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Tuesday 12 February 2013 08:00:36 AM
लखनऊ। रिहाई मंच ने लखनऊ में अधिवक्ता शाहिद आज़मी की तीसरी बरसी पर एक सम्मेलन आयोजित कर भारतीय न्याय पालिका पर सांप्रदायिकता, लोकतंत्र और आतंकवाद के मामलों में आरोपित मुस्लिम युवकों के प्रति सांप्रदायिक आधार पर भेदभाव किए जाने जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं और कुछ वक्ताओं ने जजों की आलोचना करते हुए कहा है कि इससे देश के सामने एक न्यायिक फासीवाद का खतरा उत्पन्न हो गया है, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।
सम्मेलन की शुरुआत प्रमुख वक्ता इफ्तिखार गिलानी को करनी थी, जिन्हें सम्मेलन में आते हुए बीच रास्ते में दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने रोक दिया। रिहाई मंच ने इसकी निंदा करते हुए इसे कांग्रेस सरकार की शर्मनाक करतूत बताया है। सम्मेलन में सामाजिक कार्यकता हिमांशु कुमार ने कहा कि विधायिका और कार्यपालिका की तरह ही न्यायपालिका भी अब मजबूत तबकों के पक्ष में गरीबों के खिलाफ खुल कर खड़ी हो गई है, इसलिए जरुरी है कि न्यायपालिका की भूमिका पर समाज मुखर होकर आंदोलित हो।
वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन ने मीडिया में मुस्लिम युवकों के खिलाफ किए जा रहे मीडिया ट्रायल का न्यायपालिका पर पड़ने वाले खतरनाक प्रभाव पर बात करते हुए कहा कि न्यायिक फासीवाद के खतरे को राज्य मीडिया के साथ मिलकर बढ़ाया जा रहा है। इस तरह जनता के बीच एक ऐसी सामूहिक चेतना का विकास हो रहा है, जो अपने ही देश के नागरिकों के फर्जी एनकाउंटरों और बिना निष्पक्ष जांच के ही फांसी पर लटका देने से संतुष्ट होने लगी है, अफजल गुरु की फांसी इसकी नजीर है। यह भारत के फासिस्ट राज्य में तब्दील होने का उदाहरण है।
शाहिद आजमी के भाई खालिद आजमी ने कहा कि उनके भाई की कुर्बानी जाया नहीं जाएगी, क्योंकि उनकी लड़ाई न्याय की लड़ाई थी, जिसके लिए आज पूरे देश में लोग लड़ने के लिए खड़े हो रहे हैं। गुलबर्गा कर्नाटक से आए अयाज अल शेख ने कहा कि अगर यह व्यवस्था अपने नागरिकों से जीने का अधिकार छीनती है तो उसे वजूद में रहने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने आतंकवाद के आरोप में कैद निर्दोषों की रिहाई के लिए एक मजबूत राजनीतिक आंदोलन के साथ-साथ न्यायपालिका को धर्मनिरपेक्ष बनाने के लिए आंदोलन चलाने की मांग की, इससे सच्चे लोकतंत्र की स्थापना हो सकेगा।
एपीसीआर के नेता अखलाक अहमद ने न्यायपालिका में सांप्रदायिकता के लिएसमाज में व्याप्त अल्पसंख्यक विरोधी मानसिकता को जिम्मेदार बताते हुए कहा कि इसके पीछे संघ परिवार की फैलाई गई सांप्रदायिक मानसिकता है। न्यायपालिका में ऐसे जजों की भरमार है, जो अंबेडकर के संविधान के बजाय मनु के मानवता विरोधी संविधान को ज्यादा मानते हैं। सूरत, गुजरात से आए अधिवक्ता और मानवाधिकार नेता बिलाल कागजी, जो आतंकवाद के आरोप में महीनों जेल में रहे, ने कहा कि आतंकवाद के मामलों में अधिकतर देखा जाता है कि अभियोजन पक्ष के बजाय जज ही आरोपियों से जिरह करने लगते हैं, यह अलोकतांत्रिक प्रवृत्ति तो है ही, न्याय के सिद्धांतों की भी हत्या है।
