहीं हुआ था।

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