सम्मेलन के पहले सत्र की अध्यक्षता इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सुलेमान ने की और दूसरे सत्र की अध्यक्षता पूर्व पुलिस महानिरिक्षक एसआर दारापुरी ने की एवं तीसरे सत्र की अध्यक्षता रुपरेखा वर्मा और अधिवक्ता मुहम्मद शुएब ने की। मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकता संदीप पांडे ने आतंकवाद के आरोप में फर्जी तरीके से फंसाए गए शाहबाज की पत्नी सदफ को लखनऊ लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाने का प्रस्ताव रखा।
सम्मेलन में 10 प्रस्ताव पारित किए गए। इनमें कहा गया है कि अफजल गुरु के मामले में निष्पक्ष विवेचना और सेशन ट्रायल न होने के बावजूद फांसी दे देना एक अलोकतांत्रिक घटना है, जो राजनीतिक फायदे के लिए है, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। इफ्तखार गिलानी को सम्मेलन में आने से रोकने का विरोध किया गया। आतंकवाद से संबधित मुकदमों के सत्य परीक्षण और अपीलों की सुनवाई के दौरान सांप्रदायिक प्रवृत्ति पर चिंता प्रकट की गई और न्यायधीशों को उनकी संवैधानिक मर्यादा स्मृति कराते हुए उनसे आशा की गई कि वे पीड़ित पक्षों को निष्पक्ष भाव से न्याय प्रदान करेंगे। सम्मेलन में मांग की गई है कि न्यायपालिका, आतंकवाद से जुड़े उन मामलों में अपने आदेशों पर पुर्नविचार और उनका रिट्रायल करे, जिनमें पक्षकारों द्वारा निष्पक्ष विवेचना नहीं हुई। आतंकवाद से जुड़े मुकदमों की सुनवाई फास्ट ट्रैक न्यायालयों में हो, जिसके लिए विशेष न्यायालय गठित किए जाएं। निमेष आयोग की रिपोर्ट तुरंत सार्वजनिक की जाए व दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाया जाए। आतंकवाद से जुड़े मामलों में पुलिस अधिकारी के समक्ष किए गए कन्फेशन को मान्यता रद्द की जाए। बिना राष्ट्रपति या राज्यपाल की मंजूरी के जिन अभियुक्तों पर मुकदमा चलाया गया है, उन्हें तत्काल वापस लिया जाए और मुकदमा चलाने वालों के खिलाफ विधिक कार्रवाई की जाए। इंडियन मुजाहीदीन पर सरकार श्वेत पत्र लाए। लंबे समय से बंद दोषमुक्त कैदियों के आचरण से संबंधित रिपोर्ट सिविल पुलिस से न लेकर कारागार पुलिस से ली जाए। उत्तर प्रदेश की न्यायपालिका की सांप्रदायिकता पर रिहाई मंच ने श्वेत पत्र जारी किया जिसमें लखनऊ, फैजाबाद, बाराबंकी, रामपुर न्यायालय की भूमिका, जेल में बंद कोठरियों में अदालत, वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए जेल से मुकदमें की सुनवाई, निचली अदालतों में मुकदमों को लंबे समय तक लटकाना, उर्दू मीडिया के प्रति न्यायालयों की उदासीनता, न्याय में देरी के लिए न्यायालय जिम्मेदार जैसे आरोप लगाए गए हैं।
सम्मेलन को असद हयात, सदफ, रणधीर सिंह सुमन, मसीहुद्दीन संजरी, आफाक, खालिद शाबिर, इलियास आजमी, प्रोफेसर अनिल सिंह, जैद फारुकी, केके वत्स ने संबोधित किया। सम्मेलन में अनिल, आरिफ, अंकित चौधरी, अभिनव, सुब्रत, मोहम्मद समी, सिद्धार्थ कलहंस इत्यादि उपस्थित थे।